शोभना जैन का नजरियाः कश्मीर मुद्दे पर दृढ़ता के साथ-साथ मानवीय डिप्लोमेसी
By शोभना जैन | Published: August 19, 2019 08:44 AM2019-08-19T08:44:09+5:302019-08-19T08:44:09+5:30
भारत ने सहज मानवीय डिप्लोमेसी के साथ-साथ दो टूक शब्दों में इसे भारत का आंतरिक मामला बताते हुए कहा कि इसका ‘बाह्य सीमाओं पर असर’ नहीं पड़ने वाला है.
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में जम्मू-कश्मीर मुद्दे पर हुई ‘अनौपचारिक चर्चा’ के दौरान पाकिस्तान और उसके खास, चीन द्वारा कश्मीर मुद्दे के अंतर्राष्ट्रीयकरण की तमाम कोशिशें विफल साबित हो गईं. भारत ने सहज मानवीय डिप्लोमेसी के साथ-साथ दो टूक शब्दों में इसे भारत का आंतरिक मामला बताते हुए कहा कि इसका ‘बाह्य सीमाओं पर असर’ नहीं पड़ने वाला है. यूएन रिकॉर्ड्स के मुताबिक, सुरक्षा परिषद ने पिछली बार जम्मू-कश्मीर मुद्दे पर 1964 में चर्चा की थी. 16 जनवरी 1964 के एक पत्न में यूएन में पाक के प्रतिनिधि ने कश्मीर पर तत्काल बैठक बुलाने के लिए कहा था.
जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे का प्रावधान हटाए जाने के बाद हालांकि वहां सामान्य स्थित बहाल होने में कुछ समय तो लगेगा ही, लेकिन साथ ही इस पूरे घटनाक्र म में डिप्लोमेसी की अहम भूमिका है. बहरहाल, भारतीय प्रतिनिधि ने दृढ़ता से कहा कि ‘अनुच्छेद 370’ को वहां अधिक सामाजिक-आर्थिक विकास लागू करने के उद्देश्य से हटाया गया है. बैठक परिषद के पांच स्थायी और 10 अस्थायी सदस्यों के लिए ही थी. गौरतलब है कि पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त करने के भारत के फैसले पर चर्चा के लिए सुरक्षा परिषद की आपात बैठक बुलाने की औपचारिक मांग की थी. लेकिन पाकिस्तान की मंशा के अनुसार जम्मू-कश्मीर मसले को तूल नहीं दिया जा सका. इस बैठक से पहले कश्मीर मुद्दे पर बौखलाए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को समर्थन जुटाने के लिए फोन भी किया था.
भारत इस मामले में साफ कर चुका है कि जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाना और उसे केंद्रशासित प्रदेश बनाना देश का अंदरूनी मामला है. इसमें किसी अन्य देश को दखल देने का कोई अधिकार नहीं है, पाकिस्तान इस सच्चाई को स्वीकार करे. जम्मू-कश्मीर मसले पर अगर कोई वार्ता होगी तो पाकिस्तान से द्विपक्षीय आधार पर होगी. यह भारत की स्थायी और घोषित नीति है.