नरेंद्रकौर छाबड़ा का ब्लॉग: शहीदों के सरताज गुरु अर्जुन देव जी
By नरेंद्र कौर छाबड़ा | Published: June 7, 2019 12:43 PM2019-06-07T12:43:21+5:302019-06-07T12:43:21+5:30
जहांगीर ने उल्टे-सीधे आरोप लगाकर गुरुजी को गिरफ्तार कर लिया. उनसे अपनी मर्जी करवाने की कोशिश की गई लेकिन गुरुजी ने झूठ का साथ देने की बजाय शहादत का रास्ता चुना. जहांगीर ने उन्हें लाहौर के हाकिम मुर्तजा खान के हवाले कर दिया.
गुरु अर्जुन देव जी का जन्म सन् 1563 में 15 अप्रैल के दिन चौथे गुरु श्री गुरु रामदासजी के घर हुआ था. उनके अंदर के श्रेष्ठ गुणों को देख पिता रामदास ने मात्र 18 वर्ष की आयु में उन्हें गुरु गद्दी सौंप दी. गुरु गद्दी पर बैठते ही गुरुजी ने अपने पिता द्वारा आरंभ किए गए सभी कार्यो को जिम्मेदारी से पूर्ण करना शुरू किया.
अमृतसर सरोवर की नींव गुरु रामदास जी रखवा चुके थे. गुरु अर्जुन देव जी संगत के साथ स्वयं सेवा करते. प्रमुख भूमिका बाबा बुड्ढा जी ने निभाई. यह सरोवर संपूर्ण होने के पश्चात गुरुजी ने गुरु के महल, डय़ोढ़ी साहिब, संतोखसर आदि का निर्माण करवाया. इसके पश्चात अमृतसर सरोवर के बीचों-बीच हरमंदिर साहिब बनाने का विचार गुरुजी ने किया. इसका नक्शा स्वयं उन्होंने बनाया तथा इसकी नींव मुस्लिम फकीर मियां मीर जो गुरु घर के बहुत श्रद्धालु थे, उनसे रखवाई.
संवत् 1661 में इमारत पूरी होने पर यहां गुरु ग्रंथ साहिब का प्रकाश किया गया तथा बाबा बुड्ढा जी को पहला ग्रंथी नियुक्त किया गया. इसके बाद गुरुजी ने तरनतारन सरोवर तथा शहर की स्थापना की. यहां पर उन्होंने एक आश्रम बनवाया जिसमें कुष्ठ रोगियों की सेवा, उनके आवास, दवा की व्यवस्था की गई. इसके साथ ही उन्होंने जालंधर, छिहरटा साहिब, श्री हरगोबिंदपुरा, गुरु का बाग, श्री रामसर आदि स्थानों का निर्माण कराया. रामसर सरोवर के किनारे बैठ उन्होंने भाई गुरदासजी से श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बाणी लिखवाई.
सिख धर्म की यह उन्नति कइयों को नहीं सुहाती थी. लाहौर का दीवान चंदू गुरुजी के बेटे हरगोबिंद जी से अपनी बेटी का रिश्ता टूट जाने के कारण उनका घोर विरोधी बन गया था. ऐसे माहौल में अकबर की मृत्यु के बाद जहांगीर मुगल साम्राज्य के तख्त पर बैठा. उन्हीं दिनों जहांगीर के पुत्र खुसरो ने बगावत कर दी. जहांगीर ने उसे गिरफ्तार करने का आदेश दिया. वह पंजाब की ओर भागा तथा तरनतारन में गुरु अजरुन देव जी के पास पहुंचा. गुरुजी ने उसका स्वागत किया व आशीर्वाद दिया.
जहांगीर ने उल्टे-सीधे आरोप लगाकर गुरुजी को गिरफ्तार कर लिया. उनसे अपनी मर्जी करवाने की कोशिश की गई लेकिन गुरुजी ने झूठ का साथ देने की बजाय शहादत का रास्ता चुना. जहांगीर ने उन्हें लाहौर के हाकिम मुर्तजा खान के हवाले कर दिया. मुर्तजा खान ने गुरुघर के द्रोही चंदू को उन्हें सौंप दिया. चंदू की यातनाओं का दौर शुरू हुआ. पहले दिन गुरुजी को गर्म तवे पर बैठाकर शीश पर गर्म रेत डाली गई. फिर उन्हें देग में बैठाकर उबलते पानी में उबाला गया. पांच दिनों तक इसी प्रकार के अनेक कष्ट उन्हें दिए गए. छठे दिन उनके अर्धमूच्र्छित शरीर को रावी नदी में बहा दिया गया.
साईं मियां मीर ने गुरुजी को छुड़वाने की कोशिश की, पर गुरुजी ने कहा - ‘क्या हुआ जो यह शरीर तप रहा है. प्रभु के प्यारों को उसकी रजा में खुश रहना चाहिए.’ जहां गुरुजी की देह को बहाया गया, उस स्थान पर गुरुद्वारा डेरा साहिब बनाया गया, जो अब पाकिस्तान में है.