ब्लॉग: चेतावनियों के बाद भी आत्मघात करता पाक
By राजेश बादल | Published: February 22, 2022 08:28 AM2022-02-22T08:28:24+5:302022-02-22T08:30:32+5:30
वह पिछले पंद्रह में से नौ साल तक संगठन की ग्रे लिस्ट में रहा है और अपना लगभग सात लाख करोड़ का सीधा नुकसान कर चुका है. इसके अलावा ग्रे सूची में रहने के कारण उसे अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक और एशिया विकास बैंक से कोई भी सहायता मिलना नामुमकिन सा है.
अब यह मान लेना चाहिए कि पाकिस्तान अपने संकट का जाल खुद ही बुनता है और जानबूझकर उससे बाहर नहीं निकलना चाहता. 39 बड़े राष्ट्रों के समूह फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स के साथ पंद्रह साल से उसका बर्ताव इस बात का पक्का सबूत है.
यह संस्था दिवालियेपन के कगार पर खड़े इस देश को बाहर निकाल सकती है. दो-तीन बार उसने ईमानदारी से इस बात का प्रयास किया कि करीब 22 करोड़ की आबादी सम्मान से अपना पेट भर सके. मगर पाकिस्तान कभी भी अपने वादे को पूरा नहीं कर सका.
वहां आतंक पनपता रहा और कट्टरपंथी उसे संरक्षण देते रहे. कभी कश्मीरी आतंकवादियों को संरक्षण तो कभी अफगानिस्तान में अशांति फैलाने के लिए तालिबानी गुटों को प्रश्रय तो कभी अलकायदा के ओसामा बिन लादेन और उसके गिरोह के लोगों को अपने देश में पालना इस देश की नीति रही है.
फौज और आईएसआई इन तत्वों को पनाह देते रहे हैं. इस मुल्क की प्राथमिकताओं में कभी भी विकास का ढांचा मजबूत करना नहीं रहा. सोमवार को शुरू हुई एफएटीएफ की बैठक में पाकिस्तान का भविष्य भी तय होने जा रहा है.
एफएटीएफ सिर्फ यह चाहता है कि पाक अपनी धरती पर उग्रवादी समूहों को पालना पोसना बंद करे. लेकिन पाकिस्तान यह सुनिश्चित करने में नाकाम रहा है.
वह पिछले पंद्रह में से नौ साल तक संगठन की ग्रे लिस्ट में रहा है और अपना लगभग सात लाख करोड़ का सीधा नुकसान कर चुका है. इसके अलावा ग्रे सूची में रहने के कारण उसे अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक और एशिया विकास बैंक से कोई भी सहायता मिलना नामुमकिन सा है.
यदि मौजूदा बैठक में उसे ग्रे सूची से हटाकर काली सूची में डाल दिया गया तो उसे दिवालिया होने से कोई चमत्कार ही बचा पाएगा. अंतरराष्ट्रीय स्तर की कोई संस्था उसे मदद या कर्ज नहीं देगी, बहुराष्ट्रीय कंपनियां वहां से अपना बोरिया बिस्तर समेट लेंगी, रेटिंग संस्थाएं अपनी नकारात्मक सूची में डाल देंगी और लगभग 35 लाख करोड़ रुपए के कर्ज में फंसे पाकिस्तान के लिए भीख का कटोरा हाथ में लेने के सिवा कोई विकल्प नहीं बचेगा.
संयुक्त राष्ट्र के आंकड़े तो और भयावह तस्वीर पेश करते हैं. उनके मुताबिक पाकिस्तान का समग्र कर्ज 283 अरब डॉलर है. जहां तक मौजूदा इमरान खान की सरकार का सवाल है तो यह अब तक की सबसे असफल सरकार मानी जा सकती है.
बीते तीन साल में यह सरकार 6 लाख 82 हजार करोड़ रुपए से अधिक का ऋण ले चुकी है. एक अनुमान के मुताबिक पाकिस्तान में प्रत्येक नागरिक पर औसतन 75 हजार रुपए का कर्ज है. यह आंकड़ा डराने वाला है.
चीन का कर्ज नहीं चुकाने के कारण वह भी बेहद खफा है. चीन के बैंकों का कुल ऋण ही 7 अरब डॉलर से अधिक है. अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और रेटिंग एजेंसी फिच पहले ही भारत के इस पड़ोसी को चेतावनियां दे चुके हैं.
सवाल यह है कि पाकिस्तान ऐसा क्यों कर रहा है? वह अपने नागरिकों की खुशहाली क्यों नहीं चाहता. उसे पता है कि माली हालत सुधारने के लिए आतंकवाद से तौबा करना जरूरी है और अपनी सीमाओं के भीतर चल रहे उग्रवादी प्रशिक्षण शिविर नष्ट करना आवश्यक है तो वह क्यों नहीं करता?
कश्मीर पर कब्जा करने का ख्वाब वह देश अपने बर्बाद होने की कीमत पर देख रहा है. तमाम देशों ने उसे कर्ज के जाल में उलझाया है. उसकी वित्तीय समस्या सुलझाने का काम किसी भी देश ने नहीं किया.
विडंबना है कि जो राष्ट्र उसकी सहायता कर सकता है, उससे वह लेना नहीं चाहता. भारत से व्यापार समाप्त करने का एकतरफा निर्णय तो पाकिस्तान का ही था. उसने 2019 में स्वयं ही भारत से व्यापार पर रोक लगाई थी. इसके बाद ही भारत ने मोस्ट फेवरेट नेशन का दर्जा भी समाप्त कर दिया था.
अब पाकिस्तान में ही मांग उठने लगी है कि बिना हिंदुस्तान से कारोबार खोले पाकिस्तान की स्थिति नहीं सुधरेगी. लेकिन इमरान खान इस मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए है. अलबत्ता इमरान खान के एक सलाहकार और उद्योगपति अब्दुल रजाक दाऊद ने सोमवार को भारत के साथ व्यापार शुरू करने पर जोर दिया है.
अब्दुल रजाक ने साफ-साफ कहा कि भारत के साथ व्यापार पाकिस्तान के लिए हर नजरिये से फायदेमंद है. इसे तुरंत खोलना चाहिए. यह बयान पाकिस्तान के उस ऐलान के खिलाफ है, जिसमें उसने कहा था कि कश्मीर में अनुच्छेद 370 फिर लागू नहीं किया गया तो वह भारत के साथ व्यापार प्रारंभ नहीं करेगा.
पाकिस्तान का यह ऐलान पाकिस्तान के लिए आत्मघाती साबित हुआ और वहां की जनता जरूरी चीजों के लिए तरस गई. पाकिस्तान को समझना होगा कि यदि वह कश्मीर मुद्दे को जिंदा रखकर अपनी सियासत करता रहा तो अवाम बेमौत मर जाएगी.
इमरान खान अपने लोगों को पद संभालने के बाद से कुछ नहीं दे पाए हैं. लोग परेशान हैं कि वे इस प्रधानमंत्री का क्या करें, जिसने पद पर बैठने के बाद उनकी सुनवाई नहीं की. लोगों की तकलीफें लगातार बढ़ती गईं.
महंगाई शिखर पर है. डीजल-पेट्रोल के दाम आम आदमी की पहुंच से बाहर हैं. स्वास्थ्य, शिक्षा और खेती की हालत बदतर हुई है. बेरोजगारी बढ़ी है. औसत आमदनी घटती जा रही है और हुकूमत तानाशाही का बर्बर स्वरूप दिखा रही है. कुल मिलाकर यह पड़ोसी अपने जन्म के बाद से सर्वाधिक बदहाली में जी रहा है.