कृष्णप्रताप सिंह का ब्लॉग: अंधाधुंध उपभोग के दौर में मार्क्स की याद
By कृष्ण प्रताप सिंह | Published: May 5, 2022 12:42 PM2022-05-05T12:42:52+5:302022-05-05T12:44:35+5:30
कार्ल मार्क्स का जन्म 5 मई 1818 को जर्मनी में हुआ था. ‘दुनिया के मजदूरो एक हो’ का नारा देने वाले मार्क्स की चर्चा आज भी होती है।
‘तुम गरीब इसलिए नहीं हो कि ईश्वर की यही इच्छा है. तुम गरीब इसलिए भी नहीं हो कि तुमने पिछले जन्म में कोई पाप किया था. तुम गरीब इसलिए हो क्योंकि राजनीतिक व आर्थिक परिस्थितियां ही ऐसी हैं. तुम गरीब इसलिए हो क्योंकि कुछ लोग हैं, जो तुम्हें गरीब बनाए रखना चाहते हैं. इसलिए उठो, जागो और सदैव याद रखो, तुम्हारे पास खोने के लिए केवल तुम्हारी बेड़ियां हैं और जीतने के लिए संपूर्ण विश्व. दुनिया के मजदूरो एक हो.’
1818 में पांच मई को यानी आज ही के दिन जर्मनी में जन्मे वैज्ञानिक समाजवाद के प्रणेता कार्ल मार्क्स ने यह बात कहते हुए ‘दुनिया के मजदूरो एक हो’ का नारा दिया तो दुनिया ने अपनी बेहतरी का सर्वथा नया सपना देखा था. निस्संदेह, वह सपना आज तक पूरा नहीं हो पाया, लेकिन इससे दार्शनिक, अर्थशास्त्री, समाजविज्ञानी और पत्रकार के तौर पर कार्ल मार्क्स का महत्व कम नहीं होता.
कार्ल मार्क्स ने 1844 में ही चेता दिया था, ‘पूंजी जैसी निर्जीव वस्तु सजीवों-खासकर मनुष्यों-को संचालित करेगी तो उन्हें हृदयहीन बना देगी.’ अब यह तो कोई बताने की बात है नहीं कि हृदयहीन होकर कोई न खुद खुशी का अनुभव कर सकता है और न किसी को खुशी बांट सकता है. इसीलिए 1837 में मार्क्स ने अपने पिता को पत्र में लिखा था, ‘संसार में सबसे ज्यादा खुशी उसी को मिलती है, जो सबसे ज्यादा लोगों की खुशी के लिए काम करता है.’
मार्क्स लोगों के विचारों को उनकी भौतिक स्थिति का सबसे प्रत्यक्ष उद्भव बताते हैं, जबकि लोकतंत्र को समाजवाद तक जाने का रास्ता मानते और कहते हैं कि महिलाओं के उत्थान के बिना कोई भी महान सामाजिक बदलाव असंभव है.
दिलचस्प यह है कि एक समय उन्होंने कहा था, ‘अगर कोई एक चीज निश्चित है तो यह कि मैं खुद मार्क्सवादी नहीं हूं.’ अलबत्ता, 14 मार्च, 1883 को लंदन में अंतिम सांस लेने तक संसार समर में लड़ते हुए उन्होंने मनुष्य को उसमें जीतने और मुक्त होने की जो राह सुझाई, उसे मार्क्सवाद की संज्ञा से ही जाना जाता है.