राजेश बादल का ब्लॉग: पाकिस्तान इतिहास के बेहद नाजुक मोड़ पर

By राजेश बादल | Published: November 8, 2022 10:48 AM2022-11-08T10:48:35+5:302022-11-08T10:49:57+5:30

जिस देश में अवाम अपनी सेना से नफरत करने लग जाए तो यह उसके इरादों का प्रमाण है कि अब फौज और आईएसआई पाकिस्तान को अंग्रेजी हुकूमत की तरह लूट खसोट नहीं सकती। इसलिए हम अब इस पड़ोसी देश की जनता को शुभकामनाएं दें कि वह लोकतंत्र बहाली में कामयाब रहे।

Pakistan at a critical juncture in history | राजेश बादल का ब्लॉग: पाकिस्तान इतिहास के बेहद नाजुक मोड़ पर

राजेश बादल का ब्लॉग: पाकिस्तान इतिहास के बेहद नाजुक मोड़ पर

Highlightsपाकिस्तान के लोग अगर यह कारनामा करते हैं तो उपमहाद्वीप के लिए बेहतर होगा।एक लोकतांत्रिक पाकिस्तान हिंदुस्तान के नजरिये से भी अच्छा होगा। क्योंकि तब भारत से नफरत के आधार पर यह देश संचालित नहीं होगा।प्रसंग के तौर पर बता दूं कि इमरान के लॉन्ग मार्च का प्रसारण करने पर सरकार ने सारे चैनलों पर रोक लगा दी है।

कोई नहीं कह सकता कि वक्त कब करवट ले ले। देखते ही देखते एक लांछित और पराजित सा योद्धा महानायक बन जाता है और एक महानायक गुमनामी के अंधेरे में खो जाता है। हर देश में ऐसे राजनेता रहे हैं। इस नजरिये से पाकिस्तान इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण करवट ले रहा है। पहली बार आईएसआई और फौज इतने मुश्किल दौर का सामना कर रही है। वहां अवाम पचहत्तर साल से लोकतंत्र का ख्वाब देख रही है, लेकिन फौज ने कभी यह सपना पूरा होने नहीं दिया। हरदम वह अपने अंदाज में मुल्क की सरकारों से खिलौने की तरह खेलती रही है।

मगर अब पहली बार अहसास हो रहा है कि देश के करोड़ों लोग जैसे अपनी फौज से बगावत कर बैठे हैं। सेना भी इमरान खान के सामने खलनायक बन गई है, जिनको उसने ही संरक्षण दिया था। इमरान खान को जब प्रधानमंत्री पद छोड़ना पड़ा था तो अवाम ने राहत की सांस ली थी क्योंकि वे नाकारा प्रधानमंत्री साबित हुए थे। उन्हें यू-टर्न प्रधानमंत्री कहा जाता था। उनकी छवि प्लेबॉय जैसी थी। 

उनके रहते देश दिवालिया होने के कगार पर आ गया था। विदेश नीति में उनकी सरकार असफल रही। कूटनीति से वह सर्वथा अपरिचित थी और पूरा देश महंगाई तथा बेरोजगारी के बोझ से बिलबिलाने लगा था। मगर किस्मत ने पांसा पलट दिया। जब इमरान खान की नाकामियों से परेशान फौज ने उनके नीचे से दरी खींच ली तो फिर वे आईएसआई तथा सेना के खिलाफ आक्रामक मोर्चा खोल बैठे। देखते ही देखते वे हीरो बन गए। 

वे अमेरिका और अपने देश की सेना के खिलाफ खुलकर बोलने लगे। पहली बार इस तरह वहां किसी राजनेता ने सेना के विरोध में आंदोलन छेड़ा है। पाकिस्तान में किसी ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि कभी फौज के खिलाफ इतना बड़ा जनआंदोलन खड़ा हो जाएगा। अब इन दोनों संस्थाओं को इमरान के आरोपों से मुंह छिपाना पड़ रहा है। 

यह तो जांच के बाद ही पता चलेगा कि इमरान खान पर हालिया हमले के पीछे कौन है (बशर्ते जांच निष्पक्ष हो), फिलहाल तो देश यही मान रहा है कि इसके पीछे सेना और आईएसआई का पूरा हाथ है। इमरान खान को भले ही पाकिस्तान ने गंभीरता से न लिया हो, पर उनकी ओर से जो आरोप लगाए गए हैं, उनको निश्चित रूप से अत्यंत गंभीरता से लिया गया है। 

