Taksaal Review: मैक्सिमम सिटी में कुछ बनने की जद्दोजहद की कहानी

By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Published: August 7, 2018 06:38 PM2018-08-07T18:38:12+5:302018-08-07T22:12:33+5:30

"टकसाल" कहानी है बाहर से आकर मुंबई में कामयाबी  की मंजिल हासिल करने की जद्दोजहद में अकेले पड़ चुके संदीप की।

Short Film Review: Taksaal by prasoon prabhakar | Taksaal Review: मैक्सिमम सिटी में कुछ बनने की जद्दोजहद की कहानी

Taksaal Review: मैक्सिमम सिटी में कुछ बनने की जद्दोजहद की कहानी

शॉर्ट फिल्म- टकसाल

निर्देशक और लेखक- प्रसून प्रभाकर

कलाकार- ज्ञानेंद्र त्रिपाठी, घनश्याम लालसा, सान्या बंसल, पवन सिंह, इखलाक़ खान

फिल्म की कहानी

ये कहानी है बाहर से आकर मुंबई में कामयाबी  की मंजिल हासिल करने की जद्दोजहद में अकेले पड़ चुके संदीप की।

संदीप की जबान में लड़खड़ाहट है। वो कोशिश करता है कि ठीक  से बोल सके, खुद को साबित कर सके। लेकिन उसकी दुनिया में एक साथ कई विलेन हैं।

फिर चाहे संदीप का बॉस हो या फिर उसकी कमजोरी का फायदा उठाने वाला उसके दफ्तर का एक चपरासी।  मतलब मैक्सिमम सिटी में रह रहे संदीप के लिए ये शहर मिनिमम सिटी से ज्यादा कुछ नहीं। 

संदीप के पिता पैरालाइज्ड हैं।  वो अपनी सारी परेशानी उनके साथ ही शेयर करता है। पत्नी नौकरी करती है लेकिन संदीप के साथ उसकी दूरी साफ साफ दिखती है।

एक छत के नीचे रहकर भी ऐसा लगता है कि पति और पत्नी दो अलग-अलग जिंदगी गुजार रहे हैं। वजह है पत्नी की अपनी महत्वकांक्षा।

वो दोस्त के साथ एक स्टार्टअप शुरू करना चाहती है। इसके लिए वो संदीप की राय लेना भी जरूरी नहीं समझती।  

ऑफिस में संदीप को बॉस बेकार समझते हैं। बात बात पर उसे बेइज्जत करते हैं। हकलाने की वजह से उसका मखौल उड़ाते हैं। घऱ-ऑफिस दोनों जगह संदीप अकेले पड़ जाता है।

आखिर में अपने दफ्तर के पूर्व चपरासी के कहने पर वो एक बिजनेस में पैसा लगा बैठता है। फिर वहां भी उसे धोखा मिलता है। गुस्से में संदीप चपरासी को मार देता है। फिल्म खत्म हो जाती है।

फ़िल्म की फिलॉसफी

यहां एक पोएट्री है जिसके जरिए फिल्म की पूरी फिलॉसफी साफ होती है।  पोएट कहती है कि वो नज्म इसलिए नहीं लिखती कि वो कुछ कहना चाहती है, बल्कि इसलिए लिखती कि कुछ कह नहीं पाती हैं।

 ये पोएट्री जोहाना मेहरात्र की है लेकिन इस हिस्से को फिल्म में जिस प्रभावशाली तरीके से स्टोरी में रखना चाहिए था वैसा करने में प्रसून चूक गए हैं। 

टकसाल शुरु होती है मुंबई के आइकॉनिक नरीमन प्वाइंट के एक स्टिल विजुअल से। मैक्सिमम सिटी की वर्चुअल रियल्टी के अगले ही पल कैमरा,  ट्रैफिक की जलती बुझती बत्ती, लोकल ट्रेन औऱ लाइफलेस स्काईस्क्रैपर की ओर चला जाता है।

इसके बाद डायरेक्टर प्रसून प्रभाकर एक -एक करके मुंबई में बाहर से आए जिंदगी को सफल बनाने के जद्दोजहद में फंसे संदीप की ट्रैजिक कहानी को पिरोते हैं।

निजी , पारिवारिक और ऑफिस की जिंदगी जहां हर कुछ बेमेल है। इतना ही नहीं शहरी अकेलेपन की हकीकत को हर किरदार के साथ कहने की कोशिश की गई है। 

फिल्म में ठहराव है, इसके यथार्थ से जुड़े होने का अहसास देता है। सिनेमटोग्राफी और म्यूजिक फिल्म के थीम को खूबसूरती से उकेरने में कामयाब रही है।

फिल्म की कमजोरी

स्टोरी लाइन कमजोर रहने से फिल्म पूरी तरह से साफ नहीं है। इसके साथ ही स्क्रीन प्ले और डायलॉग्स काफी कमजोर लगते हैं।

फिल्म में जहां संदीप की पत्नी अपने स्टार्ट-अप शुरू करने को लेकर घर पर पार्टी रखती है वो काफी अहम है लेकिन ऐसा लगता है डायरेक्टर और लेखक प्रसून फिल्म के इस हिस्से की मजबूती और पैराडॉक्स को ठीक से समझ नहीं पाए। 

इस छोटी सी फिल्म में संदीप और उसके पैरालाइज्ड पिता के बीच का जो संवाद है वो काफी असरदार है।

संदीप के किरदार में ज्ञानेंद्र त्रिपाठी ने शानदार काम किया है तो वहीं चपरासी के किरदार में घनश्याम लालसा का अभिनय भी अच्छा है।

टकसाल शॉर्ट फ़िल्म आप नीचे देख सकते हैं-

मनोरंजन और देश-दुनिया की ताजा खबरों के लिए यहां क्लिक करें।  हमारा यूट्यूब चैनल यहां सब्सक्राइब करें और देखें एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट।

Web Title: Short Film Review: Taksaal by prasoon prabhakar

बॉलीवुड चुस्की से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे