COP29: अधूरे वादों की कहानी बना जलवायु सम्मेलन

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: November 26, 2024 14:11 IST2024-11-26T14:10:37+5:302024-11-26T14:11:35+5:30

COP29: भारत का कहना है कि विकसित देशों ने अपनी ऐतिहासिक जिम्मेदारियों से बचने के लिए इस लक्ष्य को ‘स्वैच्छिक योगदान’ और बहुपक्षीय विकास बैंकों की फंडिंग पर निर्भर बना दिया है.

COP29 Climate conference became story unfulfilled promises blog Nishant Saxena | COP29: अधूरे वादों की कहानी बना जलवायु सम्मेलन

file photo

Highlightsकॉप-29 में सबसे बड़ी घोषणा ‘न्यू कलेक्टिव क्वांटिफाइड गोल’ के रूप में सामने आई.लक्ष्य को जल्दबाजी में अपनाया गया, जबकि विकासशील देशों ने इसका कड़ा विरोध किया. कई महत्वपूर्ण मुद्दे उठे, लेकिन उनमें से अधिकांश केवल चर्चा के स्तर पर ही सीमित रह गए.

COP29: बाकू, अजरबैजान में आयोजित 29वें संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (कॉप-29) ने दुनिया भर के देशों को एक बार फिर जलवायु परिवर्तन के खिलाफ एकजुट होने का मौका दिया. लेकिन इस सम्मेलन के अंत में जो हासिल हुआ, उसने यह साबित किया कि वादों और वास्तविकता के बीच की खाई आज भी बहुत गहरी है. सम्मेलन में कुछ महत्वपूर्ण घोषणाएं हुईं, लेकिन तात्कालिक और ठोस कार्रवाई का अभाव स्पष्ट रूप से दिखाई दिया. कॉप-29 में सबसे बड़ी घोषणा ‘न्यू कलेक्टिव क्वांटिफाइड गोल’ के रूप में सामने आई.

यह लक्ष्य 2035 तक जलवायु वित्त या क्लाइमेट फाइनेंस के लिए प्रतिवर्ष 300 बिलियन डॉलर जुटाने का है. यह 2009 में तय किए गए 100 बिलियन डॉलर के लक्ष्य की जगह लेता है, जो अब तक कभी पूरा नहीं हुआ. भारत और जी-77 व चीन ने इस लक्ष्य को अस्वीकार्य बताते हुए 500 बिलियन डॉलर सालाना सार्वजनिक वित्त की मांग की.

भारत का कहना है कि विकसित देशों ने अपनी ऐतिहासिक जिम्मेदारियों से बचने के लिए इस लक्ष्य को ‘स्वैच्छिक योगदान’ और बहुपक्षीय विकास बैंकों की फंडिंग पर निर्भर बना दिया है. अंतिम घंटों में इस लक्ष्य को जल्दबाजी में अपनाया गया, जबकि विकासशील देशों ने इसका कड़ा विरोध किया. सम्मेलन के दौरान कई महत्वपूर्ण मुद्दे उठे, लेकिन उनमें से अधिकांश केवल चर्चा के स्तर पर ही सीमित रह गए.

कॉप-29 में भारत का प्रदर्शन एक मजबूत और प्रगतिशील राष्ट्र के रूप में सामने आया. भारत ने ‘कॉमन बट डिफरेंशिएटेड रेस्पॉन्सिबिलिटीज’ के सिद्धांत पर जोर दिया, जो विकासशील देशों के साथ न्यायसंगत व्यवहार सुनिश्चित करता है. भारतीय प्रतिनिधि चांदनी रैना ने अपने वक्तव्य में विकसित देशों की गैर-जिम्मेदाराना नीतियों पर सवाल उठाए और जलवायु वित्त, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, और अंतरराष्ट्रीय सहयोग की मांग की. भारत का यह रुख अन्य विकासशील और छोटे द्वीपीय देशों के लिए प्रेरणा का स्रोत बना. भारत ने यह स्पष्ट कर दिया कि वह सतही और असमान समाधानों को स्वीकार नहीं करेगा.

कॉप-29 ने दिखाया कि वादे करना आसान है, लेकिन उन्हें निभाना कठिन. जलवायु वित्त का नया लक्ष्य कागज पर अच्छा दिखता है, लेकिन यह पर्याप्त नहीं है. बाकू सम्मेलन ने यह भी उजागर किया कि देशों के बीच विश्वास की कमी और विकसित तथा विकासशील देशों के बीच की खाई जलवायु कार्रवाई में बड़ी बाधा है. अब कॉप-30, जो ब्राजील में आयोजित होगा, से उम्मीदें बढ़ गई हैं.

यह जरूरी है कि भविष्य के सम्मेलनों में खोखले वादों की जगह ठोस कदम उठाए जाएं. जलवायु परिवर्तन कोई दूर का संकट नहीं है; यह एक गंभीर और वर्तमान चुनौती है, जो हर दिन विकराल होती जा रही है. कॉप-29 ने जलवायु संकट को हल करने की दिशा में कुछ कदम जरूर उठाए, लेकिन यह दुनिया को यह भी याद दिलाता है कि असली काम अभी बाकी है. यह वक्त है जब दुनिया को साहसिक, न्यायसंगत और तत्काल कार्रवाई करनी होगी, ताकि हमारी आने वाली पीढ़ियों को एक सुरक्षित और स्थायी भविष्य मिल सके.

Web Title: COP29 Climate conference became story unfulfilled promises blog Nishant Saxena

विश्व से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे