US President Donald Trump: डोनाल्ड ट्रम्प की शैली विश्व के लिए कितनी घातक?, विकासशील और विकसित मुल्कों को रास नहीं आ रहा
By राजेश बादल | Updated: April 2, 2025 05:20 IST2025-04-02T05:20:17+5:302025-04-02T05:20:17+5:30
US President Donald Trump: लोकतंत्र के रूप में स्थापित होने के बाद अमेरिका को शिल्पी की तरह गढ़ने के काम में अब्राहम लिंकन, जॉर्ज वाॅशिंगटन, फ्रैंकलिन डी रूजवेल्ट, थियोडोर रूजवेल्ट से लेकर बराक ओबामा ने जो योगदान दिया है, उसी के बूते ट्रम्प डींग हांक रहे हैं.

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US President Donald Trump: डोनाल्ड ट्रम्प अब अमेरिका ही नहीं शेष संसार के लिए भी भारी पड़ने लगे हैं. भले ही वे विश्व के एक आधुनिक लोकतंत्र के मुखिया हों लेकिन वे इस विचारधारा की नुमाइंदगी करते नहीं दिखाई देते. अपने दूसरे कार्यकाल में वे जिस रूप में प्रकट हुए हैं, वह यकीनन लोकतंत्र का एक विकृत संस्करण है. उनका यह रूप विकासशील और विकसित मुल्कों को रास नहीं आ रहा. लोकतंत्र कभी भी अधिनायकवादी सोच को संरक्षण नहीं देता और न ही वह सबसे योग्य और सक्षम व्यक्ति को यह हक देता है कि वह धमकी देकर या रौद्र रूप दिखाकर छोटे-बड़े राष्ट्रों को अपने सामने झुकाने के लिए दबाव डाले. मगर डोनाल्ड ट्रम्प यह कर रहे हैं. वे अमेरिका की एक सदी में कमाई गई लोकतांत्रिक यश पूंजी को गंवाने के रास्ते पर चल पड़े हैं.
पद संभालने के बाद उनके नित नए विरोधाभासी बयान अखिल विश्व को हैरान और भ्रमित कर रहे हैं. अगर उनके हालिया बयानों पर गौर करें तो पाते हैं कि कभी वे रूस के राष्ट्रपति पुतिन के साथ खड़े हुए हैं. ऐसा लगता है कि पुतिन के साथ उनका जन्म-जन्मांतर का रिश्ता है और वे चौबीस घंटे में रूस-यूक्रेन जंग खत्म कराने में सक्षम हैं. लेकिन चंद रोज बाद ही वे पुतिन को धमकाने की मुद्रा में आ जाते हैं.
वे यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की को दबाव में लेकर दुर्लभ यूक्रेनी खनिज संपदा पर अमेरिकी गिद्ध दृष्टि डालते हैं, उनसे समझौता कराते हैं और जैसे ही वह समझौते की समीक्षा की बात करते हैं तो उन्हें आतंकित करने का प्रयास करते हैं. चीन पर उनकी स्थायी वक्र दृष्टि है तो हिंदुस्तान भी उनके स्वार्थ संसार से बाहर नहीं है. भारत के लिए वे कभी नरमी बरतते हैं तो कभी टैरिफ के बहाने खौफ में डालने के बयान देते हैं.
ईरान तो उनकी स्थायी शत्रु सूची में है. वे दशकों से अमेरिका के सहयोगी-पिछलग्गू रहे कनाडा, मेक्सिको और यूरोपीय देशों तक को नहीं छोड़ते. समझना मुश्किल है कि पूंजीपति से राजनेता बना यह महत्वपूर्ण व्यक्ति आखिर चाहता क्या है? अमेरिका फर्स्ट की नीति समझ में आती है और अपने राष्ट्र का हित संरक्षण समझ में आता है,
पर उनकी शैली समूचे विश्व को नाराज करके अमेरिका फर्स्ट की नीति को कैसे पुष्पित-पल्लवित करेगी, यह समझ से परे है. दरअसल डोनाल्ड ट्रम्प की सारी नीतियां पूंजी केंद्रित, विस्तारवादी और धमकी केंद्रित हैं. कभी वे कनाडा को अपना 51 वां राज्य बन जाने की सलाह देते हैं और वहां के प्रधानमंत्री को अमेरिकी गवर्नर के रूप में देखना चाहते हैं तो कभी वे पनामा नहर को फिर हथियाना चाहते हैं.
ट्रम्प कहते हैं कि अमेरिका की बेवकूफी के चलते पच्चीस बरस पहले इस नहर का नियंत्रण पनामा को दे दिया गया था. इस फैसले का चीन ने सर्वाधिक लाभ उठाया और अपना कारोबार बढ़ाया. अब ट्रम्प हाथ मल रहे हैं. इसीलिए वे नहर का कब्जा वापस चाहते हैं. पनामा के राष्ट्रपति ने उनको करारा उत्तर दिया है. चूंकि पनामा को अब चीन का संरक्षण है, इस कारण यह आसान नहीं है.
