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सुविधा बढ़ाने के साथ अकेलापन भी बढ़ाता एआई

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: March 26, 2025 07:10 IST

पैरों पर ज्यादा दबाव नहीं पड़ने से उसकी कठोर परतें मुलायम हो जाती हैं और  पैरों की त्वचा शिशुओं के पैरों की त्वचा जैसी संवेदनशील होकर छिलने लगती है.

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आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के आज के युग में एआई चैटबाॅट ने हम मनुष्यों के लिए बहुत से काम आसान कर दिए हैं. चूंकि यह लगातार सीखते हुए खुद को बेहतर भी करता जाता है, इसलिए उम्मीद की जा सकती है कि आने वाले दिनों में हमारे काम और भी सरल होते जाएंगे. लेकिन एक ताजा अध्ययन ने इसके इस्तेमाल को लेकर एक बड़ी चिंता भी पैदा कर दी है.

चैटजीपीटी बनाने वाली कंपनी ओपन एआई और एमआईटी की एक रिसर्च में यह जानकारी सामने आई है कि ज लोग चैटजीपीटी के साथ रोजाना ज्यादा समय बिताते हैं, वे भावनात्मक रूप से इस पर निर्भर हो जाते हैं. इस वजह से उन्हें अकेलापन महसूस होने लगता है और उन्हें दूसरे लोगों के साथ मेलजोल में परेशानी होने लगती है. दरअसल जीवन को अधिकाधिक सुविधाजनक बनाने की कोशिश में हम यह तथ्य भूल जाते हैं कि शरीर के जिन अंगों का जितना अधिक उपयोग होता है, वे उतना ही अधिक मजबूत होते जाते हैं.

अंतरिक्ष में हाल ही में नौ माह बिताकर लौटने वाली सुनीता विलियम्स का ताजा उदाहरण हमारे सामने है. चूंकि अंतरिक्ष में गुरुत्वाकर्षण नहीं है, इसलिए पैरों में भार महसूस नहीं होने के कारण उनके पैर इतने कमजोर हो गए कि धरती पर लौटने पर उन्हें व्हील चेयर का सहारा लेना पड़ा.

माइक्रोग्रैविटी में हार्ट को ब्लड पंप करने में उतनी मेहनत नहीं करनी पड़ती, जितनी पृथ्वी पर करनी पड़ती है. इस कमी के कारण हृदय का आकार बदल तक जाता है.  शोधों से पता चला है कि अंतरिक्ष यात्रियों के हृदय का आकार लगभग 9.4% अधिक गोल हो जाता है. पैरों पर ज्यादा दबाव नहीं पड़ने से उसकी कठोर परतें मुलायम हो जाती हैं और  पैरों की त्वचा शिशुओं के पैरों की त्वचा जैसी संवेदनशील होकर छिलने लगती है. इसीलिए अंतरिक्ष में यात्रियों को रोज कठोर व्यायाम करते रहना पड़ता है.

धरती पर अत्याधुनिक सुविधाएं हमें शारीरिक-मानसिक परिश्रम से तो छुटकारा दिला रही हैं लेकिन मेहनत के अभाव में उसी अनुपात में हमें कमजोर भी बनाती जा रही हैं. बच्चे जब मैदानी खेल खेलते थे तो प्राय: चुस्त-दुरुस्त रहते थे, लेकिन वीडियो गेम्स ने उन्हें शारीरिक तौर पर कमजोर बनाना शुरू कर दिया.

अब एआई भी यही काम कर रहा है. दरअसल मशीनों के विकास का उद्देश्य यह था कि उससे हमारा जो समय और श्रम बचे, उसे हम अधिक सार्थक कार्यों में लगाएं. लेकिन हमने सुविधाएं भोगने को ही जीवन का सर्वोच्च उद्देश्य मान लिया. इसीलिए तकनीकी सुविधाएं हमारे लिए वरदान बनने के बजाय अभिशाप सिद्ध हो रही हैं. क्या हम अभी भी वस्तुस्थिति को समझते हुए संभलने को तैयार हैं?

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