धर्म, पंथ, संप्रदाय अलग हो सकते हैं; सत्य नहीं

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: October 28, 2021 12:16 PM2021-10-28T12:16:46+5:302021-10-28T13:11:29+5:30

लोकमत नागपुर संस्करण की स्वर्ण जयंती के अवसर पर आयोजित राष्ट्रीय अंतरधर्मीय सम्मेलन में ‘धार्मिक सौहाद्र्र के लिए वैश्विक चुनौतियां और भारत की भूमिका’ विषय पर हुई परिषद में पतंजलि योगपीठ, हरिद्वार के संस्थापक स्वामी रामदेव के संबोधन के संपादित अंश

humanity is one and only religion of all mankind | धर्म, पंथ, संप्रदाय अलग हो सकते हैं; सत्य नहीं

मानवता ही संपूर्ण मानवजाति का धर्म है।

पतंजलि योगपीठ, हरिद्वार के संस्थापक स्वामी रामदेव के संबोधन के संपादित अंश

यह कहा जा सकता है कि प्रत्येक धर्म की बुनियाद इस सिद्धांत पर आधारित है कि समाज और उसमें रहने वाले प्रत्येक घटक को प्रेम भाव से रहना चाहिए। धर्म लोगों को सौहार्दपूर्ण आचरण करने की राह दिखाता है। धर्म का मूल तत्व ही यही है। प्रकृति का नियम कोइ बदल नहीं सकता तथा उसका पालन सभी लोगों को करना पड़ता है। यह नियम सभी पर एक समान लागू होता है। संपूर्ण विश्व परमात्मा द्वारा बनाई गई विधि के अनुसार ही चलता है, दुनिया के सभी देश अपने अपने संविधान के मुताबिक चलते हैं, उसी तरह संपूर्ण समाज नैतिक, आध्यात्मिक व मानवीय मूल्यों पर चलकर ही आगे बढ़ सकता है। 

ये मूल्य शाश्वत रहते हैं। मैं ये मानता हूं कि सच्चा धर्म एक ही होता है। हिंदू, मुस्लिम, ईसाई ये सभी एक ही वृक्ष की शाखाएं हैं। अनेक पंथ और उपासना पद्धतियां- इन सबकी मंजिल एक ही रहती है, भले ही उनकी राह अलग-अलग हो। वास्तव में, इस आयोजन का शीर्षक सर्वधर्म सम्मेलन नहीं, सर्वपंथ सम्मेलन होना चाहिए था। हमें सर्व धर्म नहीं, सर्वपंथ कहना चाहिए। धर्म एक ही होता है और वह है मानवता, सत्य और न्याय। धर्म अलग हो ही कैसे सकते हैं, पानी का एक धर्म, आग का एक धर्म, हवा, पृथ्वी, सूर्य और चंद्र का भी एक ही धर्म होता है। अत: संपूर्ण मानव जाति का धर्म एक ही होता है। मानवता ही सच्चा धर्म है। 

मत, पंथ और संप्रदाय अलग हो सकते हैं परंतु उनका सत्य अलग-अलग नहीं हो सकता। एकत्व ही सत्य है। न्याय, मैत्री ही सत्य है। सहअस्तित्व, विश्वबंधुत्व, सौहार्द, एकता और समानता, यही वेद एवं सभी धर्म ग्रंथों का संदेश है। संस्कृति का भी एक ही संदेश है। हम सभी एक ही ईश्वर की संतान हैं और हमारे पूर्वज भी समान ही थे। अपने पूर्वजों की परंपरा व संस्कृति को साथ लेकर हमें एक होकर आगे बढ़ना होगा। 

भाषा, धर्म, जाति और प्रांतवाद के उन्माद से दूर रहकर आध्यात्मिक राष्ट्रवाद तथा सात्विक विचारों का प्रचार-प्रसार करना होगा। इसी दृष्टिकोण से देश का विकास होगा और सही अर्थों में धर्म का काम होगा। यदि ऐसा हुआ तभी भारत फिर से पूरे विश्व का नेतृत्व करने में समर्थ होगा और विश्व गुरु बनेगा। दुनिया के समस्त धर्माचार्यो ने एक स्वर में कहा है कि हम सब एक हैं। हम सब एक ही ईश्वर की संतान हैं। एक ही पृथ्वी माता के भक्त हैं। यदि इस संदेश का अनुसरण किया गया तो कितना अच्छा होगा। 

