क्या चुनावी अग्निपरीक्षा में सफल होंगे शिवराज सिंह चौहान?

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: June 23, 2023 01:14 PM2023-06-23T13:14:13+5:302023-06-23T13:15:39+5:30

Will Shivraj Singh Chouhan succeed in Madhya Pradsh election test | क्या चुनावी अग्निपरीक्षा में सफल होंगे शिवराज सिंह चौहान?

क्या चुनावी अग्निपरीक्षा में सफल होंगे शिवराज सिंह चौहान?

अभिलाष खांडेकर

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जो देश के दिग्गज और महत्वाकांक्षी भाजपा नेताओं में से एक हैं, अपने तीन दशक के राजनीतिक जीवन में एक बार फिर अग्निपरीक्षा के लिए तैयार हैं. एक अलग तरह से लोकप्रिय नेता, शिवराज उर्फ मामा अपना 18 साल का कार्यकाल पूरा करने के बाद पांच माह बाद फिर से नया जनादेश पाने की तैयारी में लगे हैं, जब राजस्थान और छत्तीसगढ़ के साथ मध्यप्रदेश में भी विधानसभा चुनाव होंगे.

हालांकि राजनीतिक क्षेत्रों में मीडिया, नौकरशाही और स्वतंत्र विश्लेषकों द्वारा राज्य में शिवराज विरोधी लहर होने की बात कही जा रही है. वह भाजपा विरोधी लहर की बातें नहीं कह रहे हैं.  कर्नाटक के बाद लोग मप्र में भी परिवर्तन की उम्मीद कर रहे हैं जहां राहुल गांधी ने 150 सीटें जीतने की भविष्यवाणी की है.

कट्टर हिंदू नेतृत्व की प्रतीक साध्वी उमा भारती के नेतृत्व में जब भाजपा ने 2003 में विशाल जीत दर्ज की थी तो इसका कारण तत्कालीन दिग्विजय सिंह सरकार द्वारा सत्ता विरोधी लहर से निपटने में विफलता ही था. इंजीनियर से राजनेता बने दिग्विजय भाजपा द्वारा बेदखल किए जाने के पहले दो कार्यकाल (दस वर्ष) तक सत्ता में रहे थे. 

भाजपा ने तब परोक्ष रूप से बह रही सत्ता विरोधी लहर का ही फायदा उठाया था, जबकि चतुर ठाकुर उस समय भी बड़ी जीत का दावा कर रहे थे. भाजपा ने अपने सुव्यवस्थित प्रचार अभियान के द्वारा उन्हें ‘श्रीमान बंटाढार’ करार दिया था. राज्य की चुनावी राजनीति के इतिहास में कांग्रेस को कभी भी इतनी अपमानजनक हार का सामना नहीं करना पड़ा था, जैसा कि उसे 2003 में करना पड़ा.

चौहान पर विपक्षी पार्टी कांग्रेस द्वारा बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया जा रहा है. सुशासन की कमी उनके कार्यों में साफ झलकती है और जनता उनकी अंतहीन घोषणाओं और खोखले वादों से तंग आ चुकी है. आज मप्र में ठीक 2003 जैसी स्थितियां देखने को मिल रही हैं.

क्या 64 साल के शिवराज 2023 में एक और जीत हासिल कर पाएंगे? क्या उन्हें भाजपा के लिए एक ताकत के रूप में देखा जाता है या कुछ और ही? शिवराज सुशासन की अपनी असफलता को रोजाना दिये जा रहे करोड़ों के विज्ञापनों से ढांकना चाहते हैं? ये सवाल इसलिए पूछे जा रहे हैं क्योंकि उनके नेतृत्व में भाजपा 2018 में राज्य का चुनाव हार गई थी, भले ही मामूली अंतर से. यह उनके लिए करारा झटका था. तब उन्हें लगा था कि उनकी हार में नई दिल्ली का भी हाथ है. उस समय भी मैंने लिखा था कि उनकी क्षमताओं और चालाक दिमाग को देखते हुए चौहान को खारिज करना जल्दबाजी होगी.

उन्होंने मार्च 2020 में धमाकेदार वापसी की. हालांकि भाजपा पर नजर रखने वालों का कहना है कि ये शिवराज 2018 वाले शिवराज नहीं हैं. सीएम के रूप में लौटने के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया के सौजन्य से जिन्होंने कांग्रेस को धूल चटा दी, वे बदल गए हैं. भाजपा पदाधिकारियों का कहना है कि उन्हें अच्छी तरह से पता है कि उन्हें चौथी बार सीएम दिल्ली ने बनाया है, इस कारण वे अब अपनी ही पार्टी के लोगों की कम परवाह करते हैं. पार्टी के भीतर उनके कट्टर समर्थक कम हो रहे हैं क्योंकि जरूरत पड़ने पर मुख्यमंत्री उनकी मदद नहीं करते. 

