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ब्लॉग: चीन की चाल! यूक्रेन युद्ध में व्लादिमीर पुतिन कर रहे गलती पर गलती

By वेद प्रताप वैदिक | Updated: April 25, 2022 14:38 IST

रूस-यूक्रेन युद्ध में चीन का फायदा ही फायदा है. इस युद्ध में रूस जितना भी कमजोर पड़ता जाएगा, चीन की पकड़ मजबूत होगी. रूस कमजोर होने के बाद चीन की ओर झुकेगा और शी जिनपिंग का इसका ही इंतजार है.

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चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग यूक्रेन के सवाल पर अब भी रूस का साथ दिए जा रहे हैं. वे रूस के हमले को हमला नहीं कह रहे हैं. उसे वे विवाद कहते हैं. यूक्रेन में हजारों लोग मारे गए और लाखों लोग देश छोड़कर भाग खड़े हुए लेकिन रूसी हमले को रोकने की कोशिश कोई राष्ट्र नहीं कर रहा है. चीन यदि भारत की तरह तटस्थ रहता तो भी माना जाता कि वह अपने राष्ट्रहितों की रक्षा कर रहा है लेकिन उसने अब खुलेआम उन प्रतिबंधों की भी आलोचना शुरू कर दी है, जो नाटो देशों और अमेरिका ने रूस के विरुद्ध लगाए हैं. चीनी नेता शी ने कहा है कि ये प्रतिबंध फिजूल हैं. सारा मामला बातचीत से हल किया जाना चाहिए. यह बात तो तर्कसंगत है लेकिन चीन पुतिन और बाइडेन से बात क्यों नहीं करता? उसका कारण यह भी हो सकता है कि यूक्रेन-हमले से चीन का फायदा ही फायदा है. रूस जितना ज्यादा कमजोर होगा, वह चीन की तरफ झुकता चला जाएगा. रूस की अर्थव्यवस्था इतनी कमजोर हो जाएगी कि मध्य एशिया और सुदूर एशिया में भी रूस का स्थान चीन ले लेगा. शीतयुद्ध के जमाने में अमेरिका के विरुद्ध सोवियत संघ की जो हैसियत थी, वह अब चीन की हो जाएगी. चीन ने संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय मंचों पर रूस के पक्ष में वोट देकर पुतिन के हाथ मजबूत किए हैं ताकि इस मजबूती के भ्रमजाल में फंसकर पुतिन गलतियों पर गलतियां करते चले जाएं. शी एक पत्थर से दो शिकार कर रहे हैं. एक तरफ वे अमेरिका को सबक सिखा रहे हैं और दूसरी तरफ वे रूस को अपने मुकाबले दोयम दर्जे पर उतार रहे हैं. हो सकता है कि पुतिन ने जो यूक्रेन के साथ किया है, वैसा ही ताइवान के साथ करने का चीन का इरादा हो. अमेरिका ने जैसे जेलेंस्की को धोखा दे दिया, वैसे ही वह ताइवान को भी अधर में लटका सकता है. यदि अंतरराष्ट्रीय राजनीति इसी पगडंडी पर चलती रही तो विश्व के शक्ति-संतुलन में नए अध्याय का सूत्रपात हो जाएगा.

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