धर्मगुरुओं को हमें सभी को हिंदू, मुस्लिम या ईसाई बनना चाहिए कहने के बजाय यह कहना चाहिए कि हम सबको मानव बनाएंगे। परंतु वास्तविकता यह नहीं है और यह चिंता की बात है। हर कोई अपनी अस्मिता को लेकर संवेदनशील हो गया है। कोई कहता है ब्राह्मण महान है तो कोई ओबीसी को महान बताता है, कोई क्षत्रिय को तो कोई शूद्र को महान कहता है। यह क्या चल रहा है? जब हम सब एक हैं, तब एक -दूसरे से झगड़ा क्यों कर रहे हैं?

ज्ञान, तकनीक और अनुसंधान का उपयोग मानव के विकास के लिए करना ही धर्म है। ज्ञान का उपयोग सभी के कल्याण के लिए किया जाना चाहिए। यही सच्चा धर्म और अध्यात्म है। आपके विचारों में दोष नहीं होना चाहिए। यह महत्वपूर्ण नहीं है कि आपने कहां और कितनी शिक्षा हासिल की तथा आप कहां से आए हैं। महत्वपूर्ण आपके विचार हैं। संपूर्ण सृष्टि ईश्वर के विधान से चलती है। 

देश संविधान के आधार पर चलते हैं। और समाज अध्यात्म के आधार पर चलता है। साधना के प्रकार अलग-अलग हो सकते हैं लेकिन साध्य एक ही रहता है। सबसे बड़ा धर्म हमारा कर्म ही होता है। हमारे कर्म पवित्र होने चाहिए। इसके लिए विवेक और भावना में पवित्रता होनी चाहिए। यही धर्म की भाषा है। आपके विचारों में दुर्भावना और आपके आचरण में दुर्गुण नहीं होना चाहिए। सद्भाव और सद्गुणों के आधार पर ही समाज प्रगति कर सकता है। सम्यक विचार, सम्यक भक्ति, सम्यक कृति, सम्यक संस्कृति एवं सम्यक प्रकृति ही प्रगति के आधार हैं।

कोरोना महामारी के कारण दुनिया को योगाभ्यास का महत्व समझ में आया है। लोगों को इस बात पर भरोसा हो गया है कि अगर योग नहीं किया तो हमारी सांस रुक जाएगी। जो योग करेगा, वही रोगमुक्त जीवन जी सकेगा। योग की शक्ति से ही व्यक्ति व्यसनों और हिंसा से दूर रह सकता है। जिनके जीवन में आध्यात्मिक मूल्यों का संचार हुआ है, वे स्वप्न में भी नशा करने की इच्छा नहीं करते। जो नियमित रूप से योग करेगा, निराशा उनके आसपास भी नहीं फटकेगी। मेरे पिता और दादा निरक्षर थे, उन्हें हुक्का और तंबाकू की लत थी। 

मैंने योग के माध्यम से उन्हें इन व्यसनों से मुक्त किया। योग का दुनिया भर में प्रसार हो रहा है। उसके सकारात्मक परिणाम चारों ओर नजर आने लगे हैं। मुझे विश्वास है कि योगशक्ति तथा अध्यात्म के बल पर हम धीरे-धीरे एक सुंदर विश्व की फिर से संरचना कर सकते हैं। एकता, अखंडता और समानता रही तो देश के चरित्र में महानता कायम रह सकती है। समानता का विचार और सौहार्द जैसे तत्व ही इस देश को नई दिशा देंगे। मुझे इस बात में कोई शंका नहीं है कि इसी मार्ग पर चलकर भारत परम वैभव प्राप्त कर सकता है।

Web Title: humanity is one and only religion of all mankind

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