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रंग तरंग और मनमौजी होली...!

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: March 14, 2025 06:38 IST

उत्तरी स्पेन में वाइन से नहला देने का त्यौहार मनाया जाता है. यानी मस्ती का ऐसा त्यौहार पूरी दुनिया में मनाया जाता है.

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कहते हैं कि जो बावलापन इश्क में होता है, वह होली के दिन पूरी फिजा में घुल जाता है. मन बावरा हो जाता है, हवा के हर कतरे में मादकता छा जाती है. हर रोज परेशान करने वाले गम न जाने कहां काफूर हो जाते हैं. छाई रहती है तो बस मस्ती...मस्ती...और मस्ती! ऐसे में कोई बददिमाग यदि होली को छपरियों का त्यौहार कह दे तो बुरा मत मानिए.

पहली बात तो यह कि इस त्यौहार का पौराणिक संदर्भ बुराई पर अच्छाई का है और आधुनिक संदर्भ में हम गाते भी हैं... बुरा न मानो होली है! यदि किसी को लगता है कि रंग और गुलाल में सराबोर हो जाना असभ्यता है तो ऐसे सभ्यों की होली में जरूरत भी नहीं पड़ती है. इन्हें माफ कर देना ही असली होली है. इन्हें कौन समझाए कि होली की अपनी एक सामाजिकता होती है.

हर समय काम की फिक्र में लग रहने वाले लोगों के लिए कोई एक खास दिन तो ऐसा होना ही चाहिए जब सारे गमों को भूलकर मस्ती में डूब जाएं. सनातन परंपरा में जितने भी पर्व त्यौहार हैं, उनकी अपनी वैज्ञानिकता है. होली को छपरियों का त्यौहार कहने वाले क्या जानें कि फसल कट कर जब किसान के घर आती है तो उसके यहां खुशियों का कैसा संसार सजता है. सभ्यता के विकास और आधुनिक वक्त के अनुरूप भी यदि हम होली की व्याख्या करें तो एक जैसे रंग में रंग जाना कितना बड़ा समाजवाद है.

होली के दिन गरीब-अमीर का, छोटे-बड़े का कोई भेदभाव नहीं होता है. सब एक-दूसरे को खुशियां बांटने के लिए उतावले रहते हैं. रंग से पुते चेहरों के बीच कौन किससे गले मिल रहा है, कई बार यह होश भी नहीं रहता. याद रहता है तो केवल इतना कि आज होली का त्यौहार है, एक-दूसरे से गले मिलने का त्यौहार है, हर किसी के लिए मनमौजी हो जाने का त्यौहार है. दुनिया में ऐसा और कोई त्यौहार नहीं जिस दिन इतने सारे लोग मस्ती में डूब जाते हों! भारत संस्कृतियों का सबसे बड़ा मिलन स्थल रहा है इसलिए होली जैसे त्यौहार की भारत भूमि में सबसे बड़ी जरूरत रही होगी.

यदि जरूरत न होती तो क्या यह त्यौहार हजारों-हजार साल से हमारे जीवन में शामिल होता? जो लोग दुनिया घूमते हैं, उन्होंने देखा होगा कि दक्षिण कोरिया में मड फेस्टिवल मनाया जाता है. 10 दिन तक लोग एक दूसरे पर मिट्टी का लेप लगाते हैं. निश्चय ही यह भी एक तरह की होली ही है. हमारे देश के उत्तरी हिस्से में भी कीचड़ से होली खेलने की परंपरा है.

सभ्यता का ताल ठोंकने वालों को कभी बिहार या उत्तरप्रदेश जाकर देखना चाहिए कि किस तरह लोग उत्साह के साथ कीचड़ में लिपटते हैं. स्पेन में टमाटर से होली खेलने के बारे में तो आप जानते ही होंगे. थाईलैंड में नए साल की शुरुआत का त्यौहार लोग होली की तरह ही भीगकर खेलते हैं. उत्तरी स्पेन में वाइन से नहला देने का त्यौहार मनाया जाता है. यानी मस्ती का ऐसा त्यौहार पूरी दुनिया में मनाया जाता है. हां, वक्त के साथ कुछ जरूरी बातों का ध्यान रखना बहुत जरूरी भी है.

उदाहरण के लिए जब होली शुरू हुई होगी तो केमिकल रंग नहीं होंगे. तब फूल पत्तियों से रंग तैयार किया जाता था. ...तो किसी को केमिकल रंग से मत पोतिए, इससे त्वचा खराब होती है. किसी को रंगना ही है तो अरारोट के गुलाल से रंग दीजिए. हरी पत्तियों के रंग में रंग दीजिए. इससे भी ज्यादा जरूरी यह समझना है कि रंगों का मतलब मन की रंगीनियत से है. अपने मन को रंगारंग कर लीजिए, इससे बेहतर होली और क्या हो सकती है? होली की ढेर सारी शुभकामनाएं...!

टॅग्स :होलीत्योहारहिंदू त्योहारभारतदिल्ली
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