आलम यह है कि नवाज शरीफ, मरियम शरीफ, शाहबाज शरीफ और बिलावल भुट्टो जरदारी सभी बचाव की मुद्रा में हैं और इमरान लोकप्रियता के शिखर पर हैं। सरकार को नहीं सूझ रहा है कि वह सेना को बचाए या अपने को। इतिहास में पहली बार पाक फौज सरकार से गिड़गिड़ा रही है कि वह इमरान खान के खिलाफ कार्रवाई करे। पर सरकार कर भी क्या सकती है? उसने इमरान की लंबी यात्रा का प्रचार रोकने का भरपूर प्रयास किया। 
अखबारों को यात्रा का कवरेज नहीं करने का निर्देश दिया गया। इस चक्कर में दो युवा पत्रकारों की हत्या हो गई। तेज तर्राट पत्रकार अरशद शरीफ वहां एआरवाई चैनल में थे। उन्होंने इमरान खान के चीफ ऑफ स्टाफ रहे शाहबाज गिल को साक्षात्कार के लिए बुलाया। गिल ने आईएसआई और सेना को जमकर कोसा। इसके बाद फौज ने गिल को गिरफ्तार कर लिया। 

वह अरशद को भी घेरे में लेना चाहती थी, लेकिन इमरान खान की मदद से अरशद कीनिया भाग गए। वहां वे कीनिया पुलिस की गोली का निशाना बन गए। खबरें हैं कि आईएसआई ने कीनिया पुलिस से कहा था कि अरशद अपराधी है। गौरतलब यह है कि चैनल के मालिक सलमान इकबाल भी इमरान के करीबी हैं। जब फौज और आईएसआई ने उन पर शिकंजा कसा तो वे भी देश छोड़कर भाग गए।

इमरान समर्थक एक और महिला पत्रकार सदफ नईम चैनल 5 की निर्भीक संवाददाता थीं। एक रात पहले उन्होंने इमरान खान का इंटरव्यू लिया था और उनके पक्ष में सरकार पर तीखी टिप्पणियां की थीं। वे इमरान खान के लाहौर से इस्लामाबाद तक के लॉन्ग मार्च की रिपोर्टिंग कर रही थीं। इस दरम्यान वे इमरान की गाड़ी के पीछे चल रहे मीडिया कंटेनर में सवार थीं। जब वे कंटेनर पर पीस टू कैमरा रिकॉर्ड कर रही थीं, तभी एक व्यक्ति कंटेनर पर चढ़ा और उन्हें धक्का देकर भाग गया। सदफ नीचे गिरीं और कंटेनर के ड्राइवर ने उन पर गाड़ी चढ़ा दी। 

उन्होंने वहीं दम तोड़ दिया। प्रसंग के तौर पर बता दूं कि इमरान के लॉन्ग मार्च का प्रसारण करने पर सरकार ने सारे चैनलों पर रोक लगा दी है। इसके बाद खुद इमरान खान पर हमला हुआ। हालांकि इस हमले में उनके लिए संदेश छिपा है कि वे अब खामोश हो जाएं। सुरक्षा बलों और सेना में प्रशिक्षण दिया जाता है कि जिसे जान से नहीं मारना हो तो उसके पैरों पर गोली मारो। 

अन्यथा लियाकत अली खान से लेकर जुल्फिकार अली भुट्टो और बेनजीर भुट्टो तो सेना के गुस्से का निशाना बने ही हैं। कुल मिलाकर पाकिस्तान बेहद नाजुक मोड़ पर खड़ा है। यदि इस मौके पर सेना और आईएसआई की तलवार म्यान में बंद हो गई तो देश में लोकतंत्र की खिड़की खुल सकती है। वह ऐतिहासिक घड़ी होगी। हालांकि यह नामुमकिन है, लेकिन विश्व इतिहास गवाह है कि अवाम के आगे कोई तानाशाह और फौजी हुकूमत नहीं टिकी है। 

पाकिस्तान के लोग अगर यह कारनामा करते हैं तो उपमहाद्वीप के लिए बेहतर होगा। एक लोकतांत्रिक पाकिस्तान हिंदुस्तान के नजरिये से भी अच्छा होगा। क्योंकि तब भारत से नफरत के आधार पर यह देश संचालित नहीं होगा। तब देश के लिए सेना होगी। सेना के लिए देश नहीं होगा। अपने खातिर अपने पैरों पर टिका पाकिस्तान होगा। यह कैसे और किस तरह होगा, कोई नहीं जानता। 

जिस देश में अवाम अपनी सेना से नफरत करने लग जाए तो यह उसके इरादों का प्रमाण है कि अब फौज और आईएसआई पाकिस्तान को अंग्रेजी हुकूमत की तरह लूट खसोट नहीं सकती। इसलिए हम अब इस पड़ोसी देश की जनता को शुभकामनाएं दें कि वह लोकतंत्र बहाली में कामयाब रहे।

Web Title: Pakistan at a critical juncture in history

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