Guru Tegh Bahadur Shaheedi Diwas 2025: गुरु तेग बहादुर जी बचपन से ही शांत, एकांतप्रिय, उदार तथा प्रभु स्मरण में लीन रहने की प्रवृत्ति वाले थे. छोटी उम्र में ही उन्हें गहरा आध्यात्मिक लगाव हो गया था. घंटों वे प्रभु स्मरण में लीन रहते थे. कई बार उनकी माता नानकी जी पति हरगोविंद जी से इस बारे में बात करतीं तो वह कहते - हमारे बेटे को आगे जाकर संसार में बहुत बड़े काम करने हैं इसलिए वह अभी से ही उसकी तैयारी में लगा है. और सचमुच आगे जाकर उन्होंने धर्म तथा मानवता की रक्षा के लिए अपना बलिदान दे दिया.
श्री गुरु ग्रंथ साहिब में गुरु तेग बहादुर जी द्वारा रचित 57 श्लोकों का समावेश है. ऐसी मान्यता है कि ये श्लोक गुरु जी ने अपनी शहादत से पहले दिल्ली में लिखे थे. उन्होंने जो मुख्य बातें हमारे साथ साझा की हैं वे हैं- इस संसार में जीवन क्षणभंगुर है और इसकी निश्चित परिणति मृत्यु है. इस संसार में कोई भी नश्वर सहारा नहीं बन सकता इसलिए केवल ईश्वर के नाम का सच्चा सहारा खोजो.
प्रथम छंद में गुरु जी कहते हैं कि यह जीवन हमें प्रभु स्मरण में जीने के लिए मिला था परंतु ईश्वर का गुणगान किये बिना यह व्यर्थ ही नष्ट हो गयाजो व्यक्ति ईश्वर के साथ एकाकार हो जाते हैं उनके गुणों का वर्णन गुरु जी इस प्रकार करते हैं- वे सुख या दुख से प्रभावित नहीं होते, लालच, मोह, अभिमान से दूर रहते हैं. किसी की निंदा, प्रशंसा का उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता.
सोने और लोहे को एक समान समझते हैं. न वे किसी से डरते हैं न किसी को डराते हैं. विकारों से मुक्त होकर जीवन में वैराग्य का भाव अपना लेते हैं, अहंकार, मोह, लोभ सभी को त्याग कर स्वयं भी तैर कर पार हो जाते हैं तथा अन्य लोगों को भी तैरने में सहायता करते हैं ऐसे व्यक्ति मोक्ष को प्राप्त कर लेते हैं.
गुरुजी कहते हैं सारा संसार स्वप्नमात्र है वास्तविक नहीं और इसमें केवल ईश्वर ही वास्तविकता है शेष माया है जिसकी समाप्ति तय है. गुरुजी माया का वर्णन इस प्रकार करते हैं- माया पानी में लगातार बनने और फैलने वाले बुलबुले की तरह है. माया से अंधे हुए मनुष्य क्षणभर के लिए भी भगवान को स्मरण नहीं करते, माया के पीछे भागते हुए जीवन व्यर्थ हो जाता है.
माया में लीन मनुष्य ने झूठी आशाएं पाल रखी थी लेकिन हुआ कुछ और ही. उसने दूसरों को ठगने की योजना बनाई लेकिन पाया कि वह स्वयं ही अपने गले में फंदा डाल रहा है. सुखों का पीछा करने और दुखों से बचने के लिए सभी प्रयास किए लेकिन जो कुछ भगवान ने निर्धारित किया है वही हुआ है.
गुरु जी कहते हैं तीर्थ यात्रा, उपवास या दान जैसे कर्मकांड लक्ष्य के निकट नहीं ले जाएंगे बल्कि वे अभिमान से भर देंगे. ये कर्मकांड ऐसे हैं जैसे हाथी का स्नान. जीवन का सर्वोत्तम समय व्यर्थ के कार्यों में नष्ट हो गया. बुढ़ापा आ गया, सिर कांपने लगा, चाल लड़खड़ा गई, दृष्टि क्षीण हो गई फिर भी जीवन का अमृत नहीं चखा. इसलिए हे मानव, ईश्वर की भक्ति को ही विकसित करो जो शाश्वत है.
गुरुजी हमें संसार की नश्वरता से घबराने की सलाह नहीं देते. वे याद दिलाते हैं कि यहां कुछ भी शाश्वत नहीं है हर चीज का नाश होना तय है. आज या कल सबकुछ नाश होगा. इसलिए अन्य उलझनों को एक तरफ रखकर केवल भगवान की स्तुति, स्मरण करो. संपूर्ण मानव जाति याचक है और दाता केवल एक ईश्वर है.
अतः अपनी सभी इच्छाओं की पूर्ति के लिए उसका ध्यान करो. गुरु जी ने अलग-अलग उदाहरण से संसार की नश्वरता की बात कही है और समझाया है कि केवल ईश्वर की भक्ति, स्मरण द्वारा ही इस संसार रूपी भवसागर को पार किया जा सकता है.