Kamyaab Movie Review: एक साइड हीरो के संघर्ष की कहानी को पेश करती है 'कामयाब', हर किसी को एक बार देखनी चाहिए फिल्म
By ऐश्वर्य अवस्थी | Published: March 6, 2020 11:11 AM2020-03-06T11:11:56+5:302020-03-06T11:12:14+5:30
संजय मिश्रा की फिल्म कामयाब छह मार्च को रिलीज हो रही है। इससे पहले ये कई फिल्म फेस्टिवल धूम मचा चुकी है।
संजय मिश्रा अपने अलग अंदाज की फिल्में करने के लिए जाते हैं। एक बार फिर से वह एक नई फिल्म लेकर आ गए हैं। संजय की फिल्म कामयाब आज पर्दे पर रिलीज हो गई है। इस फिल्म का फैंस बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। हीरो का दोस्त विलेन का साथी बनने वाला साइड हीरो हर कोई भूल जाता है। इसी साइड हीरो की कहानी को पर्दे पर पेश करती है कामयाब।
फिल्म की कहानी
फिल्म की कहानी शुरू होती है सुधीर (संजय मिश्रा) की जिंदगी की इर्द गिर्द घूमती है। जो एक साइड हीरो के रूप में अब तक 499 फिल्में कर चुका है। सुधीर मुंबई के एक पुराने फ्लैट में रहता है। एक दिन एक पत्रकार उसका इंयरव्यू लेने आती है। सुधीर को उस पत्रकार के सवाल काफी बोरिंग लगते हैं। एक सवाल के जवाब में सुधीर कहता हैं- 'चरित्र अभिनेताओं आलू जैसा होता है, उसे बच्चन, कपूर, कुमार किसी के साथ भी मिला सकते हैं। दर्शकों के दिलों में सिर्फ हीरो बसते हैं, साइड हीरो नहीं।
इसके बाद वह पत्रकार उनको याद दिलाती है कि वह अब तक 499 फिल्में कर चुके हैं। 499 का आंकड़ा उनके जेहन में रह जाता है और अपनी 500वीं फिल्में करने में जुट जाते हैं। ये फिल्म करना उनके लिए बिल्कुल भी आसान नहीं होता है। लेकिन इसमें उनकी मदद करते हैं कास्टिंग गुलाटी (दीपक डोबरियाल) अब सुधीर को अपनी 500वीं फिल्म करने के लिए किन किन मुसीबत का सामना करना पड़ा है ये फिल्म देखने के बाद ही पता लगेगा।
एक्टिंग
फिल्म में अवतार गिल, दीपक डोबरियाल, विजू खोटे, लिलिपुट जैसे कई करैक्टर एक्टर हैं। विजू खोटे की आखिरी ये फिल्म है। फिल्म की जान संजय मिश्रा हैं जिन्होंने बहुत ही शानादार एक्टिंग पेश की है। एक स्ट्रग्लर की जिंदगी तो उन्होंने बहुत ही शानदार तरीके से पर्दे पर जिया है।इसके अलावा दीपक डोबरियाल ने अपने किरदार से भी पूरा न्याय किया है।
क्या है मजबूत क्या है कमजोर
कामयाब फिल्म के निर्देशक हार्दित मेहता हैं। हार्दिक मेहता इससे पहले राजकुमार राव की फिल्म ट्रैप्ड को भी डायरेक्ट कर चुके हैं। ऐसे में फिल्म की बात करें तो इंयरवल के बार फिल्म थोड़ी स्लो है लेकिन पूरी फिल्म आपको बांधकर रखेगी।
फिल्म का क्लाइमैक्स आपको निराश कर सकता है।पीयूष पूटी की सिनेमेटोग्राफी काफी अच्छी है, जो कहानी को अपने अंजाम तक पहुंचाने में पूरा साथ देती है।