रहीस सिंह का ब्लॉग: कोरियाई प्रायद्वीप में अमेरिका और रूस
By रहीस सिंह | Published: May 8, 2019 07:21 PM2019-05-08T19:21:28+5:302019-05-08T19:21:28+5:30
हनोई (वियतनाम) वार्ता असफल होने के बाद उत्तर कोरियाई नेता किम जोंग की रूस यात्रा और उसके पश्चात लंबी दूरी वाले कई रॉकेट लॉन्चरों और सामरिक हथियारों का परीक्षण करना, शांति के संकेत तो नहीं हो सकते।
एशिया-प्रशांत क्षेत्र में कोरियाई प्रायद्वीप में वातावरण फिर से युद्धोन्मादी होता दिख रहा है। कारण यह है कि कुछ दिन पहले तक जो उत्तर कोरिया अमेरिका के साथ मिलकर कोरियाई प्रायद्वीप में शांति स्थापित करने के लिए प्रतिबद्ध दिख रहा था, वह अब उससे दूर होकर न केवल रूस की ओर खिसक रहा बल्कि मॉस्को-बीजिंग-प्योंगयांग त्रिकोण का निर्माण एक धुरी के रूप में होता दिख रहा है।
हनोई (वियतनाम) वार्ता असफल होने के बाद उत्तर कोरियाई नेता किम जोंग की रूस यात्रा और उसके पश्चात लंबी दूरी वाले कई रॉकेट लॉन्चरों और सामरिक हथियारों का परीक्षण करना, शांति के संकेत तो नहीं हो सकते। हालांकि डोनाल्ड ट्रंप का कहना है कि “किम जानता है कि मैं उनके साथ हूँ और वह मुझसे किया वादा नहीं तोड़ना चाहते हैं। संधि जरुरी होगी।”
अब प्रश्न यह उठता है कि क्या यह मामला उतना सरल और सीधी रेखा में चलने वाला रह गया है जैसा कि डोनाल्ड ट्रंप कहते दिख रहे हैं अथवा रूस के जुड़ जाने के बाद मामला थोड़ा पेचीदा हो चुका है ? एक सवाल यह भी है कि अमेरिका पहले उत्तर कोरिया के साथ निकटता स्थापित करने की जितनी जल्दी में था उतना ही हनोई वार्ता के समय उदासीन क्यों दिखा?
उत्तर कोरिया की आधिकारिक समाचार एजेंसी ’कोरियन सेंट्रल न्यूज एजेंसी’ (केसीएनए) ने पिछले दिनों खबर दी कि किम ने एक अभ्यास का आदेश दिया था, जिसमें लंबी दूरी वाले कई रॉकेट लॉन्चर (जो कि संयुक्त राष्ट्र प्रतिबंधों के दायरे में नहीं आते हैं) और सामरिक हथियार शामिल थे। किम ने शनिवार को हुए परीक्षण पर गहरा संतोष व्यक्त किया है और इस बात पर जोर दिया है कि सीमा पर मौजूद सैनिकों हाई अलर्ट पर रहने की जरूरत है। उन्होंने यह भी कहा कि राजनीतिक संप्रभुता और आर्थिक स्व-निर्वाह की रक्षा के लिए कॉम्बैट क्षमता को बढ़ाने की जरूरत है।
लेकिन दक्षिण कोरिया के रक्षा मंत्रालय के विश्लेषण से संकेत मिलता है कि प्योंगयांग ने 240 मिलीमीटर और 300 मिलीमीटर के कई रॉकेट लॉन्चर और लगभग 70 से 240 किलोमीटर मारक क्षमता वाले नए प्रकार के सामरिक हथियारों का परीक्षण किया है। चूंकि यह परीक्षण जापान सागर में हुआ है इसलिए यह दक्षिण कोरिया और जापान के लिए एक सामरिक चुनौती की तरह है। उधर अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने इशारे-इशारे में यह कहने की कोशिश की कि किम जोंग उन ने इस तरह का कदम रूस के सहयोग के कारण उठाया।
उनका कहना था कि पुतिन से मुलाकात के बाद उठाए गये कदम का मतलब आप जान सकते हैं। लेकिन पिछले ही माह अमेरिका ने उपग्रह से मिले चित्रों की जानकारी के आधार पर कहा था कि उत्तर कोरिया परमाणु बम बनाने के लिए किसी रेडियोएक्टिव मेटेरियल को रिप्रोसेस करने में लगा है। यह आशंका सेंटर फॉर स्
ट्रेटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज की तरफ से जताई गई थी। इसका तात्पर्य यह हुआ कि उत्तर कोरिया पहले से ही इस तैयारी में था।
जो भी हो, संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रतिबंधों के बावजूद उत्तर कोरिया अपने हथियारों का विकास करने की दिशा में लम्बे समय से आगे बढ़ रहा है। उसने काफी पहले ही ह्वासोंग-15 नाम की मिसाइल का परीक्षण कर लिया था जिसकी मारक क्षमता 13 हज़ार किमी से ज़्यादा है। इसका मतलब साफ है कि किम जोंग उन की मिसाइलें दुनिया के किसी भी कोने तक परमाणु हथियारों को लेकर पहुंच सकती हैं। उल्लेखनीय है कि प्योंगयांग से सिओल की दूरी करीब 200 किमी है, टोक्यो की लगभग 1300 किमी और वाशिंगटन की 11000 किमी के आसपास।
