जावेद आलम
त्योहार इंसानों को नई ऊर्जा व सकारात्मक पैगाम देते हैं. खासतौर से ईद-उल-फितर के माध्यम से तो रोजेदार जैसे हर साल एक नई दुनिया में कदम रखता है. एक माह के रोजों की कठिन तपस्या के ईनामस्वरूप अल्लाह ने अपने नेक बंदों को ईद-उल-फितर की सौगात दी है. इसके मूल में आत्मा व शरीर की शुद्धि, दिल से मैल की सफाई, त्याग, पारस्परिक मेलजोल, इंसानियत के नाते हमदर्दी व मदद के जज्बात उभारना, भाईचारा व हर हाल में रब का शुक्र अदा करना जैसी बातें शामिल हैं. अरबी शब्द ईद का अर्थ पलट कर आना भी है और खुशी भी.
सो स्वाभाविक रूप से ईद खुशियां मनाने व बांटने का दिन है. माहे-रमजान की एक माही इबादतों के बाद थके-मांदे इंसान को नई ऊर्जा देने के ख्याल से ईद-उल-फितर अता की गई है. यह खुशी का दिन है और इस्लाम खुशी को भी संयम के साथ मनाने की सीख देता है. ईद-उल-फितर में विशेष नमाज पढ़ने व खासतौर से फित्रा अदा करने का हुक्म है.
ईद की यह विशेष नमाज नियमित नमाजों के अलावा है, जो सिर्फ ईद के दिन ही पढ़ी जाती है. इसके पीछे फलसफा यह है कि अल्लाह तआला के हुक्म से तुमने रमजान का पाक महीना संयम व धर्म परायणता के साथ खासी बंदिशों में गुजारा. तुम्हारी यह इबादतें बख्शीश का जरिया बन सकती हैं, सो इस मौके पर अपने रब के दरबार में तुम्हें विशेष सजधज के साथ हाजिर होकर शुक्राना अदा करना है.
साथ ही यह कि अब तुम अपनी नियमित दिनचर्या की ओर लौट रहे हो, सो यहां से विशेष नमाज अदा कर के, जी भर के दुआएं मांग कर जाओ ताकि तुम्हें दोनों लोक में सफलता मिले. ईद-उल-फितर से जुड़ा फित्रा दरअसल एक निश्चित राशि है, जो हर खाते-पीते मुसलमान को ईद की नमाज से पहले अदा करना जरूरी है.
यह राशि गरीब, कमजोर मुसलमानों को दिए जाने का हुक्म है, ताकि वे भी ईद की खुशियों में शरीक हो सकें. आपसी हमदर्दी, भाईचारा, रिश्ते निभाने जैसे अच्छे कामों के साथ हर मौके पर अपने रब को याद रखने व उसके बताए रास्तों पर चलने का पैगाम देती ईद-उल-फितर दुनिया में भी अमन व शांति कायम करने का जरिया बन जाए, आमीन!