पुण्यतिथि विशेष: राजेश खन्ना को बंबईया सिनेमा ने दिया ‘सुपर स्टार’ का खिताब
By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: July 18, 2023 11:04 AM2023-07-18T11:04:15+5:302023-07-18T11:08:49+5:30
हिंदी सिनेमा के प्रिंस ऑफ रोमांस राजेश खन्ना को बंबईया फिल्म इंडस्ट्री ने दिया पहले ‘सुपर स्टार’ का खिताब। उनके अभिनय ने सिनेमा के पर्दे को रूमानियत की चाशनी से तर-बतर कर दिया था।
नयी दिल्ली:राजेश खन्ना वह अभिनेता थे, जिन्होंने हिंदी सिनेमा में रूमानियत पैदा की, वैसे तो राज कपूर को सिनेमा का ‘शो-मैन’ कहा जाता है लेकिन सिनेमा के प्रिंस ऑफ रोमांस राजेश खन्ना को बंबईया फिल्म इंडस्ट्री ने दिया पहले ‘सुपर स्टार’ का खिताब। 18 जुलाई 2012 को मुंबई में बारिश हो रही थी, लेकिन लोगों ने कहा आसमान रो रहा है क्योंकि उस दिन हिंदी सिनेमा के पहले सुपर स्टार राजेश खन्ना की जिंदगी हमेशा के लिए खामोश हो गई थी।
राजेश खन्ना ने साल 1971 में आयी ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्म 'आनंद' में गुलजार का लिखा एक संवाद कहा था, “जिंदगी और मौत ऊपर वाले के हाथ में है जहांपनाह, जिसे ना आप बदल सकते हैं ना मैं। हम सब तो रंगमंच की कठपुतलियां हैं..."। आज से ठीक 11 साल पहले जब राजेश खन्ना का कारवां मुंबई की सड़कों से आखिरी बार गुजर रहा था तो 'आनंद' का यही संवाद अनगिनत लोगों के जेहन में कौंध रहा था क्योंकि राजेश खन्ना सचमुच में अपने अंतिम सफर पर निकल गये थे।
आज हम बात कर रहे हैं राजेश खन्ना की, उनके उन गुजरे हुए पलों की, उनके अभिनय की, जिसमें मोहब्बत और इश्क की दीवानगी थी और 60 के दशक में यही हिंदी सिनेमा का मुख्य आधार बन गई। उससे पहले के आसिफ, ख्वाजा अहमद अब्बास, बासु भट्टाचार्य, शंभु मित्रा जैसे निर्देशकों ने राज कपूर, देवानंद और दिलीप कुमार के जरिये 50 के दशक का हिंदी सिनेमा गढ़ा था।
राजेश खन्ना ने सिनेमा के पर्दे रूमानियत की चाशनी से तर-बतर कर दिया
50 के दशक में समाजवाद के रंग में रंगा हिंदी सिनेमा 60 के मध्यातंर तक करवट ले चुका था और उसका झुकाव समाजवाद की जगह ‘प्रेम’ की तरफ हो गया था। वैसे सिनेमा में पहले भी प्रेम था लेकिन ज्यादा मायने में फिल्में भारत के नव निर्माण से जुड़ी हुई थी।
लेकिन राजेश खन्ना के दौर में, उनके अभिनय से सिनेमा के पर्दे रूमानियत की चाशनी से तर-बतर हो गये थे। राजेश खन्ना ने हिंदी सिनेमा का कलेवर बदल दिया। सेल्यूलाइड के पर्दे पर जब राजेश खन्ना की इंट्री होती तो लड़कियां उनकी झलक पाकर पागल हो जाती थीं। उनके अभिनय की दिवानगी इस कदर थी कि लड़कियां खून भरे खत मे प्यार भरे अल्फाजों से अपने मोहब्बत का इजहार किया करती थीं।
राजेश खन्ना जिस रास्ते गुजर जाते, उन रास्तों की उड़ती हुई धूल से लड़कियां मांग भरा करती थीं। राजेश खन्ना की कार धूल से नहीं बल्कि लड़कियों की लिपस्टिक की छाप से सराबोर रहा करती थी।
