Kenya Finance Bill: कीनिया में सरकार के खिलाफ विवादास्पद वित्त विधेयक को लेकर पिछले एक सप्ताह से चल रहे अब तक के सबसे भीषण, उग्र प्रदर्शनों और हिंसा को लगातार और उग्र रूप लेते देख राष्ट्रपति विलियम रुटो ने आखिर देश में करों में वृद्धि संबंधी विवादास्पद वित्त विधेयक पर हस्ताक्षर न करके उसे ठंडे बस्ते में डालने की घोषणा कर दी. उन्होंने कहा कि वे देश के युवाओं और प्रदर्शनकारियों से इस समस्या का हल निकालने के लिए संवाद का रास्ता अपनाएंगे. लेकिन विधेयक की वापसी ही पूर्ण समाधान नहीं है, इसके साथ सरकर को जनता को भरोसे में लेकर स्थितियों के अनुरूप कदम उठाने से ही रास्ता बनेगा. सरकार का कहना है कि इस कर बढ़ोत्तरी से उसे कर्ज उतारने में मदद मिलती.
गौरतलब है कि कीनिया को चीन, अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष, विश्व बैंक सहित अनेक देशों/संस्थानों ने भारी मात्रा में कर्ज दिया है और चीन का कर्ज उतारने का भारी दबाव भी है. आईएमएफ सरकार से लगातार कह रहा है कि वह घाटा कम करे. वैसे संसद में यह विधेयक 195-106 के मुकाबले पारित हो चुका है. इस वित्त विधेयक के जरिये सरकार 2.7 अरब डॉलर के संसाधन जु्टाना चाहती है.
भारत ने वहां की अराजक स्थिति को देखते हुए अपने नागरिकों को पूरा एहतियात बरतने की एडवाइजरी जारी की है. कीनिया में लगभग 20,000 भारतीय हैं. दो दिन पूर्व ही प्रदर्शनकारियों ने संसद भवन में भी घुसने की कोशिश की. हिंसा, आगजनी में अब तक 23 लोग मारे जा चुके हैं और सैकड़ों घायल हो चुके हैं.
विवादास्पद विधेयक सबसे पहले मई 2024 में संसद में पेश किया गया था. इसमें ब्रेड पर 16 फीसदी टैक्स और खाने के तेल पर 25 फीसदी ड्यूटी लगाने का प्रस्ताव था. अनाज, चीनी और घर का नियमित खानपान तो महंगा होता ही, इलाज वगैरह जैसे जरूरी खर्च भी बढ़ते. इसके अलावा पैसे निकालने पर टैक्स बढ़ाने और गाड़ी की कीमत पर ढाई फीसदी का सालाना ओनरशिप टैक्स लगाने की बात भी थी.
लोगों के विरोध के बाद सरकार ने कुछ प्रावधानों में फेरबदल किए. मगर अधिकतर विवादास्पद प्रावधान ज्यों के त्यों रहे जिससे लोग आर्थिक बदहाली और बढ़ने को लेकर आशंकित, फिक्रमंद हो रहे थे. सरकार का तर्क था कि उसको अंतरराष्ट्रीय बैंकों का कर्ज चुकाना है. सरकार की कमाई से ज्यादा खर्च है.
जिसके चलते बजट घाटे में चल रहा है. घाटा तभी कम होगा जब कमाई बढ़े. इसको बढ़ाने के लिए सरकार नए टैक्स लगाने की तैयारी कर रही है. लेकिन यह स्थिति रातोंरात इतनी भयावह नहीं हुई है. ऐसे संवेदनशील मामलों में शासकों को नीतियां बनाते समय दूरगामी दृष्टि रखते हुए जनता को समय रहते भरोसे में लेना चाहिए.