ब्रिटेन में रहने वाले बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के मुखिया तारिक रहमान 17 साल बाद तख्त-ओ-ताज की उम्मीद के साथ देश लौट आए हैं. अवामी लीग की मुखिया शेख हसीना को हटाने के लिए उन्होंने जिस कट्टरवादी सोच वाली जमात-ए-इस्लामी के साथ गलबहियां कर ली थीं, उससे चुनावी मैदान में मुकाबला होगा. मगर इस वक्त का सबसे बड़ा सवाल है कि यदि तारिक चुनाव जीतते हैं तो क्या भारत को उनसे कुछ उम्मीद करनी चाहिए? बीएनपी का रवैया हालांकि आमतौर पर भारत विरोधी ही रहा है लेकिन वास्तविकता यही है कि वह जमात-ए-इस्लामी से तो बेहतर ही है!
तारिक रहमान की मां खालिदा जिया लंबे अरसे से बीमार हैं और ऐसी स्थिति में नहीं हैं कि बीएनपी का नेतृृत्व कर सकें. यह जिम्मेदारी काफी समय से तारिक ने उठा रखी है. शेख हसीना के दौर में सत्ता के प्रकोप से बचने के लिए उन्होंने ब्रिटेन का रुख किया तो फिर 17 साल बाहर ही रहे लेकिन पार्टी की कमान नहीं छोड़ी.
अब हालात कुछ ऐसे हो गए कि शेख हसीना को जान बचाकर भारत आना पड़ा और कट्टरपंथियों ने बांग्लादेश पर कब्जा कर लिया तोे सवाल उठने लगा कि कट्टरपंथियों के कंधे पर सवार होकर क्या मो. यूनुस तानाशाह बन जाएंगे या फिर सत्ता की उम्मीद लिए तारिक वापस लौटेंगे?
मोहम्मद यूनुस लगातार इस कोशिश में लगे रहे हैं कि बांग्लादेश में हालात इतने खराब हो जाएं कि चुनाव टालने का उन्हें मौका मिल जाए ताकि वे सत्ता में बने रहें. शायद कुछ बाहरी ताकतें भी ऐसा ही चाह रही थीं लेकिन तारिक ने बांग्लादेश लौट कर एक नई उम्मीद जगाई है. देश लौटने के बाद उन्होंने जो बातें की हैं, उसे एक बेहतर संकेत माना जा सकता है.
उन्होंने समावेशी और लोकतांत्रिक देश की बात की है जहां हर धर्म के लोगों के लिए समान अधिकार के साथ जगह हो. उन्होंने देश के भीतर सुरक्षित माहौल की बात की है. एक बड़े जनसमूह के बीच बोलते हुए उन्होंने लोकतांत्रिक और आर्थिक अधिकारों की बहाली की तो बात की ही है, राजनीतिक शून्यता के बीच उग्रवादी ताकतों के सिर उठाने पर भी सवाल खड़ा किया है.
उन्होंने बांग्लादेश में हिंदू, ईसाई और बौद्ध अल्पसंख्यकों के समान अधिकारों पर भी सकारात्मक बात की है. उनकी ये बातें निश्चय ही देश के भीतर भी पसंद की जा रही होंगी और दुनिया में भी उनके दृष्टिकोण की चर्चा हो रही है. ऐसा माना जा रहा है कि तारिक के लिए बिल्ली के भाग से छींका टूटा है.
अवामी लीग मैदान में नहीं है मगर उसके समर्थक मतदाता तो हैं! उनके सामने सवाल है कि देश में लोकतंत्र को कैसे बचाएं? अवामी लीग को तो चुनाव लड़ने से ही प्रतिबंधित कर दिया गया है. तो क्या लोकतंत्र में भरोसा रखने वाले मतदाता चरमपंथ को पराजित करने के लिए तारिक के साथ जाएंगे?