डोनाल्ड ट्रम्प बांग्लादेश के सेंट मार्टिन द्वीप को भी चाहते हैं ताकि अमेरिका चीन की निगरानी कर सके. पाकिस्तान में अपना फौजी अड्डा बनाने की उसकी पुरानी चाह है, लेकिन अब वह चीन के प्रभाव में है. अमेरिका का यह सपना पूरा नहीं होगा, पर अब दूसरे कार्यकाल में ट्रम्प चाहते हैं कि एक बार फिर अफगानिस्तान में अपना अड्डा बनाएं, जिससे रूस और चीन, दोनों पर बारीक नजर रखी जा सके.
विडंबना यह है कि ट्रम्प अमेरिका के स्वार्थों का संरक्षण एक उद्योगपति या महत्वाकांक्षी पूंजीपति की तरह करना चाहते हैं. उनका यह दृष्टिकोण लोकतांत्रिक धारा के साथ नहीं बहता बल्कि साम, दाम, दंड और भेद का उपयोग करना चाहता है. इसके दूरगामी परिणाम बड़े भयावह हो सकते हैं. रविवार को ट्रम्प ईरान को सीधी चेतावनी दे बैठे. उन्होंने एक समाचार एजेंसी से बातचीत में यह धमकी दी.
उन्होंने कहा, ‘‘यदि ईरान अपने न्यूक्लियर प्रोग्राम पर समझौता नहीं करता तो अमेरिका के हमले का सामना करने के लिए तैयार रहे. अगर ईरान ऐसा नहीं करता तो बमबारी होगी. यह ऐसी बमबारी होगी, जैसी उन्होंने पहले कभी नहीं देखी होगी. उनके पास एक मौका है. अगर वे नहीं माने तो उन पर चार साल पहले की तरह सेकेंडरी टैरिफ लगा दूंगा.
ट्रम्प ने अपनी धमकी को दिखाते हुए डिएगो गार्सिया में अपने सबसे घातक बी-2 स्पिरिट बॉम्बर विमान भी तैनात कर दिए हैं. यहां से ईरान की राजधानी तेहरान केवल 5267 किमी है. अफसोस की बात यह कि ट्रम्प अपनी इस विकृत सोच को छिपाना भी नहीं चाहते. वे अपनी किताब आर्ट ऑफ द डील में लिखते हैं, ‘‘सौदा करने का मेरा तरीका काफी सरल और सीधा है.
मैं बहुत ऊंचा लक्ष्य रखता हूं. फिर मैं जो चाहता हूं, उसे पाने के लिए जी-जान से कोशिश करता रहता हूं. कभी-कभी मैं अपनी इच्छा से कम पर समझौता कर लेता हूं, लेकिन ज्यादातर प्रसंग ऐसे होते हैं ,जिनमें मैं फिर वही हासिल कर लेता हूं, जो मैं चाहता हूं.’’ यह ट्रम्प का घनघोर व्यावसायिक नजरिया है. इसके दूरगामी नतीजे संभवतया अमेरिका के लिए अच्छे नहीं होंगे.
अब आते हैं डोनाल्ड ट्रम्प के टैरिफ आक्रमण पर. जब डोनाल्ड ट्रम्प टैरिफ लगाने की चेतावनियां अलग-अलग देशों को देते हैं तो वे भूल जाते हैं कि अमेरिका असल में आज जिस मजबूत स्थिति में है, उसके पीछे अकेले वे नहीं हैं. एक लोकतंत्र के रूप में स्थापित होने के बाद अमेरिका को शिल्पी की तरह गढ़ने के काम में अब्राहम लिंकन, जॉर्ज वाॅशिंगटन, फ्रैंकलिन डी रूजवेल्ट, थियोडोर रूजवेल्ट से लेकर बराक ओबामा ने जो योगदान दिया है, उसी के बूते ट्रम्प डींग हांक रहे हैं. मान्य सिद्धांत है कि बड़ा और मजबूत देश हमेशा छोटे मुल्क को मदद करता रहा है.
अमेरिका ने यही किया है. उसने टैरिफ को कभी सोने की तराजू पर नहीं तौला. वह अपने निर्यात शुल्क को कमजोर देशों के लिए उदार रखता रहा है. इसका उसे लाभ मिला है. अब ट्रम्प उल्टी गंगा बहाना चाहते हैं. वे बराबरी का सौदा करेंगे तो छोटे से छोटा राष्ट्र भी यही करेगा. नतीजतन अमेरिका इतिहास में सबसे खराब स्थिति का सामना करेगा.