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अर्थशास्त्री बनर्जी ने गरीबों के लिये पर्याप्त सरकारी सहायता की वकालत की

By भाषा | Updated: April 11, 2021 19:55 IST

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मुंबई, 11 अप्रैल जाने-माने अर्थशास्त्री और नोबेल पुरस्कार से सम्मानित अभिजीत विनायक बनर्जी ने गरीबों को गरीबी से उबारने के लिए उन्हें मुफ्त सरकारी सहायता सीमित रखने की विचारधारा की आलोचाना करते हुए कहा है कि ऐसा कोई प्रमाण नहीं है कि सरकारी मदद गरीबों को कामचोर बनाती है।

बनर्जी ने रविवार को कहा कि पिछले दशक और उससे पहले एशिया, अफ्रीका और लातिन अमेरिका में विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं पर उन्होंने जो अध्ययन किये, उनमें कहीं भी ऐसा नहीं दिखा कि सरकारी मदद लोगों को आलसी बनाती है। बनर्जी के अनुसार उल्टे यह देखने में आया है कि जो लोग सार्वजनिक और गैर-सरकारी सहायता से लाभान्वित हुए हैं और जहां उन्हें मुफ्त में संपत्ति दी गयी, वहां वास्तव में वे अधिक उत्पादक और रचनात्मक हुए हैं।

लघु वित्त बैंक बंधन बैंक के 20वें स्थापना दिवस को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि इस बात को लेकर कहीं कोई आंकड़ा और व्यवहारिक सबूत नहीं है, जिससे यह स्थापित हो कि गरीबों को मुफ्त में संपत्ति मिलने से वे कामचोर बनते हैं।

बनर्जी ने कहा कि इस विचार के आधार पर विभिन्न सरकारें गरीबों को कम सहायता उपलब्ध कराती रहीं हैं ताकि वे आलसी नहीं बने। लेकिन हमें भारत समेत कहीं भी इस बात का सबूत नहीं मिला। बल्कि इसके उलट, हमें हर जगह इस प्रकार की नीति से सुधार ही देखने को मिला है।

उन्होंने आंशिक रूप से उन लोगों को भी दोषी ठहराया है, जिन्होंने इस विचारधारा को बड़ी संख्या में गरीबों के लिये और अन्य जगहों पर लागू किया। इसकी वजह से विभिन्न सरकारों ने गरीबी में कमी और अन्य सामाजिक-आर्थिक प्रभावकारी उपायों को गैर-लाभकारी और निजी क्षेत्र के लिये छोड़ दिया। यह स्थिति 2000 के पहले दशक के मध्य तक मनमोहन सिंह की अगुवाई वाली सरकार के रोजगार गारंटी योजना शुरू किये जाने तक देखने को मिली।

अर्थशास्त्री ने कहा कि रोजगार गारंटी योजना के क्रियान्वयन और अन्य ठोस कदमों से पांच साल में ही एक करोड़ से अधिक आबादी को गरीबी की दलदल से बाहर निकाला जा सका।

उन्होंने वैश्वीकरण और मुक्त व्यापार का समर्थन करते हुए कहा स्वीकार किया कि गरीबी उन्मूलन वैश्वीकरण के इस दौर में काफी जटिल हो गया है। इसका कारण वैश्वीकरण ने जोखिम के नये रूप पैदा किये हैं। कोविड महामारी इसका अच्छा उदाहरण है। इस महामारी से सर्वाधिक प्रभावित गरीब ही हुए हैं।

बनर्जी ने कहा कि वैश्वीकरण दुनिया में जोखिम ज्यादा है और हमें उन जोखिमों को कम करने और उससे पार पाने के लिये प्रभावी उपाय करने की जरूरत है ताकि वैश्वीकरण जारी रहे।

उन्होंने कहा कि यह कामगारों और युवाओं के हुनर में निखार लाकर, उन्हें बदलाव के साथ नये कौशल का प्रशिक्षण देकर किया जा सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि वैश्वीकरण का लाभ दुनिया और हमारे देश में सीमित रहा। इसका कारण हमने जोखिम से निपटने के उपायों पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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