ब्राजील और इजराइल के चुनाव: एक जगह वामपंथ तो दूसरी जगह दक्षिणपंथ की जीत...क्या हैं इसके मायने?
By शोभना जैन | Published: November 4, 2022 01:33 PM2022-11-04T13:33:50+5:302022-11-04T13:33:50+5:30
ब्राजील दक्षिणपंथी सरकार के बाद एक बार फिर से वामपंथ की ओर लौटा है. दूसरी ओर इजराइल में बेंजामिन नेतन्याहू धुर दक्षिणपंथी गठबंधन के साथ सरकार बनाने जा रहे हैं.
दुनिया के अलग-अलग देशों में राजनीतिक घटनाक्रम न केवल दिलचस्प मोड़ से गुजर रहे हैं बल्कि चौंका भी रहे हैं. यूक्रेन युद्ध और आर्थिक मंदी से गुजरते पेचीदा विश्व राजनीतिक समीकरणों के दौर में इस सप्ताह दुनिया के दो देशों में हुए चुनावों में दक्षिणपंथी और वामपंथी ताकतों को लेकर चौंकाने वाले नतीजे दिखे.
ब्राजील दक्षिणपंथी सरकार के बाद एक बार फिर से वामपंथ की ओर लौटा है. यहां पूर्व राष्ट्रपति और वामपंथी वर्कर्स पार्टी के लुईस ईनास्यू लूला डा सिल्वा, जिनके बारे में सोचा जा रहा था कि उनके राजनीतिक जीवन का अंत हो गया है, वे सत्ता में लौट आए हैं.
शायद इसीलिए अपनी जीत पर लूला ने कहा, ‘उन्होंने (विपक्षियों ने) तो मुझे जिंदा दफन करने की कोशिश की थी, लेकिन मैं आज आपके सामने खड़ा हूं.’ बहरहाल, लूला की जीत को इसलिए अहम माना जा रहा है कि इस वक्त वहां मजबूत दक्षिणपंथी नेताओं के उभार के बीच वह वामपंथ की लहर फिर से लाने में सफल रहे हैं और ये चुनाव नतीजे इसलिए भी खासतौर पर ऐसे में अहम माने जा रहे हैं क्योंकि यूरोप और कई पश्चिमी देशों में आम चुनावों में दक्षिणपंथी ताकतों की लहर हावी हो रही है.
ऐसे में लैटिन अमेरिकी देशों में वामपंथी बयार बहना चौंकाने वाली घटना मानी जा रही है. वैसे लैटिन अमेरिकी देशों में बह रही इस वामपंथी बयार की बात करें तो फिलहाल इस क्षेत्र के छह बड़े देशों में वामपंथी नेतृत्व है.
चुनावी नतीजों के उलटफेर भरे माहौल में इजराइल में भी पूर्व प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू चुनावों में विजय की ओर बढ़ रहे हैं और उनके धुर दक्षिणपंथी गठबंधन के साथ सरकार बनाने की संभावनाएं प्रबल हैं. यह घटनाक्रम खासतौर पर पश्चिम एशिया की राजनीति और उसके विश्वव्यापी प्रभाव के चलते खासा अहम है.
वैसे इजराइल के प्रारंभिक चुनाव परिणामों की चर्चा करें तो लगता है कि इजराइली मतदाता लगातार दक्षिणपंथी ताकतों को समर्थन दे रहे हैं, जिसे लेकर एक विशेषज्ञ का मानना है कि इससे फिलिस्तीन के साथ शांति समझौता होने की संभावनाएं तो धूमिल हो रही हैं, साथ ही अमेरिका के बाइडेन प्रशासन के साथ भी दूरियां बढ़ने का अंदेशा है. बहरहाल, अलग-अलग देशों में दक्षिणपंथी, वामपंथी और मध्यमार्गी ताकतें कैसे करवट लेती हैं, उनका न केवल इन देशों पर बल्कि वैश्विक राजनीति पर भी दूरगामी प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है.
बहरहाल, भारत के दोनों ही देश मित्र देश है. दुनिया भर की नजरें इन दोनों देशों में नई सरकारों के स्वरूप, उनकी प्राथमिकताओं पर लगी हैं. देखना है कि इन देशों की घरेलू परिस्थतियों के साथ विश्व राजनीति पर इस सबका कैसा असर पड़ेगा.