पाकिस्तान में मुल्ला-सैन्य गठजोड़ का जन्म 1947 में ही हो गया था?, जवानों के साथ 200-300 की टुकड़ी...

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: May 20, 2025 05:28 IST2025-05-20T05:28:35+5:302025-05-20T05:28:35+5:30

किताब ‘द स्टोरी ऑफ द इंटीग्रेशन ऑफ द इंडियन स्टेट्स’ में 1956 में कहा था कि सीमावर्ती कबाहलियों (अफरीदी, वजीर, मेहमूद तथा स्वादिस) के पांच हजार आंतकवादियों ने पाकिस्तानी सेना के कुछ जवानों के साथ 200, 300 की टुकड़ी में लॉरियों में बैठकर 22 अक्तूबर 1947 को कश्मीर में घुसपैठ की थी.

Mullah-military nexus in Pakistan born in 1947 itself contingent 200, 300 soldiers along blog Vappala Balachandran Former Special Secretary Cabinet Secretariat | पाकिस्तान में मुल्ला-सैन्य गठजोड़ का जन्म 1947 में ही हो गया था?, जवानों के साथ 200-300 की टुकड़ी...

सांकेतिक फोटो

Highlightsआतंकवादियों को हासिल करने के लिए धार्मिक पार्टियों पर निर्भर रहने की परंपरा पाकिस्तान में शुरू हो गई थी.जनरल नसीरउल्लाह को ‘अफगान तालिबान’ को जन्म देने के लिए भी जाना जाता है.सरकारी सूचना विभाग में उसकी कठपुतलियों ने धार्मिक उन्माद को और बढ़ावा दिया.

वप्पाला बालाचंद्रन, पूर्व विशेष सचिव, कैबिनेट सचिवालय

यह प्रचलित धारणा गलत है कि पाकिस्तान में वहां की सेना तथा मुल्लाओं के नापाक गठजोड़ के बीज सन् 1976 में पाकिस्तान के सेना प्रमुख के रूप में जनरल जिया उल हक ने बोए थे. पाकिस्तानी अखबार ‘द फ्राइडे टाइम्स’ ने अपने 9 नवंबर 2021 के संस्करण में कहा था कि कश्मीर में भारत के साथ संघर्ष के लिए 1947 में ही हथियार बंद आतंकवादियों को हासिल करने के लिए धार्मिक पार्टियों पर निर्भर रहने की परंपरा पाकिस्तान में शुरू हो गई थी.

महाराजा हरिसिंह को कश्मीर को भारत में विलीन करवाने के लिए राजी करवाने वाले प्रसिद्ध राजनयिक वीपी मेनन ने अपनी बहुचर्चित किताब ‘द स्टोरी ऑफ द इंटीग्रेशन ऑफ द इंडियन स्टेट्स’ में 1956 में कहा था कि सीमावर्ती कबाहलियों (अफरीदी, वजीर, मेहमूद तथा स्वादिस) के पांच हजार आंतकवादियों ने पाकिस्तानी सेना के कुछ जवानों के साथ 200, 300 की टुकड़ी में लॉरियों में बैठकर 22 अक्तूबर 1947 को कश्मीर में घुसपैठ की थी.

1993 से 1996 के बीच बेनजीर भुट्टो की सरकार में गृहमंत्री रहे दिवंगत जनरल नसीरउल्लाह बाबर ने 2007 में एक इंटरव्यू में कहा था कि पाकिस्तान के मौजूदा जीवनकाल के आधे समय सरकार का संचालन सेना मुल्ला गठजोड़ ने किया. बाकी के आधे समय में देश राजनीतिक दलों के हाथों में रहा. जनरल नसीरउल्लाह को ‘अफगान तालिबान’ को जन्म देने के लिए भी जाना जाता है.

1971 में भारत के साथ पाकिस्तान की शर्मनाक पराजय के बाद जुल्फिकार अली भुट्टो जैसे नेता सेना-मुल्ला गठजोड़ को तोड़ सकते थे लेकिन राजनीतिक हितों की खातिर उन्होंने सार्वजनिक जीवन में धर्म की घुट्टी पिलाना शुरू कर दिया. भुट्टो के करीबी रहे मुब्बशीर हुसैन ने अपनी पुस्तक ‘द मिराज ऑफ पॉवर: एन इंक्वायरी इन टू द भुट्टो ईयर्स 1971-1977’ में कहा है कि सामंती ताने-बाने तथा सरकारी सूचना विभाग में उसकी कठपुतलियों ने धार्मिक उन्माद को और बढ़ावा दिया.

जिया-उल-हक को अफगान युद्ध के लिए कट्टरपंथी इस्लामिक ताकतों को इकट्टा करने का दोषी ठहराया जाता है लेकिन भुट्टो ने 1973 में ही यह काम शुरू कर दिया था. 1975 में जब मोहम्मद दाऊद खान ने तख्ता पलटकर अफगानिस्तान की सत्ता पर कब्जा कर लिया, तब उन्हें सत्ता से हटाने के लिए भुट्टो ने ब्रिगेडियर नसीरूल्लाह बाबर को गुलबुद्दीन हिकमतयार जैसे कट्टर पंथियों को ‘फ्रंटियर स्काउट्स’ में भर्ती करने का निर्देश दिया था. बाद में आईएसआई के माध्यम से कट्टरपंथियों का उपयोग करना पाकिस्तानी सेना की रणनीति बन गई.

1994 में नसीरूल्लाह बाबर को बेनजीर भुट्टों की सरकार में आंतरिक मामलों (गृह) का मंत्री बनाया गया.  इन कट्टरपंथियों का उपयोग बेनजीर अमेरिका के व्यापारिक हिताें की खातिर क्वेटा से मध्य एशिया जाने वाले हाईवे को खोलने के लिए करना चाहती  थी.

भारतीय खुफिया तंत्र ने 1995 में क्वेटा से तुर्कमोनिस्तान के बीच ट्रकों के एक काफिले का नेतृत्व खुद बाबर को करते हुए पाया था. इस काफिले में अमेरिका के तत्कालीन राजदूत जॉन मोंजो सहित कई राजनयिक थे और उन्हें तालिबानी लड़ाके सुरक्षा प्रदान कर रहे थे. पाकिस्तान में सेना-मुल्ला गठजोड़ की जड़ें काफी गहरी हैं. 

Web Title: Mullah-military nexus in Pakistan born in 1947 itself contingent 200, 300 soldiers along blog Vappala Balachandran Former Special Secretary Cabinet Secretariat

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