सिंह सत्ता साझा करने में अति सतर्क हैं; नौकरशाहों के सामने उनके मंत्री काफी हद तक बेबस हैं और भ्रष्ट भी. कई भाजपा जिलाध्यक्ष और पदाधिकारी अपने मुख्यमंत्री के साथ मिलने का समय मांगते रहते थे लेकिन उन्हें शायद ही कभी उन्होंने उपकृत किया हो. भाजपा के भीतर भी इसी कारण असंतोष बढ़ रहा है. शिवराज, जो बड़े संकटों से भी उबरते रहे हैं (व्यापम को याद करें), वे विक्रम वर्मा, उमा भारती, कैलाश विजयवर्गीय, अजय विश्नोई, राकेश सिंह, प्रभात झा, (स्वर्गीय) नंदकुमार चौहान जैसे अनेक नेताओं को दरकिनार करने में सफल रहे हैं. पूर्व मंत्री दीपक जोशी की तरह कई लोग पार्टी छोड़ने की बातें कर रहे हैं.

सुशासन के मोर्चे पर उन्हें निश्चित रूप से ‘श्रीमान बंटाढार-2’ नहीं कहा जा सकता है, लेकिन जहां तक भ्रष्टाचार के आरोपों की बात है तो उनके शासन ने दिग्विजय के शासन को मात दे दी है. भाजपा सरकार के तहत मध्यप्रदेश में बिजली-पानी-सड़क के बारे में कोई शिकायत नहीं कर सकता क्योंकि उसने सिंचाई, बुनियादी ढांचे के विकास और किसानों के कल्याण के लिए अच्छा काम किया है लेकिन सामाजिक विकास में मध्यप्रदेश काफी पिछड़ा है. गुजरात की सीमा से सटा अलीराजपुर देश के सबसे गरीब जिलों में से एक है.

 विदिशा, जिसका अटल बिहारी वाजपेयी के बाद और सुषमा स्वराज से पहले शिवराज ने लोकसभा में प्रतिनिधित्व किया था, सात अन्य जिलों के बीच नीति आयोग का एक ‘आकांक्षी जिला’ बना हुआ है. मप्र आज भी एक ‘बीमारू’ राज्य दिखता है? उनके शासन के 18वें वर्ष (भाजपा के 20 वें वर्ष) में, मध्यप्रदेश अभी भी बाल कुपोषण के मामलों में पीड़ित है (गंभीर कुपोषित बच्चों की संख्या हजारों में है). राजनीतिक विश्लेषक आंगनवाड़ियों के खराब प्रबंधन की ओर इशारा करते हैं (मुख्यमंत्री ने 2022 में आंगनवाड़ियों के लिए लोगों का समर्थन मांगते हुए खुद एक हाथगाड़ी खींची थी), रोजगार सृजन (करोड़ों युवा बेरोजगार हैं), खराब शहरी प्रशासन और महिलाओं के खिलाफ अपराध ऐसे क्षेत्र हैं जहां मध्यप्रदेश को अत्यधिक सुधार करने की जरूरत है. 

अवैध कॉलोनियों को वैध करना सुशासन नहीं कहलाता. एक ‘वृक्ष-प्रेमी’ सीएम बुरहानपुर या लटेरी के जंगलों को नहीं बचा पाए हैं जहां लगातार अवैध कटाई की सूचना मिलती है. बक्सवाहा के हरे-भरे जंगलों में खनन की अनुमति देने के भी वे इच्छुक थे, लेकिन वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की बदौलत विशाल जंगल अभी तो बच गया है.

यह सही है कि जब आप शिवराज से मिलते हैं तो आपको लगता है कि वे गर्मजोशी से भरे, विनम्र और मदद करने के इच्छुक राजनेता हैं. लेकिन कई भाजपा नेताओं, उद्योगपतियों और अन्य लोगों ने महसूस किया है कि वे अपने कार्यों और वादों में बहुत ही कम सच्चे हैं. अपने लिये, परिवार के लिये सब करते हैं किंतु पार्टी के मान्य बड़े-छोटे नेताओं से कन्नी काटते हैं. ऐसे में सवाल यह है कि क्या वे 2023 का चुनाव ‘लाडली बहना’ जैसे करोड़ों के मुफ्त उपहारों की मदद से जीत पाएंगे? क्या कांग्रेस उनके भ्रष्टाचारी कुशासन जिसकी अंतहीन कहानियां सब दूर सुनने को मिल रही हैं, को पराजित कर पाएगी? समय बताएगा.

Web Title: Will Shivraj Singh Chouhan succeed in Madhya Pradsh election test

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