अवधेश कुमार का ब्लॉग: भूटान की नई सरकार से उम्मीदें
By अवधेश कुमार | Published: October 26, 2018 10:20 PM2018-10-26T22:20:30+5:302018-10-26T22:20:30+5:30
यह प्रश्न यहां उठ सकता है कि क्या भूटान के लोगों ने पीडीपी की भारत अभिमुख नीति को अस्वीकार कर दिया है और नई सरकार इसके विपरीत दिशा में काम करेगी? इस प्रकार का प्रश्न उठाने वाले और आशंका प्रकट करने वाले एकदम गलत नहीं हैं।
पड़ोसी देश भूटान के चुनाव परिणाम पर निश्चय ही साउथ ब्लॉक की नजर रही होगी। हालांकि अपने पड़ोसी देशों में हमारे यहां पाकिस्तान के चुनावों की तो सबसे ज्यादा चर्चा होती है लेकिन जितनी चर्चा नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका के चुनावों की होती है उतनी भूटान की नहीं होती। भूटान किसी दृष्टि से हमारे लिए कम महत्व का देश नहीं है। वहां के चुनाव अभियानांे तथा परिणामों पर नजर रखने की आदत हमें बनानी होगी।
बहरहाल, अब वहां अंतिम चुनाव परिणाम आ गए हैं। वहां की संसद राष्ट्रीय सभा के निम्न सदन की 47 सीटों में से 30 सीटें जीतकर छह साल पुराने अपेक्षाकृत नए दल ड्रूक न्यामरूप चोगपा (डीएनटी) ने विजय पाई है। 2013 से शासन करने वाली सत्तारूढ़ पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) निम्न सदन में सीट पाने से ही वंचित रह गई। यह पार्टी भारत के प्रति उदार मानी जाती थी। यह थोड़ा चिंता का कारण है।
यह प्रश्न यहां उठ सकता है कि क्या भूटान के लोगों ने पीडीपी की भारत अभिमुख नीति को अस्वीकार कर दिया है और नई सरकार इसके विपरीत दिशा में काम करेगी? इस प्रकार का प्रश्न उठाने वाले और आशंका प्रकट करने वाले एकदम गलत नहीं हैं। जब डोकलाम विवाद हुआ था तो भूटान सरकार लगातार भारत के साथ खड़ी रही। उसने स्वीकार किया कि भारत के अपने सामरिक हित हैं लेकिन चीन ने हमारी भूमि में अतिक्रमण किया है।
तो नई सरकार क्या करेगी? डीएनटी मध्य-वाम विचारधारा वाली पार्टी मानी जा रही है। उसने चुनाव अभियान में कहीं भी भारत विरोधी बातें नहीं की हैं। उसने शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार पर सबसे ज्यादा जोर दिया है। बेरोजगारी खत्म करने तथा सबको अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएं देने पर उसके अभियान का मुख्य फोकस था। यानी वही चुनौतियां जिनकी चर्चा पूर्व प्रधानमंत्नी चेरिंग चोगबाय कर रहे थे। देश की जनता ने इस पार्टी पर विश्वास किया तो इसका मतलब है लोगों को इन वायदों ने आकर्षित किया।
निचले सदन में डीएनटी के बाद विपक्ष में डीपीटी ही है। वह कुछ मामलों में दबाव भी बनाने की कोशिश कर सकती है। हालांकि उसका रवैया अभी भी भारत को लेकर प्रतिकूल एवं चीन के प्रति उतना ही उदारवादी है यह साफ नहीं है। आने वाला समय हमारे लिए भूटान को लेकर ज्यादा सतर्क और सक्रि य होने का है। हमारी झोली में देने के लिए इतना कुछ होना चाहिए कि उसे चीन की ओर देखने की जरूरत न रहे।