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वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: कृषि कानूनों को राज्यों के ऊपर छोड़ना ही बेहतर

By वेद प्रताप वैदिक | Updated: January 25, 2021 11:56 IST

देश गणतंत्र दिवस मनाने की तैयारी में जुटा है. इस बीच किसानों का आंदोलन भी जारी है. सरकार ने विरोध देखते हुए कृषि कानूनों को डेढ़ साल तक टालने का भी प्रस्ताव रख दिया है. वहीं, किसान अपनी मांग पर अड़े हुए हैं.

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ठळक मुद्दे सरकार कर चुकी है कृषि कानूनों को डेढ़ साल तक टालने की बात, फिर भी किसान तैयार नहींसरकार को कृषि कानूनों को लागू कराने या नहीं कराने को लेकर राज्यों को देनी चाहिए छूट23 की बजाय 50 चीजों पर, फलों और सब्जियों पर भी सरकारी मूल्य घोषित करे सरकार

किसानों के साथ हुई सरकार की पिछली बातचीत से आशा बंधी थी कि दोनों को बीच का रास्ता मिल गया है. डेढ़ साल तक इन कृषि-कानूनों के टलने का अर्थ क्या है? क्या यह नहीं कि यदि दोनों के बीच सहमति नहीं हुई तो ये कानून हमेशा के लिए टल जाएंगे. सरकार इन्हें थोप नहीं पाएगी. 

अपनी नाक बचाने का सरकार के पास इससे अच्छा उपाय क्या था? सरकार ने अपनी गलती स्वीकार कर ली है. लेकिन पिछले दो-तीन माह में सरकार के असली इरादों को लेकर किसानों में इतना शक पैदा हो गया है कि वे इस प्रस्ताव को भी दूर की कौड़ी मानकर कूड़े में फेंकने को आमादा हो गए.

इस बीच किसान नेताओं, मंत्रियों और कृषि-विशेषज्ञों से मेरा संपर्क निरंतर बना हुआ है. यह बात मैं कई बार लिख चुका हूं कि सरकार राज्यों को छूट की घोषणा क्यों नहीं कर देती? कृषि राज्य का विषय है. अत: जो राज्य इन कानूनों को मानना चाहें, वे मानें, जो नहीं मानना चाहें, वे न मानें. 

पंजाब और हरियाणा के किसानों के लिए ये कानून अपने आप खत्म हो जाएंगे. उनकी मांग पूरी हो जाएगी. रही बात शेष राज्यों की तो भाजपा शासित राज्य इन्हें लागू करना चाहें तो कर दें. दो-तीन साल में ही इनकी असलियत पता चल जाएगी. 

यदि इन राज्यों के किसानों की समृद्धि बढ़ती है तो पंजाब और हरियाणा भी इनका अनुकरण बिना कहे ही करने लगेंगे और यदि भाजपा राज्यों के किसानों को नुकसान हुआ तो केंद्र सरकार इन्हें जारी नहीं रखेगी. 

एमएसपी को कानूनी रूप देने में क्या है परेशानी?

जहां तक न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) का सवाल है, उसे कानूनी रूप नहीं दिया जा सकता है, क्योंकि उससे कम दाम पर खरीदने वाले को सजा होगी तो बेचने वाले को उससे पहले होगी. क्या असहाय-निरुपाय किसानों को आप जेल भिजवाना चाहते हैं? 

बेहतर तो यह हो कि 23 की बजाय 50 चीजों पर, फलों और सब्जियों पर भी सरकारी मूल्य घोषित हों, जैसे कि केरल की कम्युनिस्ट सरकार ने किया है. 

सरकार और किसानों की संयुक्त समिति के विचार का मुख्य विषय यह होना चाहिए कि भारत के औसत मेहनतकश किसानों को (सिर्फ बड़े जमींदारों को नहीं) संपन्न और समर्थ कैसे बनाया जाए और उनकी उपज को दुगुनी-चौगुनी करके भारत को विश्व का अन्नदाता कैसे बनाया जाए? 

यदि सरकार इस आशय की घोषणा करे तो हो सकता है कि हमारा गणतंत्र दिवस सुचारु रूप से संपन्न होगा, वरना मुझे डर है कि 26 जनवरी को अगर बात बिगड़ी तो वह बहुत दूर तलक जाएगी. 

टॅग्स :किसान आंदोलननरेंद्र मोदीपंजाबहरियाणाकेरलFarmer Agitation
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