नयी दिल्ली, 24 मई भारत ने बिहार के चर्चित शाही लीची की पहली खेप का निर्यात ब्रिटेन को किया है। इस मौसम की पहली खेप को हवाई मार्ग के जरिये सोमवार को भेजा गया। वाणिज्य मंत्रालय ने यह जानकारी दी।
मुख्य रूप से बिहार के मुजफ्फरपुर, वैशाली, समस्तीपुर और चंपारण जिले तथा उसके आसपास के क्षेत्र में उपजायी जाने वाली शाही लीची अपनी खास मिठास और स्वाद के लिये जानी जाती है।
यह भौगोलिक संकेतक (जीआई) यानी किसी खास जगह की पहचान वाला प्रमाणित उत्पाद है। जीआई प्रमाणपत्र वाले उत्पाद की कीमत थोड़ी अधिक होती है क्योंकि कोई भी उत्पादक उसी प्रकार के सामान के लिये बाजार में नाम का दुरूपयोग नहीं कर सकता।
एक भौगोलिक संकेतक (जीआई) दर्जे का उपयोग एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र से उत्पन्न होने वाले कृषि, प्राकृतिक या विनिर्मित उत्पाद (हस्तशिल्प और औद्योगिक सामान) के लिए किया जाता है। आमतौर पर, ऐसा नाम गुणवत्ता और विशिष्टता की गारंटी देता है, जो मुख्यत: इसके मूल स्थान के कारण होता है।
दार्जिलिंग चाय, तिरुपति लड्डू, नागपुर का संतरा और कश्मीर का पश्मीना कुछ ऐसे उत्पाद हैं जिन्हें भौगौलिक संकेतक का दर्जा मिला हुआ है।
मंत्रालय ने कहा कि चूंकि लीची खाने लायक कुछ ही समय तक रह सकता है, अत: उसके प्रसंस्कृत और मूल्य वर्धित उत्पादों के लिये निर्यात अवसर टाटोलने की जरूरत है।
बयान के अनुसार, ‘‘बिहार में शाही लीची चौथा कृषि उत्पाद है जिसे जीआई दर्जा 2018 में मिला। इससे पहले जर्दालु आम, कतरनी चावल और मगही पान को यह दर्जा मिला था...।’’
मुजफ्फरपुर, वैशाली, समस्तीपुर, चंपारण, बेगुसराय जिले और उसके आसपास के क्षेत्र का जलवायु शाही लीची के लिये काफी अनुकूल हैं।
चीन के बाद भारत दुनिया में लीची का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है।
भारत में जहां लीची को ताजे फल के रूप में खाना और खिलाना पसंद करते हैं, वहीं चीन और जापान में इसे सूखे या डिब्बाबंद रूप में पसंद किया जाता है।
देश में लीची उत्पादन में बिहार शीर्ष पर है।
मंत्रालय के अनुसार बिहार सरकार सीमा शुल्क मंजूरी सुविधा, प्रयोगशाला परीक्षण सुविधा, पैकिंग और प्री-कूलिंग सुविधाएं समेत जरूरी बुनियादी ढांचे तैयार करने का प्रयास कर रही है। इससे राज्य की कृषि निर्यात क्षमता का बेहतर उपयोग हो सकेगा और उसे बढ़ावा मिलेगा।
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