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ब्लॉग: चीनी घेराबंदी के बीच निर्वासित तिब्बत सरकार की चुनौतियां

By शोभना जैन | Updated: December 4, 2021 08:54 IST

गौरतलब है कि गत जुलाई में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की तिब्बत यात्रा के बाद से वहां चीन की गतिविधियां तेजी से बढ़ी हैं. वहां उसकी सैन्य मौजूदगी और निर्माण कार्यो में तेजी आई है. 

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ठळक मुद्देशी जिनपिंग की तिब्बत यात्रा के बाद से वहां चीन की गतिविधियां तेजी से बढ़ी हैं.वहां उसकी सैन्य मौजूदगी और निर्माण कार्यो में तेजी आई है.चीन का प्रयास है कि अगले दलाई लामा के चयन में उसका वर्चस्व हो.

लगभग 70 वर्ष पूर्व तिब्बत पर चीन के अवैध कब्जे के बाद से वहां चीन के दमनचक्र और तिब्बत के अंदर चल रही उथल-पुथल एक बार फिर से सुर्खियों में है. 

कुछ समय पूर्व चीन द्वारा अरुणाचल प्रदेश सीमा पर अवैध रूप से कब्जा किए गए सीमावर्ती भू क्षेत्र में गांव बनाए जाने और उनमें तिब्बतियों को बसाए जाने की खबरों पर हाल ही में तिब्बत की निर्वासित सरकार सेंट्रल तिब्बत एडमिनिस्ट्रेशन (सीटीए) ने चिंता जताई है. 

नवनिर्वाचित तिब्बत के राष्ट्रपति (सिक्यांग) पेन्पा त्सेरिंग ने कहा है, ‘दरअसल तिब्बत को हम शांति क्षेत्र रखना चाहते हैं और हर तिब्बती की यही इच्छा है.’ 

राष्ट्रपति पेन्पा ने कहा, ‘मौजूदा हालात में तिब्बत मसले के समाधान के लिए बीच का रास्ता ही विकल्प है, जरूरी है कि तिब्बत मसले पर निर्वासित सरकार और चीन सरकार के बीच आधिकारिक तौर पर बातचीत हो.’ उन्होंने कहा कि वे इस बाबत प्रयासरत रहे हैं और चीन सरकार का क्या रुख रहता है, यह उन्हें तय करना है. 

गौरतलब है कि गत जुलाई में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की तिब्बत यात्रा के बाद से वहां चीन की गतिविधियां तेजी से बढ़ी हैं. वहां उसकी सैन्य मौजूदगी और निर्माण कार्यो में तेजी आई है. 

गत जून में चीन ने तिब्बत-2021 के बारे में जो श्वेत पत्र जारी किया उसमें तिब्बत पर चीनी शिकंजा और कड़ा किए जाने के संकेत हैं. इसमें संकेत दिया गया है कि चीन का प्रयास है कि अगले दलाई लामा के चयन में उसका वर्चस्व हो और तिब्बत में सीमा प्रबंधन और विकास पर जोर दिया जाए. 

यानी विकास कार्यो के जरिये या यूं कहें कि जिस तरह से चीन अरुणाचल प्रदेश से सटे विवादित सीमावर्ती क्षेत्नों में गांव बनाकर वहां तिब्बतियों को बसा रहा है, उसके चलते निर्वासित सरकार को आशंका है कि इस मौके का फायदा उठाकर चीन तिब्बत के अंदर चीनी लोगों को बसा रहा है. निश्चय ही यह स्थिति भारत के लिए भी चिंताजनक है.

तिब्बत की निर्वासित सरकार के सर्वोच्च प्रतिनिधि के नाते पेन्पा तिब्बत के मसले पर चीन से सीधे आधिकारिक बातचीत करना चाहते हैं, ताकि समझा जा सके कि चीन की आखिर तिब्बत को लेकर क्या मंशा है.