यदि ऐसे मतदाता तारिक का साथ नहीं देते हैं तो जमात-ए-इस्लामी के लिए सत्ता पर काबिज होना शायद आसान हो जाएगा! मो. यूनुस भी यही चाह रहे होंगे लेकिन राजनीतिक विश्लेषक मान रहे हैं कि लोकतंत्र समर्थक मतदाता ऐसी स्थिति नहीं आने देंगे. वे तारिक पर भरोसा करेंगे. चलिए, मान लेते हैं कि बीएनपी सत्ता में आ जाती है और तारिक रहमान प्रधानमंत्री बन जाते हैं, तो भारत के हितों के संदर्भ में स्थितियां कैसी होंगी? सामान्य दृष्टि से देखें तोे बीएनपी के साथ भारत के रिश्ते ज्यादा मधुर कभी नहीं रहे लेकिन मो. यूनुस के समय जैसी तलवार खिंच गई है, वैसी तलवार शायद कभी नहीं खिंची!
मो. यूनुस जिस तरह से पाकिस्तान की गोद में जाकर बैठ गए, खालिदा जिया उस तरह कभी नहीं बैठीं. थोड़ी-बहुत तकरार रही और मौका पड़ने पर खालिदा ने भारत को झटके भी दिए लेकिन रिश्तों की डोर टूटने की कगार पर कभी नहीं पहुंची. अभी एक नई उम्मीद तब पैदा हुई जब तारिक ने कहा कि उनका नजरिया ‘न दिल्ली, न पिंडी’ का है.
यानी वे न दिल्ली के पिछलग्गू होंगे और न ही रावलपिंडी के. उनका यह बयान बताता है कि वे अपने देश के हित में समावेशी राजनीति करना चाहते हैं. उन्हें पता है कि भारत के साथ के बगैर वे आर्थिक मोर्चे पर देश को बहुत अच्छी स्थिति में नहीं ला पाएंगे. भारत के साथ सामान्य रिश्तों की बहाली उनके लिए बहुत जरूरी है. निश्चित रूप से भारत भी चाहेगा कि पड़ोसी के साथ सामान्य स्थिति बहाल हो.
दोनों ओर से इस बात के संकेत भी मिल रहे हैं. हाल ही में खालिदा जिया की सेहत के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दुआ की और बेहतर उपचार के लिए पेशकश की तथा बीएनपी ने इसके लिए शुक्रिया भी कहा! इस सौहार्द को राजनीतिक दृष्टि से भी देखा जा रहा है. वैसे भारत के साथ रिश्तों को फिर से पुराने रास्ते पर लाना तारिक के लिए आसान नहीं होगा.
उन पर पाकिस्तान, अमेरिका और चीन का अच्छा खासा दबाव होगा क्योंकि ये देश भारत को परेशानी में डाले रखना चाहते हैं. इसीलिए कट्टरपंथियों के मुंह से भारत के पूर्वोत्तर राज्यों को तोड़ने जैसे बड़बोले बयान देते रहे हैं. वैसे उन देशों को पता है कि भारत ने ऐसी तैयारी कर रखी है कि यदि बांग्लादेश ने एक चूक भी की तो हमारी चिकन नेक को मोटा होने में वक्त नहीं लगेगा.
चिकन नेक के पास बांग्लादेश का जो हिस्सा है, वहां पहले से ही विद्रोह की स्थिति है. और हमारे सत्तर से अस्सी हजार सैनिक मुस्तैदी के साथ खड़े हैं. वे हर प्रहार को दुश्मनों की हार में तब्दील कर देने के लिए बेताब हैं. मगर तारिक की सबसे बड़ी चुनौती होगी जमात-ए-इस्लामी जैसी कट्टरपंथी ताकतों से निपटना जो बांग्लादेश में इस्लामी राज स्थापित करने के लिए बेताब हैं. क्या तारिक इन सबसे निपट पाएंगे? लेकिन यह सवाल तब जब वे सत्ता में आ जाएंगे!