फिल्मों के अंत में बार-बार मार दिए जाने से दिलीप कुमार को होने लगी थी चिंता, बदलना चाहते थे अपनी छवि
By अनिल शर्मा | Published: July 7, 2021 12:45 PM2021-07-07T12:45:14+5:302021-07-07T13:11:55+5:30
करीब 23 साल पहले दिए एक इंटरव्यू में दिलीप कुमार ने कहा था कि फ़िल्मी कहानियों में ह्यूमर, कॉमेडी ड्रामा और क्लाइमेक्स जैसे जरूरी एलिमेंट्स तो उठा लिए जाते थे (तब), लेकिन जिस मैटेरियल में एक्टर के परफॉर्मेंस की गुंजाइश हो वो ही नहीं रहता था।
6 दशक के लंबे फिल्मी करियर में महज 60 फिल्में करने वाले दिलीप कुमार (Dilip Kumar) अपनी संजीदगी के लिए जाने जाते थे। 6 दशक के सफर में उन्होंने हर वो किरदार किया जिसकी वजह से वे एक महान अभिनेता के तौर पर जाने गए। हालांकि संजीदा इंसान के रूप में एक जैसी भूमिकाओं ने उनके अंदर के एक्टर को बेचैन कर दिया था। वह इसको लेकर बहुत चिंतित भी हुए थे।
करीब 23 साल पहले दिए एक इंटरव्यू में दिलीप कुमार ने कहा था कि फ़िल्मी कहानियों में ह्यूमर, कॉमेडी ड्रामा और क्लाइमेक्स जैसे जरूरी एलिमेंट्स तो उठा लिए जाते थे (तब), लेकिन जिस मैटेरियल में एक्टर के परफॉर्मेंस की गुंजाइश हो वो ही नहीं रहता था। अब इसके बिना कलाकार अपने किरदार से आगे बढ़कर काम नहीं कर सकता। दिक्कत ये थी कि कुछ छोटी चीजों को छोड़ दिया जाए तो बहस के लिए स्पेस भी नहीं था।
उस दौर में एक्टर को एक ही खांचे में फिट कर देने से उन्हें आगे की सफर को लेकर चिंता होने लगी थी। दिलीप कुमार बताते हैं कि उन्हें लगातार कई फिल्मों के अंत में मरना पड़ा। इस पर उन्हें चिंता होने लगी कि यदि अगली फिल्म में फिर मरना पड़ा, तो वे कौन सा नयापन लाएंगे। उन्होंने तब कहा था कि मरने के सारे आइडिया खर्च हो चुके थे।
दिलीप कुमार ने राजकपूर का भी उदाहरण देते हुए कहा था कि उन्हें भी एक ही खांचे में ढाल दिया गया था जबकि वे कमाल के और ड्रामा के बेमिसाल आर्टिस्ट थे। ऐसा भी नहीं है कि और राजकपूर ने भी इससे बाहर निकलने की कोशिश नहीं की। खैर दिलीप कुमार ने अपनी ट्रेजडी वाली छवि को राम-श्याम और शबनम के जरिए तोड़ा। दिलीप साहब को खूब पसंद किया गया। ये फ़िल्में अपने वक्त की बड़ी हिट्स में शुमार हैं।