साथ ही वे यह मानते हैं चीन के वीगर अल्पसंख्यकों पर तो दुनिया का ध्यान है लेकिन तिब्बत के अंदर भी मूल तिब्बती तिल-तिल कर मर रहे हैं, तिब्बती भाषा, संस्कृति का खात्मा किया जा रहा है. छोटे-छोटे तिब्बती बच्चों को तिब्बती भाषा के बजाय चीनी भाषा पढ़ाई जा रही है. चीन की नीति है ‘एक राष्ट्र, एक भाषा, एक संस्कृति’. 

उन्होंने भारत के साथ संबंधों को बेहद मजबूत और पारदर्शिता पूर्ण बताया. साथ ही भारत में रहने वाले तिब्बतियों की स्थिति और चुनौतियों से निपटने के लिए एक सुदृ्ढ़ नीति बनाए जाने पर जोर दिया ताकि खासतौर पर अरुणाचल प्रदेश, तवांग, लद्दाख और उत्तराखंड में रहने वाले तिब्बतियों की मदद करने में भारत से सहयोग लिया जा सके. 

आंकड़ों के अनुसार, भारत में फिलहाल लगभग 75,000 तिब्बती शरणार्थी रहते हैं जबकि अमेरिका, यूरोप और नेपाल जैसे देशों में भी हजारों तिब्बतियों ने तिब्बत पर चीनी कब्जे के बाद से शरण ली है. राष्ट्रपति पेन्पा के अनुसार तिब्बतियों पर इसी कसते शिकंजे के चलते तिब्बत से भारत में आने वाले तिब्बतियों की संख्या में तेजी से भारी कमी दर्ज की गई है. वर्ष 2008 में जहां यह संख्या 2000-3000 हुआ करती थी वहीं इस वर्ष यह मात्र 9 रह गई है.

इस पूरे संदर्भ में अगर भारत की सीमा से सटे इस क्षेत्र में भारत के सुरक्षा सरोकारों और चिंताओं की बात करें तो भारत-चीन सीमा को लेकर दोनों देशों के बीच बढ़ते तनाव के बीच शी ने गत जुलाई में अरुणाचल प्रदेश की सीमा पर स्थित निंगशी का तीन दिवसीय दौरा किया, जिसकी भनक किसी को पहले नहीं लगने दी गई. इस दौरान वे अरुणाचल प्रदेश सीमा से मात्न 15 किमी दूर चीन की पीपल्स लिबरेशन पार्टी (पीएलए) के शिविर में गए और युद्ध की तैयारियों का आह्वान किया. 

भारत के लिए यह चिंता की बात थी. हालांकि भारत ने इस दौरान कोई आधिकारिक टिप्पणी नहीं की लेकिन इससे पहले विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू की अरुणाचल प्रदेश की यात्ना को लेकर चीन के विरोध को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि अरुणाचल प्रदेश भारत का अविभाज्य तथा अभिन्न अंग है.

चीन जिस तरह से इन सीमावर्ती क्षेत्रों में नए गांवों को बना रहा है और इन गांवों तथा कस्बों का विकास कर वहां तिब्बतियों को बसा रहा है, उससे तो यही जाहिर होता है कि चीन का भारत और भूटान के विवादास्पद सीमा क्षेत्नों में अपनी बस्तियों का बड़ा विस्तार करने का मंसूबा है.

 भारत और भूटान क्षेत्न के ऐसे दो देश हैं जिनके अभी भी चीन के साथ सीमा विवाद हैं. चीन के आक्रामक तेवरों के मद्देनजर इस क्षेत्न में स्थिति और गंभीर हो गई है. खास तौर पर भारत-चीन मौजूदा सीमा तनाव के चलते चीन, तिब्बत और भारत के इस त्रिकोण के घटनाक्र म पर निगाहें रहेंगी.

टॅग्स :चीनदलाई लामा
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