Paris Olympics 2024 live update: पेरिस में हो रहे ओलंपिक खेलों और साउथ दिल्ली की फ्रेंड्स कॉलोनी का सीधा रिश्ता है. दरअसल फ्रेंड्स कॉलोनी में कुछ बरस पहले तक एक सज्जन रहते थे जिनकी वजह से ओलंपिक खेलों का आयोजन सुरक्षित हुआ. अगर 1972 के म्यूनिख ओलंपिक खेलों में हुए इजराइली खिलाड़ियों के कत्लेआम के बाद फिर ओलंपिक खेलों में कभी उस तरह का भयानक हादसा नहीं हुआ तो इसका श्रेय उन्हीं को जाता है. उनका नाम था अश्विनी कुमार. म्यूनिख की दिल दहलाने वाली आतंकी घटना के बाद अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक संघ (आईओए) ने तेज-तर्रार पुलिस अफसर अश्विनी कुमार से गुजारिश की कि वे आगामी शीतकालीन और ग्रीष्मकालीन ओलंपिक खेलों की सुरक्षा व्यवस्था को मेजबान देश के साथ मिलकर देखें.
अश्विनी कुमार देश की आजादी से पहले इंपीरियल पुलिस सर्विस के अफसर थे. आजादी के बाद अश्विनी कुमार जैसे अफसर भारतीय पुलिस सेवा में शामिल कर लिए गए थे. वे भारतीय ओलंपिक संघ (आईओसी) से भी सक्रिय रूप से जुड़े हुए थे. बेशक, अश्विनी कुमार को बेहद चुनौतीपूर्ण दायित्व मिला था. माना जाता है कि ओलंपिक से बड़ा और कोई आयोजन नहीं होता है.
अब पेरिस ओलंपिक को ही लें. इसमें 206 देशों के हजारों खिलाड़ी, कोच, स्पोर्ट स्टाफ, दर्शक वगैरह हिस्सा ले रहे हैं. जाहिर है, अश्विनी कुमार ने ओलंपिक जैसे आयोजन की सुरक्षा व्यवस्था की निगहबानी करने से पहले सोचा तो होगा. अंत में, उन्होंने आईओसी से मिली जिम्मेदारी को स्वीकार किया. उसके बाद किसी आतंकी संगठन को ओलंपिक खेलों में किसी तरह का व्यवधान डालने का मौका नहीं मिला.
अश्विनी कुमार ने मांट्रियल (1976), मास्को (1980), लॉस एजेंल्स (1984), सोल (1988), बार्सिलोना (1992), अटलांटा (1996) तथा सिडनी (2000) के ओलंपिक खेलों से जुड़े स्टेडियमों, ओलंपिक विलेज, मीडिया सेंटरों, खिलाड़ियों, वीआईपी, दर्शकों वगैरह की सुरक्षा को खासतौर पर देखा और मेजबान देश की सुरक्षा एजेंसियों को जरूरी इनपुट्स दिए.
उन्होंने सिडनी ओलंपिक के बाद बढ़ती उम्र के कारण अपनी जिम्मेदारी को छोड़ा था. अश्विनी कुमार को देश ने पहली बार तब जाना था जब उन्होंने पंजाब के मुख्यमंत्री प्रताप सिंह कैरों के हत्यारे सुच्चा सिंह को नेपाल में जाकर पकड़ा था. इससे पहले भारत सरकार ने उन्हें 1951 में सौराष्ट्र के खूंखार डाकू भूपत गिरोह को खत्म करने के लिए भेजा था.
वहां पर भी वे सफल हुए थे. अश्विनी कुमार सीमा सुरक्षा बल ( बीएसएफ) के दूसरे महानिदेशक थे और उन्होंने इस सशस्त्र बल को खड़ा किया था. उन्हें बीएसएफ का पितामह माना जाता है. उनका साल 2015 में निधन हो गया.