राहुल गांधी के नये अवतार ने मोदी के खिलाफ चिंगारी लगा दी है
By खबरीलाल जनार्दन | Published: December 14, 2017 06:23 PM2017-12-14T18:23:41+5:302018-06-19T07:42:22+5:30
चीन में एक उपाधि है, "तुच्छ शहजादे"। वहां की मीडिया और राजनेता इसे कम्युनिस्ट पार्टी नेताओं के बिगड़ैल बच्चों के लिए उपयोग में लाते हैं। मुमकिन है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 लोकसभा चुनाव के ऐन पहले यह शब्द वहीं से सीखा हो।
पीएम मोदी एक माहिर खिलाड़ी हैं। उन्होंने बार-बार कहा, "शहजादे अनिच्छुक हैं, उदासीन हैं, काम करने की बजाय छुट्टी मनाना पसंद करते हैं। उनसे ज्यादा काबिल तो उनकी बहन हैं।" इससे एक बार को पूरे देश में राहुल गांधी की यही छवि बन गई।
लेकिन राहुल गांधी ने इन्हीं बातों अपना औजार बना लिया है। उन्होंने तीन सालों में एक भी इन बातों का जवाब नहीं दिया।
बीती तिमाही में पहली बार राहुल ने अमेरिका के बर्कले में सभा के दौरान इसका जिक्र किया। उन्होंने किसी अपमानित करने वाले शब्द के प्रयोग के बगैर बताया कि कैसे मोदी व उनके सहयोगियों ने राहुल के बारे में गलत प्रचार किया।
राहुल गांधी ने अमेरिका के कई विश्वविद्यायलों जाकर भारतीय सरकार की कड़ी निंदा की। लेकिन एक भी अपमानित करने वाले शब्दों का प्रयोग नहीं किया।
लगातार भाजपा नेताओं, मुखिया मोदी की ओर से भर-भर कर अपमानित किए जाने के बावजूद राहुल ने कोई ऐसी बात नहीं कही जो किसी व्यक्ति विशेष अथवा पार्टी विशेष के लिए अपमानजनक हो।
संसदीय बहसों तक में सत्ता पक्ष के प्रमुख नेताओं ने लगातार राहुल गांधी की पार्टी, परिवार और निजी तौर पर उनके लिए अपशब्दों के प्रयोग किए हैं। पर राहुल कभी इन आरोपों पर सफाई देने पेंच में नहीं फंसे। उन्होंने बड़े शालीन तरीके से सरकार पर करारा प्रहार का रवैया अपनाया।
राहुल के इस नये अवतार ने युवाओं को आकर्षित किया। उनके कांग्रेस अध्यक्ष बनने से यह उनका प्रभाव और बढ़ गया है। दूसरी ओर प्रतिद्वंदी पार्टी की नीतियां उन्हें उभारने में कम सहयोगी नहीं है।
मोदी की आत्मघाती नीतियां भी उभार रही हैं राहुल को
मौजूदा सरकार के बीते तीन सालों कार्यकाय से लच्छेदार, लुभावनी शब्दावली में दिए गए भाषणों को हटा दिया जाए तो कुछ अर्थपूर्ण नजर नहीं आता। सरकार की प्रमुख चार योजनाएं डिजिटल इंडिया, स्टार्ट-अप इंडिया, मेक इन इंडिया और स्वच्छ भारत अभियान ने मोदी से उनकी ताकत "युवा" छीन लिया है।
दिल्ली विश्वविद्यालय, जेएनयू और गुवाहाटी विश्वविद्यालय के छात्रसंघ चुनावों में यह साफ नजर आया। इसमें कुछ अतिश्योक्ति नहीं है कि युवा संघ परिवार के खिलाफ वोट कर रहे हैं।
दूसरी ओर राहुल गांधी युवा कांग्रेस के रास्ते ही राजनीति में आए हैं। साल 2009 के लोकसभा चुनावों की जीत में राहुल की युवा कांग्रेस का अपना एक हिस्सा था। राहुल को युवाओं में अपनी खोई हुई छवि को उकेरनी भर है, जिसमें वह लग गए हैं।
दूसरी तरफ प्रधानमंत्री मोदी की नोटबंदी, जीएसटी नीतियों ने जनता में ठीक उसी तरह की भावना भर रही है, जैसी 2014 में कांग्रेस के लिए उन्होंने ने ही भरी थी। इसका सीधा फायदा राहुल गांधी को मिल रहा है। अब उनकी बात सुनी जा रही है। वह अमेरिका के बर्कले में सभा करते हैं तो दिल्ली के अशोका रोड से आनन-फानन में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर उनका जवाब दिया जाता है।
युवा छिटक रहे हैं मोदी से, सुन रहे हैं राहुल को
साल के शुरुआत में हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के परिणामों पर नजर डालेंगे तो पाएंगे तीन राज्यों में कांग्रेस बड़ी पार्टी (पंजाब- कांग्रेस 77, भाजपा समर्थित अकाली दल 18। गोवा- कांग्रेस 17, भाजपा 13। मणिपुर- कांग्रेस 28, भाजपा 21) बनकर उभरी थी। इससे पहले बिहार में भी लोगों ने भाजपा के खिलाफ वोट डाले थे।
उत्तर प्रदेश में भारी जीत के बाद जिस तरह योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने, इससे भी युवाओं में सकारात्मक संदेश नहीं गया। अब हिमाचल प्रदेश और गुजारत चुनाव सिर पर हैं तो ट्विटर पर "#नोटबंदी_एक_लूट", जैसे ट्रेंड चले।
वह शख्स जो दस सालों तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहे अब देश के प्रधानमंत्री हैं, उन्हें अपने प्रदेश में चुनौती महसूस हो रही है। गुजरात और हिमाचल चुनावों में प्रधानमंत्री मोदी से ज्यादा राहुल की रैलियों और बातों को प्रमुखता से दिखाया, सुनाया जा रहा है। इसका साफ मतलब होता कि दर्शक राहुल को देखना-सुनना चाह रहा है।