पाकिस्तान सीनेट : तब और अब, जावेद जब्बार का ब्लॉग
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: March 1, 2021 01:01 PM2021-03-01T13:01:15+5:302021-03-01T13:02:55+5:30
सेनेट पाकिस्तान की द्विसदनीय विधायिका का उच्चसदन है. यहां सदस्यों का कार्यकाल 6 वर्ष होता है. संविधान में सेनेट भंग करने का कोई भी प्रावधान नहीं दिया गया है.
वर्ष 2021 में पाकिस्तान में सीनेट के चुनाव ने मुझे 1985 के सीनेट के चुनावों की याद दिला दी है, वे यादें जो खासकर चुनावों की कथित या वास्तविक लागत से जुड़ी हैं.
1985 के मध्य के आसपास मेरी पत्नी शबनम ने मुझे यह मानने के लिए प्रेरित किया कि आरक्षित सीट पर एक टेक्नोक्रेट के रूप में सीनेट के चुनाव के लिए मैं पात्न था. उसी महीने की शुरुआत में आयोजित नई नेशनल असेंबली और प्रांतीय विधानसभाओं के चुनावों की तरह, सीनेट के चुनाव भी गैर-दलीय आधार पर होने थे.
लेकिन कम से कम तीन दलों- जेआई, जेयूआई और पगारा मुस्लिम लीग ने इसमें अनौपचारिक रूप से भाग लिया. मार्शल लॉ के अंतर्गत जनरल जिया उल हक के शासन में होने वाले चुनाव का अन्य सभी प्रमुख दलों ने बहिष्कार किया. तीन साल के अंदर, गैर पार्टी आधारित विधान मंडलों ने सैन्य शासक को इस कदर अस्थिर कर दिया कि घबरा कर उन्होंने मई 1988 में उन्हें भंग कर दिया.
फरवरी 1985 में वापस लौटें. कोई प्रत्यक्ष राजनीतिक अनुभव नहीं होते हुए भी मैंने टेक्नोक्रेट्स के लिए आरक्षित सीट से अपनी किस्मत आजमाने का फैसला किया, क्योंकि मुझे लग रहा था कि गैरलोकतांत्रिक ढंग से थोपे गए मार्शल लॉ के बावजूद राष्ट्रीय मामलों में योगदान दे सकने के लिए मेरे जैसे गैर राजनीतिक व्यक्ति के लिए इससे नई संभावनाओं के द्वार खुल सकेंगे.
हमने एक राजनीतिक दिग्गज और अपने नजदीकी मित्रों से इस बारे में सलाह मांगी. हमारी दलीलों को सुनने के बाद, बुद्धिमान राजनेता ने कहा : ‘‘जब तक पांच मिलियन रु.(2021 के हिसाब से 50 मिलियन से भी अधिक?) खर्च करने के लिए तैयार न हों, चुनाव लड़ना भूल जाइए.’’
उन्होंने स्पष्ट किया कि सिंध विधानसभा के सांसदों के आवश्यक वोट खरीदने के लिए यह न्यूनतम राशि चाहिए होगी. यह बेहद निरुत्साहित करने वाली बात थी. मेरी प्रतिक्रिया थी कि मैं कभी भी रिश्वत के जरिए चुना जाना मंजूर नहीं करूंगा. हमने उम्मीदवार की विशेषताओं से युक्त एक सामान्य बायोडाटा तैयार किया और उसे बंटवा दिया.
दोस्तों व शुभचिंतकों के एक छोटे समूह की व्यापक मदद के साथ, जिसमें हमीद हारून और नजीब जफर शामिल थे, हमने ग्रामीण और शहरी इलाकों के सांसदों से संपर्क करना शुरू किया. हमारी केवल कुछ ही लोगों तक सीधी पहुंच थी, जिनके माध्यम से हमने दूसरों से संपर्क किया. हुसैन हारून ने बहुत मदद की. व्यापक रूप से सम्मानित अब्दुल हमीद जटोई की सर्वाधिक सहानुभूति मिली.
