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Dhanteras 2025: आरोग्य, समृद्धि और दिव्यता का संगम, पांच दिवसीय दीपोत्सव का शुभारंभ

By योगेश कुमार गोयल | Updated: October 18, 2025 05:16 IST

Dhanteras 2025:  शुभ तिथि 18 अक्तूबर को पड़ रही है, जब दीपोत्सव का आरंभ भगवान धन्वंतरि के पूजन से होगा, जिनका स्मरण करते ही आयुर्वेद के दिव्य प्रकाश का प्रसार होता है.

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ठळक मुद्देभगवान धन्वंतरि को जगत के पालनहार भगवान विष्णु का अंशावतार माना गया है.चिकित्सा विज्ञान की दिव्य ध्वनि गूंजी और आरोग्य एवं अमृत का रहस्य प्रकट हुआ.धनतेरस का इतिहास जितना प्राचीन है, उतना ही जनमानस से जुड़ा है.

Dhanteras 2025: पांच दिवसीय दीपोत्सव का शुभारंभ जिस पवित्र दिन से होता है, वह है आरोग्य, समृद्धि और स्वास्थ्य जागृति का प्रतीक पर्व ‘धनतेरस’.  यह केवल धन और ऐश्वर्य का नहीं बल्कि आरोग्य और आयुर्वेद की दिव्य परंपरा का उत्सव है.  कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाने वाला यह पर्व हमें याद दिलाता है कि सच्चा धन स्वर्ण या रत्न नहीं बल्कि स्वस्थ शरीर, शुद्ध मन और दीर्घायु जीवन है. इस वर्ष यह शुभ तिथि 18 अक्तूबर को पड़ रही है, जब दीपोत्सव का आरंभ भगवान धन्वंतरि के पूजन से होगा, जिनका स्मरण करते ही आयुर्वेद के दिव्य प्रकाश का प्रसार होता है.

भगवान धन्वंतरि को जगत के पालनहार भगवान विष्णु का अंशावतार माना गया है. शास्त्रों में उल्लेख है कि समुद्र मंथन के समय अनेक रत्न उत्पन्न हुए, उन नवरत्नों में से एक थे धन्वंतरि, जो अमृत कलश लेकर प्रकट हुए. उस क्षण ब्रह्मांड में पहली बार चिकित्सा विज्ञान की दिव्य ध्वनि गूंजी और आरोग्य एवं अमृत का रहस्य प्रकट हुआ.

इसी कारण धन्वंतरि को आयुर्वेद का जनक और देवताओं का वैद्य कहा गया. भागवत, विष्णु पुराण, वायु पुराण, अग्नि पुराण, महाभारत और रामायण में धन्वंतरि का उल्लेख देव वैद्य और आरोग्यदाता के रूप में मिलता है. भगवान विष्णु के 24 अवतारों में 12वां अवतार धन्वंतरि का बताया गया है. धनतेरस का इतिहास जितना प्राचीन है, उतना ही जनमानस से जुड़ा है.

समुद्र मंथन की कथा से लेकर लोकजीवन तक यह पर्व आरोग्य और समृद्धि के मिलन का प्रतीक है.  जब देवताओं और असुरों के बीच अमृत कलश को लेकर संघर्ष हुआ, तब धन्वंतरि ने देवताओं को अमृतपान कराकर उन्हें अमर बना दिया. यही वह क्षण था, जब मानवता को यह संदेश मिला कि रोग से मुक्ति केवल अमृत नहीं बल्कि चिकित्सा और संयम में है.

तभी से धनतेरस का दीप स्वास्थ्य और जीवन की दीर्घता का प्रतीक बन गया. धनतेरस की एक और विशेष मान्यता यमराज के पूजन से जुड़ी है.  इस दिन मृत्यु के देवता यमराज के लिए दीपक जलाया जाता है, जिसे ‘यम दीपक’ कहा जाता है. धनतेरस के दिन नई वस्तुओं की खरीद का विशेष महत्व है.  कहा जाता है कि जब धन्वंतरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे,

तब उनके हाथ में धातु का कलश था. इसी कारण इस दिन बर्तन, स्वर्ण, चांदी, तांबा या पीतल की वस्तुएं खरीदना शुभ माना गया.  लोकमान्यता है कि नया बर्तन घर में स्वास्थ्य, स्वच्छता और समृद्धि लाता है. कई लोग इस दिन नई झाड़ू खरीदकर उसका पूजन करते हैं, जो दरिद्रता और रोगों के निवारण का प्रतीक माना जाता है.

धनतेरस केवल एक धार्मिक पर्व नहीं बल्कि भारतीय जीवन-दर्शन का उत्सव है, जहां धन, आरोग्य और धर्म तीनों का समन्वय होता है. यह दिन हमें याद दिलाता है कि समृद्धि का पहला सूत्र स्वास्थ्य में है; रोगरहित जीवन ही सच्चा धन है. आधुनिक युग में जब जीवनशैली और तनावजन्य रोगों ने मानवता को जकड़ लिया है,

तब धनतेरस का यह संदेश और भी प्रासंगिक हो उठता है कि प्रकृति की ओर लौटो, संतुलन में रहो, शरीर और मन का ध्यान रखो. आज के युग में जब स्वास्थ्य संकट, प्रदूषण, तनाव और जीवनशैली के रोग मानवता को घेर रहे हैं, तब धनतेरस केवल परंपरा नहीं बल्कि स्वयं को और समाज को आरोग्यवान बनाने की प्रेरणा है.  

 

टॅग्स :धनतेरसदिवालीभाई दूज
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