शोभना जैन का ब्लॉग: महाशक्तियों की उलझती कूटनीति के बीच संतुलन साधने की चुनौती
By शोभना जैन | Published: January 29, 2022 09:18 AM2022-01-29T09:18:08+5:302022-01-29T09:23:00+5:30
पाकिस्तान की नजर इस पर टिकी है कि इस कारण भारत और रूस के रिश्ते अगर कुछ प्रभावित होते हैं तो उसके लिए रूस का हाथ पकड़ने का मौका बन सकता है।
रूस और यूक्रेन के बीच मंडराते जंग के बादल की खबर पिछले कुछ समय से अंतरराष्ट्रीय खबरों की सुर्खियों में बनी हुई है. संकट सिर्फ यूक्रेन संकट से सीधे तौर पर जुड़े यूक्रेन, रूस, अमेरिका और नाटो देशों तक ही सीमित नहीं है.
जिस तरह से इस गहराते संकट की आंच दुनिया भर को घेर रही है, उसको लेकर भारत की भी अपनी चिंताएं हैं कि किस तरह से वह महाशक्तियों के इस बढ़ते सैन्य टकराव के बीच विशेष तौर पर अपनी वर्तमान भूराजनैतिक परिस्थितियों में अपने राष्ट्रीय हितों को लेकर कूटनीतिक संतुलन बनाए.
दरअसल, इस टकराहट के चलते आज दुनिया कूटनीतिक रिश्तों के नए समीकरणों में उलझती नजर आ रही है. स्थिति को इस घटनाक्रम से समझा जा सकता है कि जर्मनी के नेवी प्रमुख के एशिम शॉनबाख को गत सप्ताह अपनी नई दिल्ली यात्ना के दौरान यूक्रेन संकट की पृष्ठभूमि में रूस, अमेरिका और चीन को लेकर दिए गए चर्चित बयान के कारण भारत की राजधानी से ही अपना इस्तीफा देना पड़ा.
शॉनबाख ने चीन को काबू में रखने के लिए रूस और खासकर रूस के राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन की अहमियत बताई, और एक तरह से यह कहा कि चीन को काबू में रखने के लिए रूस की अहमियत जर्मनी और भारत दोनों के लिए जरूरी है.
ऐसे में जबकि रूस के खिलाफ यूक्रेन मसले पर अमेरिका और यूरोपीय देशों के सैन्य गठबंधन नाटो आमने-सामने हैं, नाटो के एक प्रमुख सहयोगी जर्मनी के नौसेना प्रमुख के अपने देश और इन देशों के ‘जाहिराना पक्ष’ से अलग हटकर दिए गए बयान से यूरोप में हंगामा बरपा हो गया तथा शॉनबाख को भारत में ही अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा.
भारत के लिए यह अपने राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि रखते हुए महाशक्तियों के साथ अपने रिश्तों में संतुलन बनाए रखने की एक बड़ी चुनौती वाला समय है. खासतौर पर ऐसे में जबकि भारत सीमा पर चीन की आक्रामकता से निबट रहा है और रिश्तों का दूसरा छोर देखें तो रूस भारत की सैन्य सप्लाई का बड़ा भरोसेमंद साथी रहा है, उसके साथ मैत्नी समय की कसौटी पर खरी भी उतरी है.
अगर रूस यूक्रेन पर हमला करता है तो रूस पर अमेरिका, नाटो देशों द्वारा लगाए जाने वाले आशंकित प्रतिबंधों के मद्देनजर उसके लिए चीन के सहारे की जरूरत और बढ़ जाएगी. ऐसे में रूस चीन के बीच गहराता गठबंधन न केवल भारत चीन सीमा पर चीन की बढ़ती आक्रामकता के लिए और खराब रहेगा बल्कि इन दोनों (चीन, रूस) के बीच के रिश्तों से भारत को रूस से मिलनेवाली सैन्य आपूर्ति पर भी असर पड़ सकता है, जो एक बड़ा जोखिम होगा.
भारत की करीब 60 फीसदी सैन्य आपूर्ति रूस से होती है और यह एक बेहद अहम पक्ष है. दिलचस्प बात यह भी है कि बीजिंग में चार फरवरी से शुरू होने वाले शीत ओलंपिक के उद्घाटन समारोह में रूसी राष्ट्रपति पुतिन भी जाने वाले हैं. इस दौरे में पुतिन चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से भी मिलेंगे.
चीन का खास दोस्त पाकिस्तान भी रूस के साथ द्विपक्षीय संबंध बढ़ाने की कोशिश कर रहा है. अमेरिका के साथ रणनीतिक साङोदारी खत्म होने के बाद से ही पाकिस्तान रूस के साथ द्विपक्षीय साङोदारी बढ़ाने में लगा है.
पाकिस्तान की नजर इस पर टिकी है कि यूक्रेन संकट के कारण भारत और रूस के रिश्ते अगर कुछ प्रभावित होते हैं तो पाकिस्तान के लिए रूस का हाथ पकड़ने का मौका बन सकता है. हाल ही में पाकिस्तानी पीएम ने फोन कर रूसी राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन को पाकिस्तान आने का न्यौता दिया है. पुतिन अगर पाकिस्तान जाते हैं तो यह उनका पहला दौरा होगा.
एक तरफ जहां अमेरिका और चीन के बीच पहले से ही रिश्ते बेहद तल्ख चल रहे हैं और रूस के साथ रिश्तों की तल्खियां भी जगजाहिर हैं, ऐसे में दूसरी तरफ अमेरिका और यूरोप के अनेक देश भारत के घनिष्ठ सामरिक साङोदार हैं. ये संबंध भी भारत के लिए बेहद अहम हैं, और भारत-प्रशांत क्षेत्न में अमेरिका के साथ भारत की रणनीतिक साङोदारी के प्रभावित होने का भी खतरा है.
बहरहाल, युद्ध की तमाम आशंकाओं के बावजूद सभी संबद्ध पक्ष भले ही आमने-सामने डटे हों लेकिन इस सैन्य टकराहट को टालने के लिए कूटनीतिक प्रयास जारी हैं. उम्मीद यही है कि सैन्य टकराहट की स्थिति से सभी संबद्ध पक्ष ही नहीं, पूरी दुनिया बचना चाहेगी, कूटनीतिक हल की जरूरत सभी संबद्ध पक्ष समझते हैं.
यही वजह है कि भारत ने दो धुरों पर खड़े अपने दो प्रमुख सहयोगी देशों, रूस और अमेरिका के राष्ट्राध्यक्षों पुतिन और बाइडेन की गत वर्ष जेनेवा में हुई मुलाकात का स्वागत किया था.