वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉगः अमेरिका की गीदड़ भभकियां

By वेद प्रताप वैदिक | Published: February 26, 2022 03:01 PM2022-02-26T15:01:48+5:302022-02-26T15:02:02+5:30

यदि नाटो राष्ट्र ईमानदार और दमदार होते तो वह तत्काल ही अपनी फौजें वहां भेजकर यूक्रे नी संप्रभुता की रक्षा करते लेकिन उनका बगलें झांकना सारी दुनिया को चकित कर गया।

Vedpratap Vaidik blog america jackals ukrain russia war | वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉगः अमेरिका की गीदड़ भभकियां

वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉगः अमेरिका की गीदड़ भभकियां

यूक्रेन के मामले में अमेरिका और नाटो बुरी तरह से मात खा गए हैं। अमेरिका ने अपनी बेइज्जती यहां पहली बार नहीं कराई है। इसके पहले भी वह क्यूबा, वियतनाम और अफगानिस्तान में धूल चाट चुका है। रूसी नेता व्लादीमीर पुतिन ने दुनिया के सबसे शक्तिशाली और सबसे संपन्न सैन्य गुट को चारों खाने चित करके रख दिया है। जो देश रूस से टूटकर नाटो में शामिल हो गए थे, अब उनके भी रोंगटे खड़े हो गए होंगे। उन्हें भी यह डर लग रहा होगा कि यूक्रेन के बाद अब कहीं उनकी बारी तो नहीं आ रही है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन का यह बयान कितना बेशर्मी भरा है कि उनकी सेनाएं सिर्फ नाटो देशों की रक्षा करेंगी। वे अपनी सेनाएं यूक्रेन नहीं भेजेंगे। पुतिन ने पहले यूक्रेन के तीन टुकड़े कर दिए और फिर उन्होंने वहां अपनी ‘शांति सेना’ भिजवा दी। यदि नाटो राष्ट्र ईमानदार और दमदार होते तो वह तत्काल ही अपनी फौजें वहां भेजकर यूक्रे नी संप्रभुता की रक्षा करते लेकिन उनका बगलें झांकना सारी दुनिया को चकित कर गया।

मुझे तो उसी वक्त लगा कि अमेरिका और नाटो अब तक जो धमकियां दे रहे थे, वे शुद्ध नपुंसकता के अलावा कुछ नहीं थीं। अमेरिका के गुप्तचर विभाग ने पहले से दावा किया था कि रूस तो यूक्रे न पर हमले की तैयारी कर चुका है। इसलिए बाइडेन और उनके रक्षा मंत्नी यह नहीं कह सकते कि यूक्रेन पर अब रूसी हमला अचानक हुआ है। इसका अर्थ क्या हुआ? क्या यह नहीं कि अमेरिका और नाटो गीदड़ भभकियां देते रहे। इसका दूरगामी अभिप्राय यह भी है कि रूस को अब नई विश्व शक्ति बन जाने का अवसर अमेरिका ने प्रदान कर दिया है। यूक्रे न तो समझ रहा था कि अमेरिका उसका संरक्षक है लेकिन अमेरिका ने ही यूक्रे न को मरवाया है। 

यदि अमेरिका उसे पानी पर नहीं चढ़ाता तो उसके राष्ट्रपति जेलेंस्की हर हालत में पुतिन के साथ कोई न कोई समझौता कर लेते और यह विनाशकारी नौबत आती ही नहीं। जर्मनी और फ्रांस के नेताओं ने मध्यस्थता की कोशिश जरूर की लेकिन वह कोशिश विफल ही होनी थी, क्योंकि ये दोनों राष्ट्र नाटो के प्रमुख स्तंभ हैं और नाटो यूक्रेन को अपना सदस्य बनाने पर आमादा है, जो कि इस झगड़े की असली जड़ है। इस सारे विवाद में सबसे उत्तम मध्यस्थ की भूमिका भारत निभा सकता था लेकिन दोनों पक्षों से वह सिर्फ शांति की अपील करता रहा, जो शुद्ध लीपापोती या खानापूरी के अलावा कुछ नहीं है। मैं पिछले कई हफ्तों से कहता रहा हूं कि भारत कोई पहल जरूर करे। अब तो भारत का राष्ट्रहित इसी में है कि हमारे 20 हजार छात्र और राजनयिक लोग यूक्रेन में सुरक्षित रहें और हम तेल के बढ़े भावों को बर्दाश्त कर सकें।
 

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