Tuntun Death Anniversary (टुनटुन डेथ एनीवर्सरी): टुनटुन का 'अफ़साना लिख रही हूँ, दिले बेक़रार का...' गाना सुनकर एक पाकिस्तानी युवक, जिसका नाम अख्तर अब्बास काजी था, वह मुल्क छोड़ भारत टुन टुन से शादी करने भारत आ गया। उसने टुन टुन से शादी कर ली।
टुनटुन पुण्यतिथिः मशहूर अभिनेत्री ने किया था 198 फिल्मों में काम, स्ट्रगल के दिनों में लगाती थीं घरों में झाड़ू-पोछा
बॉलीवुड में जबरदस्त संघर्ष के बाद अपनी अलग पहचान बनाने वाली गायिका-हास्य कलाकार टुनटुन की शनिवार (24 नवंबर) को पुण्यतिथि है। 24 नवंबर 2003 को एक समृद्ध कलाकार ने दुनिया को मुंबई से अलविदा कहा था। लेकिन 11 जुलाई 1923 को उत्तर प्रदेश के एक बेहद सामान्य परिवार में उनका जन्म हुआ था। जन्म के कुछ सालों बाद ही उन्होंने अपने माता-पिता का साया खो दिया।
उनका असल नाम उमा देवी था। लेकिन संघर्षों ने कब उन्हें टुनटन बना दिया पता ही नहीं चला। उमा रेडियो और नूरजहां की दीवानी थी। फिर एक दिन फिल्मों में गायिका बनने के लिए उमा देवी भाग कर मुंबई पहुंचीं। मगर किस्मत ने उन्हें गायिका उमा नहीं अभिनेत्री टुनटुन के रूप में मशहूर किया।
फिल्मों में आने के लिए टुनटुन को करना पड़ा था संघर्ष
फिल्मों में संघर्ष करने वाले ज्यादातर कलाकारों के लिए पहला मौका बहुत महत्त्वपूर्ण होता है। एक मुकाम पाने के लिए उमा ने भी बेहद संघर्ष किया। कहते हैं मधुबाला और लता मंगेशकर को ‘महल’ (1949) के जिस गाने ‘आएगा आने वाला’ ने पहचान दिलवाई, वह गाना पहले टुनटुन को गाना था। मगर अनुबंध के कारण वह कारदार स्टूडियो के अलावा किसी और की फिल्म में नहीं गा सकती थीं। शुरूआती दौर में उनकी आवाज किसी भी निर्माता निर्देशक को हीं भा ही थी।
हमेशा से गायिका बनना चाहती थीं टुनटुन
उमा बचपन से ही रेडियो सुन कर गाना सीखने फिल्मों में गायिका भी बनना चाहती थीं। सो वह एक दिन घर से भाग मुंबई पहुंच गर्इं। लोगों के यहां बरतन धोए, झाड़ू लगाई। अरुण कुमार आहूजा ही थे जिन्होंने कई संगीतकारों से उमा को मिलवाया।
संगीतकार अल्लारखा ने उनसे एक गाना भी गवाया और इसके लिए 200 रुपए दिए। मगर उमा तो नौशाद के साथ गाना चाहती थीं। आखिर किसी तरह वह निर्माता-निर्देशक एआर कारदार से मिलीं, जिन्होंने उमा को अपने संगीतकार नौशाद के पास भेज दिया। जहां से उनके करियर ने पल्टा खाया।
500 रुपए से हुई थी टुनटुन की शुरुआत
नौशाद ने जब उमा को सुना तो समझ गए कि छरहरी-सी यह लड़की गाना-वाना तो जानती नहीं है। आवाज में उतार-चढ़ाव है नहीं मगर गाने का जुनून सवार है। चूंकि नौशाद उन दिनों कई फिल्मों में काम कर रहे थे, तो उन्हें लगा एकाध फिल्म में उमा से गवा लेंगे। इस तरह उमा का कारदार स्टूडियो के साथ अनुबंध हुआ, जिसमें किसी दूसरे निर्माता की फिल्म में गाने की मनाही थी। 500 रुपए तनख्वाह फाइनल हुई। नौशाद ने उमा से ‘दर्द’ (1947) में ‘अफसाना लिख रही हूं’ गवाया। गाना आज भी फैंस को भाता है।बस इसके बाद उमा को कई फिल्में मिलीं।
अभिनय में आजमाया टुनटन ने हाथ
करियर पीक प्वाइंट पर उन्होंने अचानक शादी कर ली और नतीजा धीरे-धीरे उमा को काम मिलना बंद हो गया। कहते हैं जिस कारण से जब फाकों की नौबत आई तो उमा नौशाद के पास फिर पहुंचीं। जब ववह नौशद के पास गईं तो उन्होंने कहा कि अब तुम्हारा गला गाने के काम का नहीं बचा। ऐसे में अब वक्त आ गया है कि तुम अभिनय करो। नौशाद की सलाह सुन कर उमा ने तुरंत कहा कि अभिनय करेंगी तो सिर्फ दिलीप कुमार के साथ।
तब वह दिलीप कुमार को लेकर ‘बाबुल’ (1949) बना रहे थे। ‘बाबुल’ में उमा को एक किरदार मिल गया। इसी फिल्म के बाद लोगों ने मोटी होने के कारण उमा को टुन टुन कहना शुरू किया। बस उसके बाद से ही उमा देवी खत्री हमेशा के लिए टुन टुन बन गईं और लगभग पांच सौ फिल्मों में काम किया और उन्होंने अभिनय कर एक पूरी पीढ़ी को अपनी अदाओं से हंसाया और आज भी हंसा रही हैं।