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पचीस साल से अधिक पुराने कोयला बिजलीघरों को बंद करने से होगी 37,750 करोड़ रुपये की बचत: अध्ययन

By भाषा | Updated: July 26, 2021 16:50 IST

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नयी दिल्ली, 26 जुलाई प्राथमिकता के आधार पर 25 साल से अधिक पुराने कोयला आधारित बिजली संयंत्रों को बंद करने से कुल 37,750 करोड़ रुपये की बचत हो सकती है। काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर (सीईईडब्ल्यू) ने एक अध्ययन में यह कहा है।

इसके अलावा, सीईईडब्ल्यू के एक अन्य अध्ययन में सुझाव दिया गया है कि भारत में बिजली वितरण कंपनियों या डिस्कॉम मौजूदा प्रणाली के बजाय दक्षता के आधार पर कोयला बिजली प्रेषण को प्राथमिकता देकर हर साल 9,000 करोड़ रुपये (1.23 अरब अमेरिकी डॉलर) तक बचा सकती हैं। मौजूदा व्यवस्था में परिवर्तनशील लागतों के आधार पर प्राथमिकता दी जाती है।

सोमवार को जारी अध्ययन के अनुसार इस पहल से सार्वजनिक क्षेत्र की वितरण कंपनियों को काफी राहत मिलेगी, जिसे वित्त वर्ष 2018-19 में 61,360 (8.4 अरब डॉलर) का घाटा हुआ था।

यह रिपोर्ट 1,94,000 मेगावॉट क्षमता (करीब 2,05,000 मेगावॉट की कुल स्थापित क्षमता में से) की भारतीय कोयला संपत्ति के कोविड-19 महामारी के पूर्व 30 महीनों के प्रदर्शन पर आधारित है।

अध्ययन में आगे पाया गया कि इस समय दक्षता-आधारित प्रेषण को प्राथमिकता देने से कोयला बेड़े की कुशलता में 1.9 प्रतिशत सुधार हो सकता है। इसके परिणामस्वरूप 4.2 करोड़ टन वार्षिक कोयला बचत और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी आने का अनुमान है।

सीईईडब्ल्यू ने अपने अध्ययन में देश के 30,000 मेगावॉट क्षमता के कोयला आधारित बिजलीघरों को तेजी से बंद करने की भी सिफारिश की है।

प्रस्तावित संयंत्र राष्ट्रीय विद्युत योजना (एनईपी), 2018 में परिचालन से हटाये जाने के लिए पहचाने गए बिजलीघरों के साथ मेल खाते हैं।

इसके अलावा, 20,000 मेगावॉट क्षमता के संयंत्रों को अस्थायी रूप से सेवा से हटाने की सिफारिश की गयी है, जो एनईपी सूची में शामिल नहीं हैं।

अध्ययन के अनुसार, नियोजित नवीकरणीय और कोयला क्षमता को ध्यान में रखते हुए, इन नए संयंत्रों को हटाने से आपूर्ति व्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा।

इसमें कहा गया है कि वास्तव में, इन अकुशल संयंत्रों में प्रदूषण नियंत्रण उपकरणों को लगाने से बचने से 10,000 करोड़ रुपये (1.37 अरब डालर) की एकमुश्त बचत होगी।

इसके अलावा, अध्ययन में एक एकीकृत बिजली बाजार की वकालत की गयी है जो पूरे देश को एक ही प्रेषण क्षेत्र के रूप में माने।

सीईईडब्ल्यू का अध्ययन केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग (सीईआरसी) के बाजार आधारित आर्थिक प्रेषण (एमबीईडी) व्यवस्था अपनाने के प्रस्ताव को मजबूती प्रदान करता है।

सीईईडब्ल्यू के सेंटर फॉर एनर्जी फाइनेंस (सीईएफ) एक अलग स्वतंत्र अध्ययन में कोयला आधारित 130 संयंत्रों का परीक्षण किया गया है। इनकी क्षमता 95,000 मेगावॉट है।

इसमें पाया गया कि प्राथमिकता के आधार आधार पर 25 साल पुराने कोयला आधारित संयंत्रों (कुल 35,000 मेगावॉट) को बंद करने से अगले पांच साल में सालाना 7,550 करेड़ रुपये (1.03 अरब डॉलर) की बचत हो सकती है।

ये बचत मुख्य रूप से संचालन और रखरखाव लागत आदि के जरिये हासिल होगी।

इसके अलावा, संयंत्रों के बची हुई अवधि पर गौर करने पर कुल बचत 37,750 करोड़ रुपये (5.2 अरब अमेरिकी डॉलर) तक हो जाएगी।

दूसरी तरफ, इन संयंत्रों को बंद करने पर 21,500 करोड़ रुपये का खर्च आएगा। यह खर्च कर्ज और इक्विटी धारकों को भुगतान करने पर होगा। इसके अलावा 11,700 करोड़ रुपये कार्यबल के भुगतान पर खर्च होंगे।

अध्ययन के अनुसार संयंत्रों को बंद करने से जो खर्च होगा, उसकी भरपाई पांच-छह साल में हो जाएगी।

सीईईडब्ल्यू एशिया के अग्रणी गैर-लाभकारी नीति अनुसंधान संस्थानों में से एक है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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