लेखक - निशांत सक्सेना
बैंकिंग से लेकर क्लाउड स्टोरेज, मेडिकल इमरजेंसी से लेकर मोबाइल नेटवर्क और लॉजिस्टिक्स तक, हमारी पूरी डिजिटल दुनिया जिन डाटा सेंटरों पर टिकी है - वे अब खुद एक बड़े खतरे की चपेट में हैं. यह खुलासा हुआ है क्रॉस डिपेंडेंसी इनिशिएटिव (एक्सडीआई) की एक नई रिपोर्ट में, जो जलवायु परिवर्तन के चलते तेजी से बढ़ते भौतिक जोखिमों का विश्लेषण करती है.
एक्सडीआई की ‘2025 ग्लोबल डाटा सेंटर फिजिकल क्लाइमेट रिस्क एंड अडॉप्टेशन रिपोर्ट’ अब तक की सबसे व्यापक वैश्विक तस्वीर पेश करती है - कि कैसे बाढ़, तूफान, जंगलों की आग और तटीय जलभराव जैसे जलवायु संकट दुनिया भर के लगभग 9,000 डाटा सेंटरों के लिए गंभीर जोखिम पैदा कर रहे हैं.रिपोर्ट चेतावनी देती है कि अगर ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने और ढांचागत सुधारों पर तत्काल निवेश नहीं हुआ तो डाटा सेंटर ऑपरेटरों को बीमा प्रीमियम में भारी बढ़ोत्तरी, लगातार परिचालन में रुकावट और अरबों डॉलर के नुकसान का सामना करना पड़ सकता है.
एक्सडीआई के संस्थापक डॉ. कार्ल मेलोन ने कहा, “डाटा सेंटर वैश्विक अर्थव्यवस्था का साइलेंट इंजन हैं, लेकिन जैसे-जैसे मौसम की घटनाएं ज्यादा तेज और अनियमित होती जा रही हैं, इन इमारतों की संवेदनशीलता बढ़ती जा रही है. अब जब ये बुनियादी ढांचा इतनी अहम भूमिका निभा रहा है और सेक्टर तेजी से बढ़ रहा है, तो निवेशकों और सरकारों के पास जोखिम को अनदेखा करने की गुंजाइश नहीं बची है.”
रिपोर्ट के अनुसार 2050 तक न्यू जर्सी, हैम्बर्ग, शंघाई, टोक्यो, हॉन्गकॉन्ग, मॉस्को, बैंकॉक और होवेस्टाडेन जैसे बड़े डाटा हब में से 20 प्रतिशत से 64 प्रतिशत डाटा सेंटरों को भौतिक क्षति का गंभीर जोखिम होगा. एशिया-प्रशांत क्षेत्र जहां डाटा सेंटरों की सबसे तेज ग्रोथ हो रही है, वहीं जोखिम भी सबसे ज्यादा है - 2025 में हर 10 में से एक और 2050 तक हर आठ में से एक डाटा सेंटर उच्च जोखिम में होगा. अगर जलवायु संकट को रोकने और अनुकूलन उपायों में ठोस निवेश नहीं हुआ, तो बीमा लागत 2050 तक तीन से चार गुना बढ़ सकती है.
रिपोर्ट यह भी दर्शाती है कि सटीक डिजाइन और निर्माण में निवेश कर डाटा सेंटरों की संरचनात्मक मजबूती को बढ़ाया जा सकता है, जिससे सालाना अरबों डॉलर की बचत संभव है. एक्सडीआई की रिपोर्ट यह भी साफ करती है कि हर जगह जोखिम एक जैसा नहीं है - एक ही देश या क्षेत्र के दो डाटा सेंटरों में भी जोखिम का स्तर अलग हो सकता है. इसलिए, ये ‘जैसा-जैसा क्षेत्र, वैसा निवेश’ वाली समझ अब जरूरी हो गई है.
साथ ही रिपोर्ट इस बात पर जोर देती है कि सिर्फ ढांचागत मजबूती ही काफी नहीं है. अगर सड़कें, पानी की आपूर्ति या टेलीकॉम नेटवर्क - जिन पर डाटा सेंटर निर्भर हैं - खुद असुरक्षित हैं, तो किसी भी ‘सुपर-रेजिलिएंट’ डाटा सेंटर का कोई मतलब नहीं रह जाता. इसलिए दीर्घकालिक सुरक्षा और डिजिटल अर्थव्यवस्था की स्थिरता के लिए अनुकूलन और उत्सर्जन में कटौती दोनों साथ-साथ चलने चाहिए.