ब्लॉगः वैगनर की बगावत पुतिन की शासन पर पकड़ ढीली होने का संकेत?
By शोभना जैन | Updated: June 30, 2023 14:17 IST2023-06-30T14:16:23+5:302023-06-30T14:17:08+5:30
कुल मिलाकर देखें तो फिलहाल तो पुतिन ने वैगनर ग्रुप की बगावत से पार पा लिया है लेकिन सवाल है क्या पुतिन अपनी घरेलू नीतियों और अपनी विदेश नीति से न केवल अपने देश की जनता बल्कि अंतरराष्ट्रीय जगत को भी यह संदेश दे पाएंगे कि रूस की राजनीति पर उनकी पूरी पकड़ है?

ब्लॉगः वैगनर की बगावत पुतिन की शासन पर पकड़ ढीली होने का संकेत?
लगभग डेढ़ साल से चल रहे विनाशकारी यूक्रेन युद्ध में उलझे रूस के राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन की अब अपने ही देश में वैगनर ग्रुप के नाटकीय विद्रोह के बाद क्या प्रशासन पर पकड़ ढीली हुई है? हालांकि गत सप्ताह शुक्रवार को जिस तरह से कभी पुतिन के बेहद विश्वासपात्र रहे वैगनर ग्रुप के प्रमुख येवेनी प्रीगोझिन ने बेहद नाटकीय ढंग से बगावत करते हुए अपने समर्थकों के साथ मॉस्को की तरफ कूच शुरू किया, उतने ही नाटकीय ढंग से 24 घंटे के अंदर अपना मार्च वापस ले लिया। बेलारूस के राष्ट्रपति अलेक्जेंडर, जो पुतिन के साथ ही येवेनी के भी मित्र रहे हैं, की पुतिन के साथ सुलह-सफाई वार्ता के बाद प्रीगोझिन निर्वासन के तौर पर बेलारूस चले गए।
वैसे अमेरिका ने कहा है कि इस बगावत के पीछे उसका कोई हाथ नहीं है, उसका इससे कोई लेना-देना नहीं है। उधर, इस घटना ने रूस के सबसे करीबी मित्र चीन को भी चिंता में डाल दिया। लेकिन शुरुआती ऊहापोह के बाद 24 घंटे के अंदर चीन ने राष्ट्रपति ने पुतिन के समर्थन की घोषणा कर दी थी। इन दोनों देशों के बीच साझेदारी एक रणनीतिक गठबंधन के रूप में विकसित हुई है, जो आपसी हितों और साझा भू-राजनीतिक उद्देश्यों से प्रेरित है।
इन समीकरणों के बीच अगर भारत की बात करें तो रूस तमाम चुनौतियों के बीच भारत का अभिन्न मित्र बना रहा है, जबकि चीन भारत के साथ खास तौर पर पिछले कुछ वर्षों से आक्रामक रवैया अपनाता रहा है। भारत ने सभी देशों से रिश्ते जोड़ने की कोशिश की है, खास तौर पर पिछले कुछ वर्षों में भारत ने अमेरिका, फ्रांस, इंग्लैंड, जर्मनी सहित अनेक देशों से रक्षा सौदे और करोबारी संबंध बढ़ाने के लिए बड़े कदम उठना शुरू किया है। देखें तो साल 2002 से 2022 तक रूस की हमारे रक्षा उपकरणों के आयात में हिस्सेदारी 68 प्रतिशत से घटकर 47 प्रतिशत पर आ गई है। लेकिन भारत के साथ रिश्तों को सम्मान देते हुए रूस ने दबाव के बावजूद भारत को तेल आयात जारी रखा और केवल तेल के आयात के चलते हाल में 44 अरब डॉलर का कारोबार बढ़ा है।
कुल मिलाकर देखें तो फिलहाल तो पुतिन ने वैगनर ग्रुप की बगावत से पार पा लिया है लेकिन सवाल है क्या पुतिन अपनी घरेलू नीतियों और अपनी विदेश नीति से न केवल अपने देश की जनता बल्कि अंतरराष्ट्रीय जगत को भी यह संदेश दे पाएंगे कि रूस की राजनीति पर उनकी पूरी पकड़ है? इस संकट से रूस की यूक्रेन युद्ध नीति पर क्या कुछ असर पड़ेगा? चीन के साथ रूस और पुतिन की जुगलबंदी क्या रूप लेगी? और फिर वर्तमान अंतरराष्ट्रीय राजनीति में भारत के अभिन्न मित्र रहे रूस के साथ रिश्ते कितनी मजबूती से टिके रहेंगे। इन तमाम सवालों के उत्तर आने शेष हैं।