मार्च की शुरुआत में एक सज्जन बिना किसी पूर्व सूचना के आए. वे थारपरकर के सांसद टीकमदास कोहली थे. उन्होंने बताया कि उन्होंने मेरी उम्मीदवारी के पर्चे पढ़े हैं और मेरे उन स्वैच्छिक कार्यो के बारे में जानते हैं जो उनके क्षेत्र में कुछ हफ्ते पहले शुरू हुए थे. उन्होंने कहा कि बिना मांगे मुङो अपना वोट दे रहे हैं. मुझे नहीं पता था कैसे उनका शुक्रिया अदा करूं.
फिर भी, नामांकन पत्र दाखिल करने के अंतिम दिन, हम प्रस्तावक और अनुमोदक के लिए दो सांसदों को खोजने में असमर्थ रहे. तब हमें अप्रत्याशित रूप से मदद मिली. मेरे विश्वविद्यालय के वरिष्ठ साथी और अच्छे दोस्त अनवर मकसूद के बड़े भाई अहमद मकसूद ने कहा कि मुझे नवाबशाह के दोनों सांसदों शौकत अली शाह और नवाज अली शाह से तुरंत मिलना चाहिए. इस प्रकार समय सीमा खत्म होने से ठीक पहले मेरा नामांकन पत्र दाखिल हो पाया.
मतदान के दिन 14 मार्च को, जब मतदान जारी ही था, मैं घर चला गया ताकि असफलता के लिए अपने आपको तैयार कर सकूं. वहां फोन आया कि जीतने के लिए आवश्यक न्यूनतम 14 प्रथम वरीयता वाले वोट मिलने के बजाय मुझे 21 प्रथम वरीयता वाले वोट मिले थे. मेरी पत्नी के विश्वास, मित्रों, शुभचिंतकों और अजनबी सांसदों के समर्थन का यह प्रतिफल था- जिनमें से किसी ने भी एक राजनीतिक नौसिखिए से एक रुपया भी नहीं मांगा था. मुझे निर्धारित सीमा दस हजार रु. (पैम्फलेट छपवाने के लिए) से अधिक कुछ खर्च नहीं करना पड़ा.
1985 में भी हो सकता है ऐसे कुछ लोग रहे हों, जिन्होंने वोट खरीदने के लिए रकम का भुगतान किया हो. लेकिन अधिकांश विजेताओं ने अपने विभिन्न औपचारिक या अनौपचारिक संबंधों के जरिए जीत हासिल की थी- राजनीतिक संबंधों, पारिवारिक, कबीलाई संबंधों, व्यक्तिगत प्रतिष्ठा आदि के बल पर.
2000 में जनरल मुशर्रफ के मंत्रिमंडल से मेरे इस्तीफे के बाद 2003 की शुरुआत में, संभावित पुनर्निर्वाचन के लिए प्रस्तावक और अनुमोदक प्राप्त करने के अपने छोटे से प्रयास के दौरान, मेरी हैरानी की सीमा नहीं रही, जब एक महिला सांसद ने ‘मात्र’ 20 मिलियन रु. के बदले में मेरे नामांकन पत्र पर हस्ताक्षर करने का प्रस्ताव दिया.
मैं पहले कभी भी उस महिला को अपने कार्यालय से जल्द से जल्द बाहर निकलने के लिए कहने को बाध्य नहीं हुआ था. यह विडंबना ही है कि 2021 के कथित तौर पर पार्टी आधारित चुनावों के लिए जितनी विशाल राशि खर्च की जा रही है, उसकी तुलना में 1985 में लंबे मार्शल लॉ के दौरान हुए गैर पार्टी आधारित चुनाव जीतने के लिए खर्च की जाने वाली राशि बेहद कम थी.