संसदीय सत्रों की मर्यादा बचा पाएंगे सियासी दल? 

By उमेश चतुर्वेदी | Published: July 18, 2018 11:12 AM2018-07-18T11:12:20+5:302018-07-18T11:12:20+5:30

जब चार साल संसद के सत्न नहीं चले तो चुनावों की उलटी गिनती के दौर में संसदीय सत्न के सुचारु रूप से चलने की उम्मीद करना भोलापन ही होगा।

Parliamentary sessions monsoon session political parties narendra modi government | संसदीय सत्रों की मर्यादा बचा पाएंगे सियासी दल? 

संसदीय सत्रों की मर्यादा बचा पाएंगे सियासी दल? 

सोलहवीं लोकसभा के चार साल के कार्यकाल में शायद ही कोई संसद सत्न पूरी शांति से चल पाया है। इसके लिए विपक्ष जहां केंद्र सरकार के रवैये को ठहराता रहा है तो वहीं सरकार कहती रही है कि केंद्र में नरेंद्र मोदी की जीत को विपक्ष पचा नहीं पाया, इसलिए उसने संसद सत्न में व्यवधान डाले। 

जब चार साल संसद के सत्न नहीं चले तो चुनावों की उलटी गिनती के दौर में संसदीय सत्न के सुचारु रूप से चलने की उम्मीद करना भोलापन ही होगा। चुनावी साल में बेशक सरकार पर पहले की तुलना में खुद को कामकाजी और उपलब्धियों भरा दिखाने का दबाव होता है, वहीं विपक्ष उसकी कलई उतारने की कोशिश में रहता है।
 
मानसून सत्न के दौरान सरकार की सूची में सार्वजनिक परिसर अनधिकृत कब्जा को हटाने संबंधी संशोधन विधेयक 2017, दंत चिकित्सक संशोधन विधेयक 2017, जन प्रतिनिधि संशोधन विधेयक 2017, निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट अमेंडमेंट विधेयक, नई दिल्ली अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र विधेयक 2018, भगोड़ा आर्थिक अपराध विधेयक 2018 को भी चर्चा एवं पारित कराने के लिए सूचीबद्ध किया गया है।

चूंकि राज्यसभा में सरकार की ताकत कुछ और बढ़ जाएगी, इसलिए वह चाहेगी कि राज्यसभा में होने वाले व्यवधानों के बावजूद काम हो सके. हालांकि सरकार ने विपक्ष पर दबाव बनाना शुरू कर दिया है कि इनमें से ज्यादातर विधेयक लोकहित के हैं, ऐसे में विपक्ष को इन विधेयकों को पारित कराने के लिए साथ देना होगा। 

सरकार यह भी दिखाने की कोशिश करेगी कि विपक्ष जानबूझकर लोकहित के मामलों पर उसे काम नहीं करने दे रहा। लगता नहीं कि मानसून सत्न प्रकृति की ठंडी फुहारों से आह्लादित होती धरती की तरह बदला माहौल देख पाएगा। सत्ता की चाहत की राजनीति में ऐसे हंगामों की जनता को भी आदत हो गई है, जिससे वह सत्नों को लेकर उदासीन होती जा रही है। भारतीय लोकतंत्न के सामने आने वाले दिनों में यह उदासीनता बड़ी चुनौती बन सकती है। इसके लिए पक्ष और विपक्ष दोनों को सोचना होगा।

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