यही नहीं इससे पहले 3 सितम्बर 2017 को उत्तर कोरिया द्वारा हाइड्रोजन बम का परीक्षण किया गया था जिसके बाद संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा प्रस्ताव संख्या 2375 लाकर नए प्रतिबंध लगाए गये थे। उत्तर कोरिया के इस कदम से पहले तक यही अनुमान लगाया जाता था कि उत्तर कोरिया जो भी कर रहा है वह चीनी आर्बिट के अंदर रहकर कर रहा है लेकिन इसके बाद स्पष्ट हो गया कि वह अतिरिक्त शक्ति अर्जित कर चीनी आर्बिट भी छोड़ चुका है और स्वयं ‘शक्ति का केन्द्र’ (सेंटर ऑफ पॉवर) बनने की कोशिश कर रहा है। यहीं से रूस का उत्तर कोरिया के प्रति नजरिया बदलना शुरू हुआ। यही नहीं उसने अमेरिका के साथ बातचीत से पहले ही प्योंगयांग को वार्ता का निमंत्रण भी दिया था, लेकिन तब यह संभव नहीं हो सका। परन्तु किम जोंग उन 25 अप्रैल को रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से व्लादिवोस्तोक में मिले।
व्लादिवोस्तोक, वही स्थान है जहां वर्ष 2002 में व्लादिमीर पुतिन की किम के पिता और तत्कालीन उत्तर कोरिया प्रमुख किम जोंग इल से मुलाकात हुयी थी। इसलिए कुछ समय के लिए ही सही पर ऐसा लगने लगता है कि किम जोंग उन अब अपने परम्परागत रिश्तों को पुनः धार देना चाहते हैं। ट्रंप और किम की मुलाकात से पहले ही रूस की तरफ से किम के लिए वार्ता का निमंत्रण गया था लेकिन सिंगापुर में ट्रंप और किम की मुलाकात हुयी। जब ट्रंप और किम की मुलाकातें शुरू हुईं तो ऐसा लगा था कि रूस को पूरी तरह से दरकिनार कर दिया गया है।
ध्यान रहे कि रूस कभी भी यह नहीं चाहता कि उत्तर कोरिया के मामले में अमेरिका एक धुरी की तरह निर्णयों पर पहुंचे बल्कि वह चाहता है कि उत्तर कोरिया, दक्षिण कोरिया के साथ चार देश अमेरिका, रूस, चीन, जापान वार्ता यानि ‘सिक्स पार्टी टॉक’ करके मामले को सुलझाया जाए। लेकिन अमेरिका ऐसा नहीं चाहता। उसकी इच्छा है कि उत्तर कोरिया एकतरफा तौर पर अपने परमाणु हथियार नष्ट करे। हालांकि अमेरिका की ही तरह चीन और रूस भी उत्तर कोरिया के परमाणु राष्ट्र होने से असहज हैं लेकिन प्रभुत्व की लड़ाई में संतुलन अपने पक्ष में करने के लिए रूस इसे दरकिनार करता हुआ दिख रहा है। दरअसल कोरियाई प्रायद्वीप में जा हो रहा है उसकी जड़ें शीतयुद्धकाल में निहित हैं। उस दौर में सोवियत संघ के साथ उत्तर कोरिया के सैन्य व व्यापारिक सम्बंध थे।
इसके पीछे वैचारिक और राजनीतिक कारण थे। लेकिन 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद रूस और उत्तर कोरिया के बीच व्यापारिक सम्बन्ध कमजोर हो गये और उत्तर कोरिया चीन की तरफ खिसक गया। लेकिन पुतिन ने जब वर्ष 2014 में उत्तर कोरिया को सोवियत संघ द्वारा दिया गया कर्ज माफ कर दिया तो दोनों फिर से निकटता स्थापित हो गयी। अब दोनों देश फिर से रणनीतिक रिश्तों को मजबूती देना चाहते हैं ताकि अमेरिका से सौदेबाजी की जा सके। ध्यान रहे कि यदि इसमें चीन भी सक्रिय हो गया तो मॉस्को-बीजिंग-प्योंगयांग त्रिकोण का निर्माण होगा जो दुनिया को नए शीतयुद्ध की ओर ले जा सकता है।
बहरहाल, अमेरिका से बातचीत विफल होने के बाद किम जोंग उन यह दिखाना चाहते हैं कि उसके पास रूस और चीन जैसे ताकतवर मित्र हैं इसलिए वे उत्तर कोरिया के आर्थिक भविष्य के लिये अमेरिका पर निर्भर नहीं हैं। चूंकि रूस पीवोट टू ईस्ट (पीवोट टू ईस्ट एशिया) नीति पर काम कर रहा है और चीन अपनी आक्रामकता को बरकरार रखना चाहता है इसलिए ऐसा लगता है कि तीनों देश एक धुरी के रूप में संगठित होने की कोशिश करेंगे और अमेरिका अपने वर्चस्व को बनाए रखने की तैयारी करेगा।