परिपक्व राजनेता की तरह उभरे हैं राहुल गांधी
By विजय दर्डा | Published: December 17, 2018 04:50 AM2018-12-17T04:50:11+5:302018-12-17T04:50:11+5:30
मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में जीत के साथ कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का राजनीतिक कद बेशक बढ़ा है लेकिन जीत के बाद उन्होंने जो प्रेस कान्फ्रेंस की, उसने इस बात पर मुहर लगा दी है
मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में जीत के साथ कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का राजनीतिक कद बेशक बढ़ा है लेकिन जीत के बाद उन्होंने जो प्रेस कान्फ्रेंस की, उसने इस बात पर मुहर लगा दी है कि वे एक परिपक्व राजनेता बन चुके हैं. उन्होंने वही कहा जो हिंदुस्तान की संस्कृति और सभ्यता है, जिसे राजनीति ने पिछले कुछ वर्षो में ध्वस्त करने की कोशिश की है. भारतीय जनता पार्टी के बड़े नेता कांग्रेसमुक्त भारत की बात करते थकते नहीं हैं. राहुल गांधी ने कहा कि हम तोड़ने वाली विचारधारा से लड़ेंगे लेकिन हम भारत को किसी से मुक्त नहीं करना चाहते. इतना ही नहीं उन्होंने बड़ी विनम्रता से यह भी कहा कि भाजपा के मुख्यमंत्रियों ने जो काम किया है उसे कांग्रेस आगे बढ़ाएगी.
राजनीति का जो मौजूदा स्वरूप हो गया है, उसमें यह विनम्रता कमाल की बात है. अपने इस व्यवहार से उन्होंने न केवल तीन राज्यों बल्कि देश का दिल जीत लिया. मैं राहुल गांधी को बहुत करीब से जानता हूं. उनके भीतर आते हुए बदलाव को मैंने महसूस किया है. मैं यह दावे के साथ कह सकता हूूं कि उनके भीतर द्वेष नाम की चीज है ही नहीं. जिस व्यक्ति ने अपने पिता के हत्यारों को माफ कर दिया वह व्यक्ति किसी और से क्या द्वेष रखेगा? वे यह समझते हैं कि इस देश का आम आदमी नफरत की राजनीति को बर्दाश्त नहीं करता. 1977 में जब इंदिरा गांधी चुनाव हार गई थीं तब जनता पार्टी की सरकार ने उनके साथ नफरत भरा व्यवहार किया था. जनता ने इसे बर्दाश्त नहीं किया और पौने तीन साल से भी कम अवधि में वे फिर से प्रधानमंत्री की कुर्सी पर पहुंच गईं.
दुर्भाग्य यह है कि कुछ लोग नफरत की राजनीति को बढ़ावा दे रहे हैं. उन्हें यह समझना चाहिए कि राजनीति नफरत से बहुत आगे है. नफरत से राजनीति नहीं चलती. धर्म के सहारे राजनीति नहीं चलती. नफरत के आधार पर देश तरक्की नहीं कर सकता, शक्तिशाली नहीं बन सकता. यह देश एकात्मता और धर्मनिरपेक्षता की बुनियाद पर आगे बढ़ा है. हमारे पड़ोसी पाकिस्तान और बांग्लादेश धर्म के नाम पर चल रहे हैं. उनकी दशा क्या है ये पूरी दुनिया देख रही है.
राहुल गांधी ने सहयोग की राजनीति की ओर कदम बढ़ाया है. धर्मनिरपेक्षता उनके खून में है. हां, हालात कुछ ऐसे थे कि उन्हें परिपक्व होने में वक्त लगा. राजनीति में गलतियां सबसे होती हैं. उन्होंने कहा भी कि 2014 की गलतियों से बहुत सीखा है. मोदीजी ने बहुत सिखाया है. दरअसल राहुलजी अब पूरी तरह बदले हुए व्यक्ति हैं. अब वे सहजता से उपलब्ध हैं. उन्हें पता है कि किसे पास रखना है और किसे दूर रखना है. उन्होंने अशोक गहलोत को राजस्थान और कमलनाथ को मध्य प्रदेश का दायित्व सौंपा है तो इसका कारण 2019 का चुनाव सबसे बड़ा लक्ष्य है. तीन बड़े राज्यों में जीत के बाद उन्होंने कांग्रेस को उस जगह पर ला खड़ा किया है जहां कोई भी क्षेत्रीय पार्टी अब सवाल खड़ा नहीं कर सकती. जहां तक 2019 के चुनाव का सवाल है तो दूसरे राजनीतिक दलों को यह समझना होगा कि जिस तरह से भाजपा के बगैर एनडीए की कल्पना नहीं की जा सकती, उसी तरह से कांग्रेस के बगैर यूपीए की कल्पना नहीं की जा सकती. एकला चलो की जिस राजनीति की कल्पना उनमें थी उसकी वास्तविकता को वे समझ चुके हैं. राहुल गांधी जानते हैं कि क्षेत्नीय दलों को साथ लेकर चलना होगा. वे क्षेत्नीय दलों का सम्मान करते हैं.
यह अच्छी बात है कि राहुल गांधी ने पूरी तरह कमान संभाल ली है और जरूरत के अनुसार ही सोनिया गांधी की सलाह लेते हैं. सामान्य तौर पर सोनिया गांधी कोई हस्तक्षेप नहीं करतीं और न ही प्रियंका गांधी की ओर से कोई हस्तक्षेप है. राहुलजी की पकड़ पार्टी पर मजबूत हुई है और गुटबंदी पर उन्होंने काबू पाया है. हालांकि गुटबंदी पर पूरी तरह काबू पाने में वक्त लगेगा लेकिन राहुलजी ने संदेश तो दे ही दिया है कि पार्टी सबसे बड़ी है. नेताओं को उसके दायरे में ही चलना होगा. 2019 के चुनाव में उन्हें खासतौर पर उत्तर प्रदेश, बिहार और महाराष्ट्र पर ध्यान देना होगा क्योंकि यही राज्य गेम चेंजर होंगे.
सबसे अच्छी बात यह है कि राहुल गांधी ने कार्यकर्ताओं को तरजीह देकर पार्टी में नई जान फूंकने का काम किया है. तीन राज्यों में विजय के बाद मुख्यमंत्री के चयन में भी उन्होंने ‘शक्ति’ एप्प के जरिए कार्यकर्ताओं की राय जानी कि वे किसे मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं. जब राजनीतिक दलों में आलाकमान का पैटर्न हावी हो चुका है तब इस तरह का प्रयोग निश्चय ही नई बात है. कार्यकर्ता इससे खुद को सम्मानित महसूस कर रहे हैं और उनमें उत्साह तथा उमंग का संचार हुआ है. कांग्रेस की सेहत के लिए यह बहुत जरूरी भी था. लेकिन मैं यह भी कहना चाहूंगा कि इस जीत से बहुत ज्यादा खुश होने की जरूरत नहीं है क्योंकि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा चुप नहीं बैठेगी. कांग्रेस को समझना होगा कि केवल इतनी सी जीत पर्याप्त नहीं है. लड़ाई अभी बहुत लंबी है. 2019 का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए राहुलजी के नेतृत्व में और पसीना बहाना होगा.