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ब्लॉग: तीस्ता नदी जल बंटवारे पर बांग्लादेश की नई पहल

By प्रमोद भार्गव | Updated: September 10, 2024 10:43 IST

दोनों देशों को संधि के बाद संयुक्त रूप से बाढ़ और सूखे की आपदा से निराकरण के उपाय तलाशना भी आसान होगा।

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बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार के तख्तापलट के बाद अंतरिम सरकार ने तीस्ता नदी जल बंटवारे के मुद्दों को सुलझाने की इच्छा जताई है। यह मुद्दा कई दशकों से लंबित है, लिहाजा इस नदी के जल का उपयोग दोनों ही देश ठीक से नहीं कर पा रहे हैं। अब एक बार फिर वहां की सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस ने इस नदी जल के बंटवारे के मसले का समाधान अंतरराष्ट्रीय नियमों के अनुसार करने की इच्छा प्रकट की है। यूनुस का कहना है कि नदी के निचले तटों के किनारे वाले देशों के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विशेष प्रावधान है और इसका लाभ बांग्लादेश को मिलना चाहिए। अगर दोनों देश समझौते के बिंदुओं पर हस्ताक्षर करते हैं तो यह बेहतर स्थिति होगी।

भारत एवं बांग्लादेश के बीच 25 वर्षों से नदियों के जल बंटवारे को लेकर समझौते की बातचीत चल रही है । शेख हसीना और नरेंद्र मोदी की 2022 में परस्पर हुई बातचीत के बाद कुशियारा नदी के संदर्भ में अंतरिम जल बंटवारा समझौते पर हस्ताक्षर भी हो गए हैं। 1996 में गंगा नदी जल-संधि के बाद इस तरह का यह पहला समझौता है। इसे अत्यंत महत्वपूर्ण समझौता माना गया है। यह भारत के असम और बांग्लादेश के सिलहट क्षेत्र को लाभान्वित करेगा। 54 नदियां भारत और बांग्लादेश की सीमाओं के आरपार जाती हैं और सदियों से दोनों देशों के करोड़ों लोगों की आजीविका का मुख्य साधन बनी हुई हैं। इसके बावजूद दोनों देशों के बीच बहने वाली तीस्ता नदी के जल बंटवारे को अंतिम रूप अब तक नहीं दिया जा सका है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2015 में बांग्लादेश यात्रा पर गए थे, तब ढाका में द्विपक्षीय वार्ता भी हुई थी, लेकिन तीस्ता की उलझन सुलझ नहीं पाई थी। यदि यह समझौता हो जाता है तो इसके सामरिक हित भी भारत के लिए महत्वपूर्ण हैं। भारत का उत्तर-पूर्वी क्षेत्र सामरिक दृष्टि से बांग्लादेश के उदय के समय से ही नाजुक बना हुआ है। इसलिए बांग्लादेश की आर्थिक कमजोरी के चलते बांग्लादेशी घुसपैठियों की निरंतरता बनी हुई है। बांग्लादेश में करीब 10 लाख म्यांमार से विस्थापित रोहिंग्या शरणार्थी बने हुए हैं। ये भी भारत में लगातार घुसपैठ कर सीमावर्ती राज्यों में जनसंख्यात्मक घनत्व बिगाड़ रहे हैं।

करीब 40000 रोहिंग्या भारत में अवैध घुसपैठियों के रूप में प्रवेश कर चुके हैं। लिहाजा तीस्ता एवं अन्य नदियों के जल बंटवारों पर कोई निर्णायक स्थिति बन जाती है तो बांग्लादेश में कृषि और जल आधारित रोजगार मिलने लग जाएंगे, फलस्वरूप भारत में घुसपैठ थमने की उम्मीद की जा सकेगी। दोनों देशों को संधि के बाद संयुक्त रूप से बाढ़ और सूखे की आपदा से निराकरण के उपाय तलाशना भी आसान होगा। बहरहाल, यदि यूनुस वाकई समझौते के पक्ष में हैं तो उनकी पहल का स्वागत किया जाना चाहिए।

टॅग्स :बांग्लादेशभारत
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