श्रील प्रभुपाद: दुनिया में बहाई कृष्ण भक्ति की निर्मल धारा

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: August 31, 2021 02:34 PM2021-08-31T14:34:03+5:302021-08-31T14:35:28+5:30

स्वामी श्रील भक्तिवेदांत प्रभुपाद के नाम से भी जानता है. सन् 1922 में उनकी मुलाकात एक प्रसिद्ध दार्शनिक भक्तिसिद्धांत सरस्वती से हुई.

Swami Srila Prabhupada world celebrates 125th birth anniversary 31st August Stream Krishna Bhakti | श्रील प्रभुपाद: दुनिया में बहाई कृष्ण भक्ति की निर्मल धारा

न्यूयॉर्क में सन् 1966 में उन्होंने अंतरराष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ (इस्कॉन) की स्थापना की.

Highlights ग्यारह वर्ष बाद 1933 में स्वामीजी ने प्रयाग में उनसे विधिवत दीक्षा प्राप्त की.भक्तिसिद्धांत ठाकुर सरस्वती ने उनको अंग्रेजी भाषा के माध्यम से वैदिक ज्ञान के प्रसार के लिए प्रेरित और उत्साहित किया.सन् 1959 में संन्यास ग्रहण के बाद उन्होंने वृंदावन में श्रीमद्भागवतपुराण का अनेक खंडों में अंग्रेजी में अनुवाद किया.

31 अगस्त को पूरी दुनिया स्वामी श्रील प्रभुपाद की 125 वीं जयंती मना रही है. अभय चरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद का जन्म 1 सितंबर 1896 को जन्माष्टमी के दूसरे दिन कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) के एक बंगाली परिवार में, सुवर्ण वैष्णव के यहां हुआ था.

संपूर्ण विश्व आज उन्हें स्वामी श्रील भक्तिवेदांत प्रभुपाद के नाम से भी जानता है. सन् 1922 में उनकी मुलाकात एक प्रसिद्ध दार्शनिक भक्तिसिद्धांत सरस्वती से हुई. इसके ग्यारह वर्ष बाद 1933 में स्वामीजी ने प्रयाग में उनसे विधिवत दीक्षा प्राप्त की. भक्तिसिद्धांत ठाकुर सरस्वती ने उनको अंग्रेजी भाषा के माध्यम से वैदिक ज्ञान के प्रसार के लिए प्रेरित और उत्साहित किया.

सन् 1959 में संन्यास ग्रहण के बाद उन्होंने वृंदावन में श्रीमद्भागवतपुराण का अनेक खंडों में अंग्रेजी में अनुवाद किया. आरंभिक तीन खंड प्रकाशित करने के बाद सन् 1965 में अपने गुरु देव के अनुष्ठान को संपन्न करने वे 70 वर्ष की आयु में बिना धन या किसी सहायता के अमेरिका जाने के लिए निकले.  32  दिनों की यात्ना के दौरान उन्हें दो बार हार्ट अटैक भी आया.

न्यूयॉर्क में सन् 1966 में उन्होंने अंतरराष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ (इस्कॉन) की स्थापना की. न्यूयॉर्क से प्रारंभ हुई कृष्ण भक्ति की निर्मल धारा धीरे-धीरे पूरे विश्व के कोने-कोने में बहने लगी. सन् 1966 से 1977 तक उन्होंने विश्वभर का 14 बार भ्रमण किया तथा अनेक विद्वानों से कृष्णभक्ति के विषय में वार्तालाप करके उन्हें यह समझाया कि कैसे कृष्णभावना ही जीव की वास्तविक भावना है.

12 साल में उन्होंने विश्व के कई देशों मे 108 मंदिर बनवा दिए एवं जगन्नाथ की रथयात्ना भी विश्व भर में उन्होंने ही शुरू की थी. श्री भक्तिवेदांत प्रभुपाद स्वामी का सबसे महत्वपूर्ण योगदान उनकी पुस्तकें हैं. भक्तिवेदांत स्वामी ने 70 से अधिक संस्करणों का अनुवाद किया. साथ ही वैदिक शास्त्नों- भगवद्गीता, चैतन्य चरितामृत और श्रीमद्भागवतम् का अंग्रेजी भाषा में अनुवाद किया.

इन पुस्तकों का अनुवाद 80 से अधिक भाषाओं में हो चुका है और दुनिया भर में इन पुस्तकों का वितरण हो रहा है. आंकड़ों के अनुसार अब तक 55 करोड़ से अधिक वैदिक साहित्यों का वितरण हो चुका है.
आज भारत से बाहर विदेशों में हजारों महिलाओं को साड़ी पहने, चंदन की बिंदी लगाए व पुरुषों को धोती-कुर्ता और गले में तुलसी की माला पहने देखा जा सकता है.

लाखों ने मांसाहार तो क्या चाय, कॉफी, प्याज, लहसुन जैसे तामसी पदार्थों का सेवन छोड़कर शाकाहार शुरू कर दिया है. उनके अनुयायियों के मुख पर ‘‘हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे, हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे’’ का उच्चारण सदैव रखने की प्रथा इनके द्वारा स्थापित हुई.

‘इस्कॉन’ के आज विश्व भर में 600 से अधिक मंदिर, विश्वविद्यालय, अनेक संस्था और कृषि समुदाय है. फूड फॉर लाइफ के नाम से भी इन्होंने फ्री खाना शुरू कराया, आज भी 14 लाख बच्चों को इस्कॉन मंदिर खाना बनाकर देते हैं. आज के समय में प्रचलित मिड डे मील भी इसी प्रक्रिया पर आधारित है.

स्वामी प्रभुपाद के विचार से धर्म का अर्थ है ईश्वर को जानना और उससे प्रेम करना. प्रथम श्रेणी का धर्म किसी को बिना किसी मकसद के ईश्वर से प्रेम करना सिखाता है. अगर मैं कुछ लाभ के लिए भगवान की सेवा करता हूं, तो वह व्यवसाय है- प्रेम नहीं.

हमारा एकमात्न कार्य ईश्वर से प्रेम करना है, न कि हमारी आवश्यकताओं के लिए ईश्वर को पूजना है. खुद को अकेला महसूस न करें क्योंकि भगवान हमेशा आपके साथ हैं. पापी जीवन से मुक्त होने के लिए, केवल सरल विधि है, कृष्ण में समर्पित होना. यही भक्ति की शुरुआत है.

Web Title: Swami Srila Prabhupada world celebrates 125th birth anniversary 31st August Stream Krishna Bhakti

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