‘वित्तीय समावेश अब केवल नैतिक दायित्व नहीं रहा, कुछ बैंक को दिख रहा कारोबारी लाभ’

By भाषा | Published: June 22, 2021 09:32 PM2021-06-22T21:32:14+5:302021-06-22T21:32:14+5:30

'Financial inclusion is no longer just a moral obligation, some banks see business benefits' | ‘वित्तीय समावेश अब केवल नैतिक दायित्व नहीं रहा, कुछ बैंक को दिख रहा कारोबारी लाभ’

‘वित्तीय समावेश अब केवल नैतिक दायित्व नहीं रहा, कुछ बैंक को दिख रहा कारोबारी लाभ’

नयी दिल्ली, 22 जून प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी) के लिए डिजिटल व्यवस्था किये जाने के साथ वित्तीय समावेश अब एक नैतिक दायित्व नहीं रह गया है, बल्कि कुछ सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक अब वाणिज्यिक लाभ के रूप में इसे देख रहे हैं। वित्त मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने मंगलवार को यह कहा।

लाभार्थियों के बचत खाते में प्रत्यक्ष लाभ अंतरण के लिये जनधन खाते को आधार और मोबाइल (जैम) से जोड़ने से डिजिटल व्यवस्था मजबूत हुई है और वित्तीय समावेश अभियान को बढ़ावा मिला है।

वित्तीय सेवा विभाग में अतिरिक्त सचिव पंकज जैन ने कहा, ‘‘हमने देखा है कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने इस मामले में काफी काम किया है... सार्वजनिक क्षेत्र के इन बैंकों इस बात को समझा है कि इसे कैसे कारोबार के रूप में उपयोग कर सकते हैं। इस मामले में उनका रुख अच्छा रहा है।’’

शोध संस्थान नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लायड एकोनॉमिक रिसर्च (एनसीएईआर) के एक वेबिनार में उन्होंने यह बात कही।

जैन के अनुसार यही कारण है कि प्रधानमंत्री जन धन योजना के तहत खोले गए खातों में बढ़ती शेष राशि के साथ, बैंक अपनी आय बढ़ाने के लिए अगले स्तर की सेवा प्रदान करने पर विचार कर रहे हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘इसीलिए, वित्तीय समावेश को अब कारोबारी लाभ के रूप में देखा जा रहा है जबकि पहले इसे नैतिक जवाबदेही के रूप में देखा जाता था।’’

जैन ने कहा कि बैंक सेवाएं अब छोटे शहरों में तेजी से बढ़ रही हैं। इसका पता छोटे कर्ज के लिये आने वाले आवेदनों से चल रहा है।

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