गौरीशंकर राजहंस का नजरियाः श्रीलंका में जीती भारतीय कूटनीति
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: December 21, 2018 01:05 PM2018-12-21T13:05:59+5:302018-12-21T13:05:59+5:30
यह भारतीय कूटनीति की जीत है. लेकिन चीन देर सबेर भारत की डिप्लोमेसी को धक्का देने का प्रयास अवश्य करेगा. इस संदर्भ में भारत को सतर्क रहना होगा.
श्रीलंका न केवल भारत का निकटतम पड़ोसी है बल्कि कई मायने में वह भारत का निकटतम मित्र भी रहा है. अब तक सब कुछ ठीकठाक चल रहा था, परंतु करीब दो महीने पहले श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्रीपाल श्रीसेना ने अचानक देश के प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे को बर्खास्त कर दिया और उनकी जगह पर महिंदा राजपक्षे को श्रीलंका का प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया. रानिल विक्रमसिंघे शुरू से ही भारत के पक्ष में रहे हैं. उनके एकाएक पदच्युत किए जाने पर पूरे श्रीलंका में गृहयुद्ध की स्थिति बन गई.
महिंदा राजपक्षे शुरू से ही भारत के खिलाफ रहे हैं. वे चीन के प्रबल समर्थक हैं. लिट्टे को समाप्त करने में चीन ने महिंदा राजपक्षे की बड़ी मदद की थी. इसके एवज में राजपक्षे ने चीन को श्रीलंका में अनेक रियायतें दीं. चीन ने राजपक्षे के अनुरोध पर वहां इन्फ्रास्ट्रर को मजबूत किया और श्रीलंका को ढेर सारा कर्ज दिया.
उसके बदले में चीन ने श्रीलंका की जमीन बड़ी मात्र में हथिया ली. श्रीलंका में चीन ने ‘हंबनटोटा’ नाम का बंदरगाह बनाया. श्रीलंका ने चीन से कर्ज लेकर यह बंदरगाह बनाया था. जब वह इस कर्ज को चुका नहीं सका तो लाचार होकर श्रीलंका को यह बंदरगाह चीन को दे देना पड़ा.
बाद में आम चुनाव में राजपक्षे की भारी पराजय हुई और विक्रमसिंघे नए प्रधानमंत्री बने. विक्रमसिंघे शुरू से ही भारत के अनन्य मित्र रहे हैं. जब श्रीलंका में घोर उथल-पुथल हुई तब देश के सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति श्रीसेना के कई निर्णयों को अवैध करार दे दिया.
राष्ट्रपति ने न केवल प्रधानमंत्री विक्रमसिंघे को पदच्युत कर दिया था बल्कि संसद को भी भंग कर दिया था. हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्र्पति के इस निर्णय को संविधान के विरुद्ध माना. अभी संसद का दो साल का कार्यकाल बाकी था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संसद को फिर से बहाल किया जाए. राजपक्षे को उनके पद से हटाया जाए और विक्रमसिंघे को फिर से प्रधानमंत्री नियुक्त किया जाए.
यह भारतीय कूटनीति की जीत है. लेकिन चीन देर सबेर भारत की डिप्लोमेसी को धक्का देने का प्रयास अवश्य करेगा. इस संदर्भ में भारत को सतर्क रहना होगा.