जावेद आलम का ब्लॉग: बुराइयों के त्याग और बलिदान का पर्व
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: August 12, 2019 09:35 AM2019-08-12T09:35:58+5:302019-08-12T09:35:58+5:30
ऐसा उत्सव जिसमें कई संदेश छुपे हुए हैं. पहला तो संदेश यही है कि संसार में जो भी काम किया जाए, अल्लाह के लिए किया जाए कि कुर्बानी भी अल्लाह के लिए ही की जाती है.
जावेद आलम
ईद-उल-अजहा कुर्बानी यानी बलिदान, त्याग, समर्पण व आपसी सहभागिता का त्यौहार है. असल में तो यह त्याग व बलिदान का जज्बा जगाए रखने का एक उत्सव है. ऐसा उत्सव जिसमें कई संदेश छुपे हुए हैं. पहला तो संदेश यही है कि संसार में जो भी काम किया जाए, अल्लाह के लिए किया जाए कि कुर्बानी भी अल्लाह के लिए ही की जाती है.
वह कुर्बानी जो इब्राहिम (अ.) अपने बेटे की दे रहे थे, मगर अल्लाह तआला ने उनकी जगह दुंबा (एक चौपाया) पहुंचा दिया. इस तरह इसमें एक महान बलिदान का संदेश भी छुपा हुआ है.
सहभागिता के साथ त्याग व बलिदान का यह संदेश आज आम किए जाने की ज्यादा जरूरत है. मौजूदा दौर में परिस्थितियों का सामना करने के लिए त्याग, बलिदान व सहभागिता कारगर हथियार साबित हो सकते हैं.
इसके लिए जरूरी तैयारी करें, जैसे खुद तालीमयाफ्ता हों और दूसरों तक भी तालीम की रौशनी पहुंचाने के जतन करें. खुद तकनीकी रूप से सक्षम हों और अपने हम-खयाल लोगों को सक्षम होने में हर मुमकिन मदद करें.
ईद-उल-अजहा के जरिये दिया जाने वाला सहभागिता का संदेश याद रखते हुए भारतीय समाज में सहभागिता के लिए गंभीर प्रयास करें. आपसी सद्भाव की कद्र करने वाले, वैमनस्य व भेदभाव से दूर रहने वाले लोगों, संगठनों से रिश्ते बनाएं तथा रचनात्मक कार्यो में सहभागिता का अलख जगाएं.
याद रखने की बात है कि अच्छे कामों के लिए सदा त्याग व बलिदान की जरूरत पड़ती है. आज के दौर में उनकी जरूरत कहीं ज्यादा महसूस हो रही है. ईद-उल-अजहा पर की जाने वाली कुर्बानी यानी बलिदान से अगर हम में त्याग, बलिदान, सहभागिता का सच्चा जज्बा पैदा होता है तो समङिाए कि ईद सार्थक है.