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गोलियों से छलनी दादी और अनगिनत टुकड़ों में बंटे पिता को देखकर हिम्मत नहीं हारे राहुल गांधी, कभी इनके नाम पर नहीं मांगा वोट

By राहुल मिश्रा | Updated: June 30, 2018 10:20 IST

राहुल गांधी के पास एक नकारात्मक बात यह है कि वो सिर्फ सांसद और पार्टी अध्यक्ष हैं, वो कभी मंत्री या मुख्यमंत्री नहीं रहे!

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देश की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की हत्या महज दो हत्याएं ही नहीं थीं बल्कि दो ऐसी घटनाएँ थीं जिसने भारत की राजनीति और गांधी परिवार में भूचाल ला दिया था।   

पहली घटना 31 अक्‍टूबर 1984 की मनहूस तारीख को घटी थी। उस वक्त राजीव गांधी पश्चिम बंगाल में प्रणब मुखर्जी सहित और पार्टी के अन्य वरिष्‍ठ नेताओं के साथ एक चुनावी रैली को संबोधित कर रहे थे। अचानक वायरलैस पर पुलिस का संदेश मिला, 'इंदिरा गांधी पर हमला हुआ है। जल्‍द दिल्‍ली लौटिए।' आननफानन में प्रणब मुखर्जी सहित राजीव गांधी ने दिल्‍ली के लिए फ्लाइट ली।

पूर्व राष्‍ट्रपति प्रणब मुखर्जी की किताब ‘द टर्बुलेंट इयर्स :1980-1996’ में इस बात का ज़िक्र है कि जब इंदिरा गांधी की मृत्यु के बाद राजीव गांधी से अंतरिम व्यवस्था के बजाय प्रधानमंत्री पद संभालने को कहा गया था तब उन्होंने पूछा था कि क्या मैं ये ज़िम्मेदारी संभाल सकता हूँ? मुखर्जी द्वारा जवाब दिया गया, 'हां, हम सभी लोग आपके साथ हैं और आपकी मदद करेंगे।'

दूसरी घटना राजीव गांधी की हत्या-इंदिरा गांधी की हत्या के लगभग 7 साल बाद 21 मई, 1991 को लिट्टे उग्रवादियों ने देश के राजीव गांधी की जान ले ली। श्रीलंका में शांति सेना भेजने से नाराज तमिल विद्रोहियों के संगठन लिट्टे ने तमिलनाडु के श्रीपेरम्बदूर में राजीव पर आत्मघाती हमला किया था। प्रचार कर रहे राजीव गांधी के पास एक महिला फूलों का हार लेकर आई और उनके बहुत करीब जाकर अपने शरीर को बम से उड़ा दिया। धमाका इतना जबरदस्त था कि उसकी चपेट में आने वाले ज्यादातर लोगों के मौके पर ही परखच्चे उड़ गए।

उस वक्त राजीव गांधी के पुत्र राहुल गांधी विदेश में अपनी पढाई पूरी कर रहे थे। शायद इस बात पर यकीन कर पाना बेहद मुश्किल है उन्हें सबसे ज्यादा प्यार करने वाली दादी की मौत के बाद पिता की इस दर्दनाक हत्या ने कितना झकझोर दिया होगा! 

राहुल गांधी को कई बार कहते हुए सुना गया है कि, 

मेरी दादी और पिता को मैंने खोया है और मुझे पता है कि हिंसा से क्या नुकसान हो सकता है। किसी भी व्यक्ति के खिलाफ हिंसा होनी गलत बात है, जब आप अपने लोगों को खोते हो, तो आपको गहरी चोट लगती है।

इन हादसों के बाद भी राहुल का द्रष्टिकोण हमेशा से सकारात्मक ही रहा। उन्होंने हालातों को कभी खुद पर हावी नहीं होने दिया। इंदिरा गांधी की मौत के बाद जब राजीव गांधी ने सत्ता की बागडोर संभाली थी तब हालात कांग्रेस के पक्ष में थे, लोगों की संवेदनाएं कांग्रेस के साथ थीं लेकिन अब राहुल गांधी द्वारा पार्टी की कमान सँभालने के दौरान हालात और परिस्थितियां बदल चुकी हैं। हवा राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी दोनों के ही खिलाफ है। राहुल गांधी के साथ अगर कुछ है तो वो ये है कि उन्होंने गोलियों से छलनी हुई दादी और अनगिनत टुकड़ों में कटा बाप का शव के नाम पर वोट नहीं मांगे।

किसी को अगर विरासत में कुछ मिले तो इसमें उसका कुछ योगदान नहीं होता। हालांकि, उस विरासत में उनके पूर्वज माता-पिता का योगदान जरूर होता है, जिन्होंने अपनी मेहनत से उसको (विरासत) बनाया है। भारत में बाप-दादा की विरासत पर उसके वारिस का हक होता है। यही हक राहुल गांधी को मिला है।

राहुल गांधी के बारे में जितना मैंने पढ़ा और जाना है उससे कई बातें सामने आती हैं। राहुल गांधी कहते हैं कि,

मेरे पिता ने मुझे सिखाया है कि नफरत उन लोगों के लिए जेल की तरह होती है जो इसके साथ जीते हैं। मैं उन्हें धन्यवाद देता हूं कि उन्होंने मुझे सभी को प्यार और सम्मान देना सिखाया।

लेकिन देखा जाए तो अब हालात थोड़े से बदले हैं। लोगों को अब हिसाब से बोलने वाले राहुल गांधी ठीक लगने लगे हैं। राहुल गांधी के पास एक नकारात्मक बात यह है कि वो सिर्फ सांसद और पार्टी अध्यक्ष हैं, वो कभी मंत्री या मुख्यमंत्री नहीं रहे। उनके पास मोदी की तरह कुछ कर दिखाने का ट्रैक रिकॉर्ड नहीं है। 

शायद यही कारण है कि प्रधानमंत्री के वैकल्पिक तौर पर लोग राहुल गांधी की कल्पना अब भी नहीं कर पाते हैं। बहरहाल, राहुल गांधी क्रीज़ पर हैं, दर्शक के रूप में जनता अब उन्हें हूट तो कम ही करती है, साथ ही अब लोग उनके लिए तालियाँ भी बजाने लगे हैं। लेकिन एक सवाल मेरे मन में भी है कि-क्या इन हालातों में राहुल पीएम बन पाएंगे?

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