फिल्मों में आने से पहले राजेश खन्ना का नाम जतीन खन्ना था
9 दिसंबर 1942 को पंजाब के अमृतसर में पैदा हुए राजेश खन्ना फिल्मों में आने से पहले जतीन खन्ना हुआ करते थे। पैदा होने के बाद चुन्नी लाल खन्ना ने उनके पिता हीरानंद खन्ना से उन्हें गोद ले लिया था और इस तरह से राजेश खन्ना की परवरिश चुन्नीलाल खन्ना के बेटे के तौर पर हुई।
चुन्नीलाल खन्ना परिवार समेत साल 1935 में मुंबई आकर ठाकुरद्वार स्थित सरस्वती निवास में बस गये। उसके बाद सेबेस्टियन स्कूल से शुरू हुई जतिन खन्ना की शुरूआती शिक्षा, जहां रवि कपूर भी उनके साथ पढ़ा करते थे, जो बाद में जितेंद्र के नाम से हिंदी सिनेमा में मशहूर एक्टर हुए।
स्कूल के समय ही साल 1965 में फिल्म फेयर ने एक टैलंट हंट का आयोजन किया। इस टैलेंट हंट के जज थे हिंदी सिनेमा के जाने-माने निर्देशक बिमल रॉय, मशहूर अभिनेता-निर्देशक गुरुदत्त और प्रख्यात निर्देशक यश चोपड़ा।
फिल्म फेयर के टैलंट हंट में जीता अभियन का मौका
फिल्म फेयर के टैलंट हंट में 1000 उभरते कलाकारों ने ऑडिशन दिया। लेकिन अदाकारी की हुनरबाजी में बाजी लगी जतिन खन्ना के हाथ और वो उस टैलेंट हंट के विनर बने। जतिन खन्ना यानी बाद के रादेश खन्ना ने उस टैलंट हंट में जिसे हरा कर यह खिताब अपने नाम किया वो भी बाद में हिंदी सिनेमा विनोद मेहरा के नाम से अमर हुए।
टैलंट जीतने के बाद राजेश खन्ना ने साल 1966 में चेतन आनंद की फिल्म ‘आखिरी खत’ में फल्म इंडस्ट्री में कदम रखा लेकिन उन्हें साल 1969 में असली पहचान दी फिल्म निर्देशक शक्ति सामंत ने दी अपनी फिल्म ‘आराधना’ से। इस फिल्म ने राजेश खन्ना को हिंदी सिनेमा में स्थापित कर दिया। फिल्म का गीत, ‘मेरे सपनों की रानी कब आयेगी तू’ आज भी सदाबहार गीतों में शुमार किया जाता है।
राजेश खन्ना ने साल 1969 से 1971 तक मात्र 2 सालों में लगातार 15 सुपरहिट फिल्में दीं और इस तरह से वो बने हिंदी सिनेमा के पहले सुपरस्टार। राजेश खन्ना को फिल्मफेयर के सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार भी साल 1970 में पहली बार मनमोहन देसाई की फिल्म ‘सच्चा झूठा’ के लिए मिला। 70 का दशक राजेश खन्ना के नाम रहा। हिंदी सिनेमा में राजेश खन्ना को काका के नाम से बुलाया जाने लगा।
राजेश खन्ना के बारे में सिनेमा इंडस्ट्री में मुहावरा था, ‘ऊपर आका, नीचे काका'
राजेश खन्ना ने साल 1973 में 31 साल की उम्र में 16 साल की डिंपल कपाडि़या से शादी कर ली। राज कपूर की फिल्म ‘बॉबी’ से सुपरहीट हिरोइन डिंपल कपाड़िया ने अपना सफल फिल्मी जीवन राजेश खन्ना के लिए ताखे पर रख दिया क्योंकि राजेश खन्ना ऐसा स्टारडम था। कहते हैं कि उस जमाने में बड़े-बड़े फिल्म प्रोड्यूसर राजेश खन्ना के घर के बाहर लाइन लगाकर खड़े रहा करते थे। उस दौर में एक मुहावरा हिंदी सिनेमा इंडस्ट्री में खूब चला करता था, ‘ऊपर आका, नीचे काका”।
