लाइव न्यूज़ :

नरेंद्रकौर छाबड़ा का ब्लॉगः प्रकृति के उल्लास, धर्म और संस्कृति से जुड़ा पर्व है बैसाखी

By नरेंद्र कौर छाबड़ा | Updated: April 14, 2019 09:24 IST

यह पर्व मूल रूप से नई फसल की कटाई का है. साल भर की कड़ी मेहनत के बाद अच्छी फसल के रूप में धरती मां से उन्हें जो प्राप्त होता है, उसका स्वागत यहां के लोग खुशी मनाकर करते हैं.

Open in App

नरेंद्रकौर छाबड़ा

बैसाखी का पर्व सिख धर्म में जितना सांस्कृतिक महत्व रखता है उतना ही धार्मिक महत्व भी रखता है. भारत के उत्तरी राज्यों में विशेष कर पंजाब में जब फसलों से हरे-भरे, झूमते-लहलहाते खेतों में रबी की फसल पककर तैयार हो जाती है, प्रकृति की इस देन का धन्यवाद करने को किसान प्रभु का धन्यवाद करते हुए खुशी से नाचता, गाता है. लोकगीत और ढोल की थाप पर युवक-युवतियां पारंपरिक नृत्य भांगड़ा व गिद्दा द्वारा अपनी खुशी का इजहार करते हैं. यह पर्व मूल रूप से नई फसल की कटाई का है. साल भर की कड़ी मेहनत के बाद अच्छी फसल के रूप में धरती मां से उन्हें जो प्राप्त होता है, उसका स्वागत यहां के लोग खुशी मनाकर करते हैं.

एक ओर जहां यह पर्व कृषि और किसानों से जुड़ा हुआ है, वहीं दूसरी ओर खालसा पंथ की स्थापना का दिन होने के  कारण इसका महत्व और बढ़ जाता है. खालसा पंथ का सृजन दसवें गुरु गुरुगोविंद सिंहजी की दूरदर्शिता का कमाल ही कहा जाएगा. जब गुरुजी ने देखा कि उनके पिता गुरु तेगबहादुरजी के बलिदान के बाद भी औरंगजेब के जुल्म, अत्याचार कम नहीं हो रहे हैं तो उन्होंने घोषणा की कि मैं ऐसे पंथ की स्थापना करूंगा जो डरकर या लुक-छिपकर जीवन व्यतीत नहीं करेगा बल्कि अपनी बहादुरी, निर्भयता, श्रेष्ठता, वीरता तथा न्यारेपन द्वारा अपनी अलग पहचान व प्रभाव दिखाएगा.

सन् 1699 में बैसाखी के दिन प्रात: शब्द कीर्तन के पश्चात गुरुजी ने दरबार में तलवार लेकर संगत को संबोधित करते हुए कहा- ‘है कोई सिख बेटा, जो करे सीस भेंटा’ उस समय पंडाल में हजारों की संख्या में लोग मौजूद थे. गुरुजी की बात सुनकर पंडाल में सन्नाटा छा गया. कुछ देर पश्चात लाहौर के रहने वाले खत्री भाई दयाराम ने खड़े होकर कहा- ‘मेरा मुझमें किछ नहीं जो किछ है सो तेरा’ और शीश झुका दिया. 

 इसके बाद दिल्ली के जाट भाई धर्मचंद, द्वारका के धोबी मोहकचंद, जगन्नाथपुरी के कहार हिम्मतराय तथा नाई साहेबचंद आगे आए और गुरुजी से कहा- हमारा शीश हाजिर है. गुरुजी सबको पंडाल के भीतर ले गए. कुछ देर बाद जब वे बाहर आए उनके साथ पांच सिख थे. जिन्होंने एक जैसी वर्दी पहन रखी थी. प्रत्येक ने अपनी कमर में तलवार धारण की हुई थी. गुरुजी ने उन्हें ‘पंच प्यारे’ की उपाधि दी.

सिखों ने दुश्मनी के लिए कभी तलवार नहीं उठाई, बल्कि स्वयं की, देश की रक्षा तथा अन्याय का सामना करने के लिए ही शस्त्रों का प्रयोग किया. उनके मार्गदर्शन के कारण ही सदियों से दबे-कुचले लोग क्रांति लाने का साहस जुटा सके.

टॅग्स :त्योहार
Open in App

संबंधित खबरें

पूजा पाठसूर्य ग्रह हर किसी की आत्मा है

भारतHoliday Calendar 2026: कब होगी त्योहारों की छुट्टी और कब बंद रहेंगे बैंक? जानिए साल 2026 की पूरी अवकाश सूची

कारोबारBank Holiday: आज से लेकर अगले 5 दिनों तक बंद रहेंगे बैंक, जानिए RBI ने क्यों दी लंबी छुट्टी

भारतHoliday Calendar 2026: नए साल 2026 में कितने दिन मिलेगी छुट्टी, जानें कब रहेगा लॉन्ग वीकेंड, पूरी लिस्ट यहां

भारतChhath Puja 2025: सीएम नीतीश कुमार ने डूबते सूर्य को दिया अर्घ्य, देखें लोक आस्था के महापर्व छठ से जुड़े वीडियो

पूजा पाठ अधिक खबरें

पूजा पाठPanchang 24 December 2025: जानें आज कब से कब तक है राहुकाल और अभिजीत मुहूर्त का समय

पूजा पाठRashifal 24 December 2025: आज सोच-समझकर फैसला लें सिंह राशि के जातक, जानें सभी राशियों फलादेश

पूजा पाठVaishno Devi Yatra 2026: नए साल में वैष्णो देवी आने वालों पर कई प्रकार की पाबंदियां

पूजा पाठGuru Gochar 2026: देवगुरु बृहस्पति का नए साल में गोचर इन 3 राशियों के लिए होगा गोल्डन पीरियड, प्रॉपर्टी और आय में होगी जबरदस्त वृद्धि

पूजा पाठDhanu Rashifal 2026: धनु राशिवालों के लिए नया साल लाएगा ढेर सारी खुशियां, पढ़ें अपनी वार्षिक भविष्यवाणी