Human rights in United States: क्या अमेरिका के पास सचमुच ही दुनिया का चौधरी बनने का हक है?

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: April 27, 2024 09:04 AM2024-04-27T09:04:14+5:302024-04-27T09:06:01+5:30

Human rights in United States: सालाना रिपोर्ट में भारत में मानवाधिकारों के ‘गंभीर उल्लंघन’ पर चिंता जाहिर करते हुए भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों, पत्रकारों और सरकार से असहमति रखने वालों की कथित प्रताड़ना पर चिंता जताई थी.

Human rights in United States America should not get illusion of being Chaudhary of  world | Human rights in United States: क्या अमेरिका के पास सचमुच ही दुनिया का चौधरी बनने का हक है?

सांकेतिक फोटो

Highlights भारत में मानवाधिकारों के हनन के मामलों की संख्या और दायरा बढ़ गया है. क्या अमेरिका के पास सचमुच ही दुनिया का चौधरी बनने का हक है? लीबिया युद्ध या सीरियाई युद्ध, हर जगह अमेरिका का ही हाथ रहा है.

Human rights in United States: मानवाधिकारों को लेकर अमेरिकी विदेश विभाग द्वारा जारी रिपोर्ट में भारत में मानवाधिकारों के हनन की जो बात कही गई है, निश्चित रूप से अमेरिका की यह अनधिकार चेष्टा है. भारत ने बिल्कुल सही कहा है कि इस रिपोर्ट के जरिये भारत की खराब छवि को पेश किया जा रहा है और वह इसे कोई महत्व नहीं देता है. इस साल मानवाधिकारों पर अपनी रिपोर्ट में अमेरिकी विदेश विभाग ने मणिपुर में जातीय हिंसा फैलने के बाद राज्य में व्यापक तौर पर मानवाधिकारों के हनन का आरोप लगाते हुए अन्य मुद्दों का जिक्र किया है, वहीं पिछले साल भी उसने सालाना रिपोर्ट में भारत में मानवाधिकारों के ‘गंभीर उल्लंघन’ पर चिंता जाहिर करते हुए भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों, पत्रकारों और सरकार से असहमति रखने वालों की कथित प्रताड़ना पर चिंता जताई थी.

अमेरिकी संसद की एक स्वतंत्र अध्ययन रिपोर्ट में भी आरोप लगाया गया है कि भारत में मानवाधिकारों के हनन के मामलों की संख्या और दायरा बढ़ गया है. सवाल यह है कि क्या अमेरिका के पास सचमुच ही दुनिया का चौधरी बनने का हक है? भारत सहित दुनिया के अन्य देशों को मानवाधिकारों के पालन का उपदेश देने वाले अमेरिका को पहले अपने गिरेबान में झांक कर देखना चाहिए कि वह दुनियाभर में किस तरह से युद्धों को प्रोत्साहन देकर मानवाधिकारों का उल्लंघन कर रहा है. चाहे वह खाड़ी युद्ध हो, अफगानिस्तान युद्ध, इराक युद्ध, लीबिया युद्ध या सीरियाई युद्ध, हर जगह अमेरिका का ही हाथ रहा है.

वर्तमान में रूस के यूक्रेन पर हमले और गाजापट्टी में इजराइली हमले के पीछे भी अमेरिका की बड़ी भूमिका है. अगर यह कहा जाए तो शायद अतिशयोक्ति नहीं होगा कि दुनिया के चाहे किसी भी कोने में संघर्ष हो, किसी न किसी रूप में उसका अमेरिका से संबंध जुड़ ही जाता है. अमेरिका के भीतर भी मानवाधिकारों का कम उल्लंघन नहीं होता है.

वहां बंदूक संस्कृति इतनी ज्यादा विकसित हो चुकी है कि आए दिन कोई भी अंधाधुंध फायरिंग करके अनेक लोगों की जान ले लेता है. नस्लीय हिंसा की भी वहां कम घटनाएं नहीं हो रही हैं. अश्वेतों के प्रति श्वेत लोगों का पूर्वाग्रह अभी भी बना हुआ है, जो बीच-बीच में होने वाली घटनाओं में झलक जाता है.

इसलिए दूसरे देशों में मानवाधिकार की निगरानी करने के पहले अमेरिका आत्मनिरीक्षण कर ले तो शायद ज्यादा बेहतर होगा. जहां तक भारत का सवाल है, अगर कहीं मानवाधिकारों का उल्लंघन होता भी है तो हमारे देश की सरकारें, संवैधानिक निकाय इससे निपटने में खुद सक्षम हैं, किसी अन्य देश के उपदेश की हमें जरूरत नहीं है

Web Title: Human rights in United States America should not get illusion of being Chaudhary of  world

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