राजेश खन्ना ने अपने जीवनकाल में करीब 163 फ़िल्मों में काम किया। जिनमें से 128 फ़िल्मों में उन्होंने लीड रोल किया। उनकी फ़िल्मों में ‘बहारों के सपने’, ‘आराधना’, ‘दो रास्ते’, ‘बंधन’, ‘सफ़र’, ‘कटी पतंग’, ‘आन मिलो सजना’, ‘आनंद’, ‘सच्चा-झूठा’, ‘दुश्मन’, ‘अंदाज़’, ‘हाथी मेरे साथी’, ‘अमर प्रेम’, ‘दिल दौलत दुनिया’, ‘जोरू का ग़ुलाम’, ‘मालिक’, ‘शहज़ादा’, ‘बावर्ची’, ‘अपना देश’ प्रमुख हैं।
इसके अलावा राजेश खन्ना ने ‘मेरे जीवनसाथी’, ‘अनुराग’, ‘दाग़’, ‘नमक हराम’, ‘आविष्कार’, ‘अजनबी’, ‘प्रेम नगर’, ‘हमशक्ल’, ‘रोटी’, ‘आपकी क़सम’, ‘प्रेम कहानी’, ‘महाचोर’, ‘महबूबा’, ‘त्याग’, ‘पलकों की छांव में’, ‘आशिक़ हूं बहारों का’, ‘छलिया बाबू’, ‘कर्म’, ‘अनुरोध’, ‘नौकरी’, ‘भोला-भाला’, ‘जनता हवलदार’, ‘मुक़ाबला’, ‘अमरदीप’, ‘प्रेम बंधन’, ‘थोड़ी सी बेवफ़ाई’, ‘आंचल’, ‘फिर वही रात’, ‘बंदिश’, ‘क़ुदरत’, ‘दर्द’, ‘धनवान’, ‘अशांति’, ‘जानवर’, ‘धर्मकांटा’, ‘सुराग़’, ‘राजपूत’, ‘नादान’, ‘सौतन’, ‘अगर तुम न होते’, ‘अवतार’, ‘आ अब लौट चलें’, ‘प्यार ज़िंदगी है’ और ‘क्या दिल ने कहा’ फिल्मों में भी काम किया।
राजेश खन्ना लालकृष्ण आडवानी से हारे थे और शत्रुघ्न सिन्हा को हराया था
फिल्में में कालजयी अभिनय के लिए राजेश खन्ना को तीन बार फ़िल्मफ़ेयर अवॉर्ड मिला। उन्हें साल 1971 की फ़िल्म ‘सच्चा झूठा’, साल 1971 की फिल्म ‘आनंद’ और साल 1975 की फिल्म ‘आविष्कार’ के लिए फ़िल्मफ़ेयर मिला। इसके अलावा साल 2005 में राजेश खन्ना को फिल्मफेयर के लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड से भी सम्मानित किया गया।
राजेश खन्ना 90 के दशक में राजीव गांधी के कहने पर राजनीति में आ गए और उन्होंने साल 1991 में नई दिल्ली से कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा का चुनाव लड़ा और भारतीय जनता पार्टी के दिग्गज नेता लालकृष्ण आडवाणी को कड़ी चुनौती दी, लेकिन हार गए। लाल कृष्ण आडवाणी ने जीत के बाद नई दिल्ली की सीट छोड़ दी क्योंकि वो गुजरात के गांधी नगर सीट से भी चुनाव जीते थे।
नई दिल्ली सीट ख़ाली होने के बाद राजेश खन्ना ने दोबारा पर्चा भरा लेकिन लालकृष्ण आडवाणी ने उस उपचुनाव में उनके सामने फ़िल्म अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा को उतार दिया। कहते हैं कि राजेश खन्ना इस बात से बहुत नाराज हुए। राजेश खन्ना ने उपचुनाव में शत्रुघ्न सिन्हा को भारी मतों से हरा दिया और उसके बाद पूरे जीवन शत्रुघ्न सिन्हा से कभी बात नहीं की।
राजेश खन्ना ने साल 1996 का लोकसभा चुनाव भी नई दिल्ली से लड़ा लेकिन इस बार उन्हें भाजपा की ओर से खड़े जगमोहन ने हरा दिया। साल 1996 में मिली सियासी हार के बाद वो सक्रिय राजनीति से दूर हो गये लेकिन चुनाव के मौके पर वो कांग्रेस उम्मीदवारों के पक्ष में प्रचार करने के लिए पूरे देश में घूमा करते थे।