AIFF 2025: साई परांजपे को मिलेगा पद्मपाणि लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार
By रुस्तम राणा | Updated: December 28, 2024 21:18 IST2024-12-28T21:16:21+5:302024-12-28T21:18:04+5:30
AIFF 2025: इस वर्ष, महोत्सव का सबसे प्रतिष्ठित सम्मान - पद्मपाणि, लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड प्रसिद्ध निर्देशक, पटकथा लेखक, निर्माता और नाटककार, साई परांजपे को भारतीय सिनेमा में उनके अमूल्य योगदान के लिए प्रदान किया जाएगा।

AIFF 2025: साई परांजपे को मिलेगा पद्मपाणि लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार
AIFF 2025: भारत और दुनिया भर की अनूठी फिल्मों का एक वार्षिक उत्सव, 10वां अजंता-एलोरा अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (एआईएफएफ 2025) 15 से 19 जनवरी, 2025 तक छत्रपति संभाजीनगर में निर्धारित है। इस वर्ष, महोत्सव का सबसे प्रतिष्ठित सम्मान - पद्मपाणि, लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड प्रसिद्ध निर्देशक, पटकथा लेखक, निर्माता और नाटककार, साई परांजपे को भारतीय सिनेमा में उनके अमूल्य योगदान के लिए प्रदान किया जाएगा।
यह घोषणा आज यहां एआईएफएफ आयोजन समिति के अध्यक्ष नंदकिशोर कागलीवाल, मुख्य संरक्षक अंकुशराव कदम और एआईएफएफ के मानद अध्यक्ष, निदेशक आशुतोष गोवारिकर द्वारा की गई। पद्मपाणि पुरस्कार चयन समिति में प्रसिद्ध फिल्म समीक्षक लतिका पडगांवकर (अध्यक्ष), निर्देशक आशुतोष गोवारिकर, सुनील सुकथांकर और चंद्रकांत कुलकर्णी शामिल हैं। पुरस्कार में पद्मपाणि स्मृति चिन्ह, सम्मान पत्र और दो लाख रुपये की नकद राशि शामिल है।
पद्मपाणि लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड बुधवार, 15 जनवरी, 2025 को शाम 6 बजे रुक्मिणी ऑडिटोरियम, एमजीएम यूनिवर्सिटी कैंपस, छत्रपति संभाजीनगर में फेस्टिवल के उद्घाटन समारोह के दौरान साईं परांजपे को प्रदान किया जाएगा। यह समारोह विभिन्न राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय कलाकारों, प्रतिष्ठित हस्तियों और विभिन्न क्षेत्रों के फिल्म प्रेमियों की गरिमामयी उपस्थिति में होगा। यह फिल्म फेस्टिवल अगले पांच दिनों तक पीवीआर आईनॉक्स, प्रोजोन मॉल में चलेगा।
साई परांजपे चार दशकों से भी ज़्यादा समय से भारतीय सिनेमा में एक प्रमुख हस्ती रही हैं। उनकी प्रभावशाली हिंदी फ़िल्मों ने भारतीय सिनेमा को एक अनूठी पहचान दी है। उनकी फ़िल्में अपने गहरे भावनात्मक स्पर्श और मानवीय रिश्तों पर व्यावहारिक टिप्पणी के लिए जानी जाती हैं।
उनकी कुछ उल्लेखनीय कृतियों में स्पर्श (1980), चश्मे बद्दूर (1981), कथा (1983), दिशा (1990), चूड़ियाँ (1993) और साज़ (1997) शामिल हैं। फ़िल्म निर्देशन के अलावा, श्रीमती परांजपे ने कई महत्वपूर्ण नाटक और बच्चों के नाटकों का निर्देशन किया है। उन्होंने मराठी साहित्य, ख़ास तौर पर बच्चों के साहित्य में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है।