लाइव न्यूज़ :

ब्लॉग: सौंदर्य और समग्रता का प्रतीक है बसंत

By गिरीश्वर मिश्र | Updated: February 14, 2024 12:34 IST

मूर्त या मानवीकृत बसंत कामदेव का परम सुहृदय और सहचर है।  वह सृष्टि के उद्भेद का संकल्प है। फागुन–चैत, यानी आधा फरवरी, पूरा मार्च और आधा अप्रैल बसंत ऋतु के महीने कहे जाते हैं।  बसंत या फागुन-चैत के साथ भारतीय नया वर्ष भी शुरू होता है।

Open in App

श्रीमद्भगवद्गीता में विभूति योग की व्याख्या करते हुए भगवान कृष्ण खुद को ऋतुओं में बसंत घोषित करते हैं : ऋतुनाम् कुसुमाकर: श्रीमद्भागवत के दशम स्कंध में रास प्रवेश करते हुए उनकी निराली छवि कामदेव को भी लजाने वाली है।  गोपियों के सामने भगवान श्रीकृष्ण अपने मुस्कराते हुए मुखकमल के साथ पीताम्बर धारण किए तथा वनमाला पहने हुए प्रकट हुए।  उस समय वे साक्षात मन्मथ यानी कामदेव का भी मन मथने वाले लग रहे थे। 

श्रीकृष्ण अप्रतिम सौंदर्य और लावण्य के आगार हैं तो काम को सौंदर्य के मानदंड की तरह रखा गया है।  भारतीय संस्कृति में कामदेव की संकल्पना अत्यंत प्राचीन है। इच्छा और कामना की प्रतिमूर्ति के रूप में काम शब्द का प्रथम उल्लेख ऋग्वेद के नासदीय सूक्त में मिलता है जिसके ऋषि परमेष्ठी प्रजापति हैं, और देवता हैं परमात्मा. व्यक्त और अव्यक्त रूपों वाले कामदेव मन्मथ, अतनु, अनंग, कंदर्प, मदन, पुष्पधन्वा आदि कई नामों से जाने जाते हैं। उनको लेकर अनेक कथाएं और मिथक भी प्रचलित हैं।

एक कथा यह है कि कामदेव ब्रह्मा के मन से जन्मे थे। कहते हैं बसंत पंचमी की तिथि पर कामदेव का धरती पर आगमन हुआ। जहां सौंदर्य है वहीं काम की उपस्थिति है जैसे- यौवन, स्त्री, सुंदर पुष्प, गीत, पराग कण, सुंदर उद्यान, बसंत ऋतु, चंदन, मंद समीर आदि. आनंद, उल्लास, हर्ष, कामना, इच्छा, अभीष्ट, स्नेह, अनुराग आदि के भाव काम की ही अभिव्यक्तियां हैं।  जीवन में काम केंद्रीय है और धर्म, अर्थ और मोक्ष के साथ उसे भी पुरुषार्थ का दर्जा मिला हुआ है। 

बसंत ऋतु समग्रता और पूर्णता का प्रतीक है जिसमें विकासमान प्रकृति कुसुमित, प्रफुल्लित, प्रमुदित रूप में सजती-संवरती है।  श्रीकृष्ण के रूप में सभी गुण नया सौंदर्य पा जाते हैं और उनका प्रकटन बसंत में होता है।

मूर्त या मानवीकृत बसंत कामदेव का परम सुहृदय और सहचर है।  वह सृष्टि के उद्भेद का संकल्प है। फागुन–चैत, यानी आधा फरवरी, पूरा मार्च और आधा अप्रैल बसंत ऋतु के महीने कहे जाते हैं।  बसंत या फागुन-चैत के साथ भारतीय नया वर्ष भी शुरू होता है। बसंत कुछ नया होने की और कुछ नया पाने की उत्कट उमंग है।  भारत में इस मौसम में कोयल की कूक और पपीहे की ‘पी कहां’ की आवाज सुनाई पड़ने लगती है।

 मन बहकने लगता है और उसका चरम होली यानी बसंतोत्सव में अनुभव होता है जो चैत्र पूर्णिमा को मनाई जाती है। बसंतोत्सव काम-पूजा ही है. श्रीकृष्ण का राग-रंग युक्त अपरूप रूप प्राकृतिक सौंदर्य के प्रस्फुटन के साथ बसंत में खिलता है जब अनंग कामदेव मानव चित्त की उत्कंठा को चरम पर पहुंचाते हैं। 

टॅग्स :बसंत पंचमीसरस्वती पूजा
Open in App

संबंधित खबरें

पूजा पाठBasant Ritu: समग्रता और पूर्णता का प्रतीक है वसंत

भारतMaha Kumbh 2025 Amrit Snan Basant Panchami: चारों ओर हर हर गंगे का घोष?, हेलीकॉप्टर से पुष्पवर्षा, देखें तस्वीरें

भारतMahakumbh 2025: बसंत पंचमी पर 'अमृत स्नान' शुरू?, अखाड़ा कर रहे स्नान, करोड़ों लोग लगाएंगे डुबकी, देखें वीडियो

पूजा पाठBasant Panchami 2025: ब्रज में वसंत पंचमी के दिन से ही होली की धूम शुरू?, मंदिरों और चौराहों पर होली डांढ़ा के साथ अबीर-गुलाल

पूजा पाठBasant Panchami 2025: आज मनाई जा रही बसंत पंचमी, जानें शुभ मुहूर्त और मां सरस्वती की पूजन विधि

पूजा पाठ अधिक खबरें

पूजा पाठAaj Ka Rashifal 05 December 2025: आज 4 राशिवालों पर किस्मत मेहरबान, हर काम में मिलेगी कामयाबी

पूजा पाठPanchang 05 December 2025: जानें आज कब से कब तक है राहुकाल और अभिजीत मुहूर्त का समय

पूजा पाठPanchang 04 December 2025: जानें आज कब से कब तक है राहुकाल और अभिजीत मुहूर्त का समय

पूजा पाठAaj Ka Rashifal 04 December 2025: आज वित्तीय कार्यों में सफलता का दिन, पर ध्यान से लेने होंगे फैसले

पूजा पाठAaj Ka Rashifal 03 December 2025: आज इन 3 राशि के जातकों को मिलेंगे शुभ समाचार, खुलेंगे भाग्य के द्वार